रायपुर : छत्तीसगढ़ सरकार ने स्कूली शिक्षा के स्तर को सुधारने और शिक्षकों के असमान वितरण को संतुलित करने के उद्देश्य से राज्य भर के स्कूलों में युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह फैसला मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उपमुख्यमंत्री अरुण साव के नेतृत्व में लागू किया गया है। मगर सरकार के इस फैसले के साथ ही शिक्षक संगठनों और विपक्ष के बीच जोरदार घमासान भी शुरू हो गया है।
सरकार का कहना है कि यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और “जहां जरूरत, वहां शिक्षक” की अवधारणा को साकार करने के लिए जरूरी है। लेकिन शिक्षक संघ इसे स्थानीय शिक्षा ढांचे के लिए खतरा मानते हुए इसका कड़ा विरोध कर रहा है।
क्या है युक्तियुक्तकरण?
सरकार की योजना के तहत राज्य के 10,463 स्कूलों का समायोजन किया जाएगा। इसमें उन स्कूलों को मर्ज किया जा रहा है जो एक-दूसरे के निकट हैं, ताकि संसाधनों और शिक्षकों का प्रभावी उपयोग हो सके। इसके तहत करीब 13,000 सरप्लस शिक्षकों का तबादला होगा। सरकार का दावा है कि इससे उन गांवों में फंसे शिक्षकों को राहत मिलेगी, जो वर्षों से एक ही जगह पदस्थ हैं।
विपक्ष और शिक्षक संघ का विरोध
शिक्षक संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र दुबे ने कहा,
“प्राथमिक शालाओं में एक या दो शिक्षक रहते हैं। वहां से यदि एक को हटा लिया जाए तो शिक्षा की गुणवत्ता और बिगड़ेगी। सरकार का यह फैसला जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करता है।”
पूर्व पीसीसी चीफ धनेन्द्र साहू ने इसे सरकार की नई शिक्षक भर्ती से बचने की रणनीति बताया। उनका आरोप है कि,
“राज्य में पहले से ही करीब 80 से 90 हजार शिक्षकों के पद खाली हैं। सरकार इस समायोजन के बहाने नई भर्तियों को रोकना चाहती है।”
साहू ने यह भी दावा किया कि इस प्रक्रिया से हजारों शिक्षकों को गैर-आवश्यक ठहरा दिया गया है, जबकि सैकड़ों स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी शिक्षक नहीं है।
सरकार की सफाई: “यह सुधारात्मक नीति, न कि भर्ती विरोधी”
उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा,
“कांग्रेस की सरकार ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था को चौपट कर दिया था। हमारी सरकार केवल यह चाहती है कि नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पहले स्कूलों में आवश्यक शिक्षक मौजूद रहें। यह निर्णय सिर्फ व्यवस्थापन का है, भर्ती पर कोई असर नहीं पड़ेगा।”
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इसे “भविष्य की पीढ़ियों के लिए मजबूत शिक्षा प्रणाली की नींव” बताया और कहा कि सरकार का मकसद छात्रों को समावेशी, निरंतर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और भविष्य की दिशा
पिछले वर्ष सरकार ने इसी नीति को लागू करने की कोशिश की थी, लेकिन निकाय चुनाव और शिक्षकों के विरोध के चलते इसे टालना पड़ा। अब जबकि विधानसभा चुनाव बीत चुके हैं, सरकार ने यह साफ कर दिया है कि इस बार पॉलिसी को सख्ती से लागू किया जाएगा।
छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था इस समय राजनीति और नीतियों के टकराव के बीच खड़ी है। जहां एक ओर सरकार इस फैसले को शिक्षा सुधार की दिशा में एक “मील का पत्थर” मान रही है, वहीं दूसरी ओर शिक्षक संघ और विपक्ष इसे शिक्षकों के अधिकारों और ग्रामीण शिक्षा के खिलाफ साजिश बता रहे हैं।
अब देखना यह होगा कि सरकार विरोध को संभालते हुए इस योजना को कितनी सफलता से लागू कर पाती है और क्या यह कदम वाकई में राज्य की शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा देने में सफल हो पाएगा, या फिर यह सिर्फ एक और अधूरी नीति बनकर रह जाएगा।