“नियमों की उड़ान, मनमर्जी का तूफान — छत्तीसगढ़ वन विभाग में बेमौसम तबादले!”
“छत्तीसगढ़ वन विभाग: जहां हर दिन नया चमत्कार होता है!”
रिपोर्टर – एवन बंजारा।
रायपुर /नवा रायपुर – छत्तीसगढ़ के वन विभाग में एक बार फिर ऐसा निर्णय सामने आया है जिसे देखकर सहज ही कहा जा सकता है कि “यदि दुनिया में कोई नौवां आश्चर्य छत्तीसगढ़ वन विभाग में हुआ है तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं!” यहाँ पर शासनादेशों, नीतियों, और विभागीय प्रक्रियाओं का उल्लंघन अब आम बात हो गई है। पहले यह सालों में एक बार होता था, अब हर दो-चार दिन में नए-नए कारनामे देखने को मिल रहे हैं।

रायपुर में डीएफओ ने जारी किया संदिग्ध कार्य आवंटन आदेश
दिनांक 25 अप्रैल 2025 को रायपुर वनमंडलाधिकारी द्वारा एक कार्य आबंटन आदेश जारी किया गया, जो असल में ट्रांसफर आदेश जैसा ही है। शासन की स्पष्ट स्थानांतरण नीति 2024-25 के अनुसार वर्तमान में स्थानांतरण पर रोक है , फिर भी इस आदेश में कई अधिकारियों और कर्मचारियों के कार्य क्षेत्र में बदलाव किया गया:
वनक्षेत्रपाल तीरथ को SFRT रायपुर के साथ नया रायपुर का प्रभार दिया गया।
निलंबित अधिकारी के स्थान पर धमतरी से चंद्रप्रकाश महोबिया को रायपुर लाया गया।
बाद में, महोबिया का आदेश निरस्त कर फिर नया रायपुर भेजा गया।
नया रायपुर के डिप्टी रेंजर दीपक तिवारी को रायपुर भेज दिया गया।
यह सवाल उठता है कि जब ट्रांसफर पर रोक है तो इतने बड़े स्तर पर कार्य विभाजन कैसे किया गया? क्या डीएफओ को राजधानी में ऐसा आदेश जारी करने का अधिकार है? यदि राजधानी में ही नीति के खिलाफ निर्णय लिए जा रहे हैं तो दूरदराज के इलाकों में क्या हाल होगा?
चार दिन पहले भी पीसीसीएफ ने किया था ट्रांसफर नीति का उल्लंघन
दिनांक 21 अप्रैल 2025 को वन बल प्रमुख (PCCF) श्री व्ही श्रीनिवास राव ने स्वयं एक स्थानांतरण आदेश जारी किया, जिसमें वरिष्ठ वनक्षेत्रपाल श्री प्रकाश ठाकुर को चित्रकूट से हटाकर वृत्त कार्यालय जगदलपुर में विशेष कर्तव्य पर भेजा गया और श्री रामदत्त नागर को चित्रकूट परिक्षेत्र अधिकारी बनाया गया।
आम चर्चा है कि प्रकाश ठाकुर के खिलाफ कोई विभागीय जांच या आरोप नहीं था। उलटे उनकी पदोन्नति आगामी दो माह में ACF पद पर होनी थी। ऐसे में आखिरी समय में इस तरह से हटाना केवल व्यक्तिगत और राजनीतिक दबाव में लिया गया निर्णय प्रतीत होता है।
क्या यह सही नहीं था कि पीसीसीएफ शासन को यह समझाते कि स्थानांतरण नीति लागू है और जून के रेगुलर स्थानांतरण में बदलाव कर दिया जाएगा? फिर क्यों बिना ठोस कारण के एक ईमानदार अधिकारी को हटाकर विवादित छवि वाले अधिकारी को लाया गया?

रामदत्त नागर की नियुक्ति पर सवाल
श्री नागर की विभागीय छवि को लेकर सवाल उठ रहे हैं:
काँगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में रहते समय भ्रष्टाचार के आरोप।
करपावंड परिक्षेत्र में शासन के कार्यों में लापरवाही के चलते निलंबन।
कांकेर वनमंडल में महिला के साथ आपत्तिजनक वीडियो वायरल होने पर हटाना।
तो क्या अब ऐसे अधिकारी को चित्रकूट जैसे पर्यटन क्षेत्र में तैनात कर दिया गया है?
यह निर्णय विभाग के कार्यों और प्रतिष्ठा दोनों के लिए घातक साबित हो सकता है। क्या पीसीसीएफ राव, जो स्वयं बस्तर में CF, CCF, और APCCF रह चुके हैं, इन तथ्यों से अनजान थे? या फिर राजनीतिक दबाव के सामने विभागीय गरिमा को तिलांजलि दे दी गई?
राजनीतिक दबाव या प्रशासनिक मजबूरी?
सूत्रों के अनुसार, श्री रामदत्त नागर का जुगाड़ इतना मजबूत था कि वन मंत्री तक इस दबाव को झेल नहीं पाए और मामला पीसीसीएफ के पाले में डाल दिया गया। सेवानिवृत्ति निकट होने के कारण श्री राव ने भी विवाद से बचते हुए बिना टकराव के आदेश जारी कर दिया।
क्या वन बल प्रमुख के पद पर बैठा अधिकारी मात्र अपनी कुर्सी बचाने के लिए विभागीय मूल्यों से समझौता करेगा?
कार्यशाला में उठे सवाल, लेकिन मैदान में उलटा काम
दिनांक 22 और 23 अप्रैल को विभाग ने रायपुर में एक बड़ी कार्यशाला आयोजित की जिसमें सेवानिवृत्त IFS अधिकारियों और वरिष्ठ अधिकारियों ने वानिकी कार्यों में तकनीकी स्टाफ की कमी और प्रशासनिक सहयोग न मिलने की शिकायतें कीं।
तो सवाल उठता है कि — जब खुद कार्यशाला में अधिकारी यह स्वीकार कर रहे हैं कि योग्य अधिकारी और कर्मचारियों की कमी है, फिर ऐसे विवादित पोस्टिंग क्यों की जाती है? क्या चित्रकूट जैसे महत्वपूर्ण पर्यटन क्षेत्र में एक विवादित अधिकारी की पोस्टिंग से विभागीय कार्य और छवि प्रभावित नहीं होगी?
छत्तीसगढ़ की जनता पूछती है…
> क्या छत्तीसगढ़ में अवैधानिक और बेमौसम ट्रांसफर आदेश वनबल प्रमुख स्वयं कर रहे हैं या वनमंत्री की सहमति से?
राजधानी रायपुर में सरकार के सामने खुलेआम नियमों की अनदेखी कर विवादस्पद स्थानांतरण किए जा रहे हैं।
जनता सवाल कर रही है — क्या हमने सरकार इसलिए चुनी थी कि वह संविधान और अपनी ही ट्रांसफर नीति 2024-25 की धज्जियाँ उड़ाए?
सरकार आपकी है, स्थानांतरण आपके अधिकार क्षेत्र में है, नियमों के तहत कीजिए।
यदि दिक्कत थी तो जून के रेगुलर ट्रांसफर में स्थानांतरण कर सकते थे।
फिर इस बेमौसम, नियमविरुद्ध और विवादित ट्रांसफर की क्या जरूरत थी?
आखिर ये सब किसके इशारे पर हो रहा है?
छत्तीसगढ़ की जनता जवाब मांग रही है!
निष्कर्ष
वन विभाग में लगातार हो रहे विवादस्पद निर्णयों ने जनता और विभागीय कर्मचारियों के बीच गंभीर चिंता पैदा कर दी है।
क्या राजधानी रायपुर में ही नियमों का मखौल उड़ाया जाएगा ?
क्या वन बल प्रमुख अपने कर्तव्यों के बजाय राजनीतिक संतुलन साधने में व्यस्त रहेंगे ?
क्या चित्रकूट जैसे क्षेत्रों में विवादित अधिकारियों की तैनाती से विभागीय कार्य प्रभावित नहीं होंगे ?
सरकार और वन बल प्रमुख को इन फैसलों पर गंभीर आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। यदि समय रहते सुधार नहीं किए गए तो भविष्य में वन विभाग का भरोसा और कार्यक्षमता दोनों गंभीर संकट में पड़ सकते हैं।