दिनांक 21 अप्रैल 2025 को छत्तीसगढ़ वन विभाग के मुखिया एवं वनबल प्रमुख श्री व्ही. श्रीनिवास राव द्वारा जारी एक स्थानांतरण आदेश ने विभागीय गलियारों में भारी चर्चाओं को जन्म दे दिया है। इस आदेश के तहत वरिष्ठ वनक्षेत्रपाल श्री प्रकाश ठाकुर को परिक्षेत्र अधिकारी चित्रकूट के पद से हटाकर वृत्त कार्यालय जगदलपुर (विशेष कर्तव्य) में पदस्थ किया गया है, वहीं उनकी जगह वनक्षेत्रपाल श्री रामदत्त नागर को जोकि वृत्त कार्यालय विशेष कर्तव्य थे उन्हें चित्रकूट परिक्षेत्र अधिकारी नियुक्त किया गया है।
इस बेमौसम आदेश को लेकर विभागीय कर्मचारियों और आम नागरिकों के बीच अनेक सवाल खड़े हो गए हैं। सूत्रों के अनुसार, यह स्थानांतरण न केवल असमय है, बल्कि परिस्थितिजन्य रूप से विवादस्पद भी प्रतीत हो रहा है। सबसे बड़ा सवाल यह उठाया जा रहा है कि आखिर एक ऐसा आदेश निकालने की क्या मजबूरी थी, जिसे आमतौर पर जून माह के रेगुलर ट्रांसफर के दौरान किया जा सकता था?
प्रकाश ठाकुर के खिलाफ नहीं थे कोई आरोप
श्री प्रकाश ठाकुर एक अनुभवी, मृदुभाषी और मिलनसार अधिकारी माने जाते हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार उनके खिलाफ किसी भी तरह की कोई विभागीय जांच या गंभीर आरोप नहीं थे। उल्टा, आगामी कुछ महीनों में उनकी ACF पद पर पदोन्नति संभावित थी। ऐसे में उन्हें अचानक पद से हटाना न केवल असमय, बल्कि एक तरह से अपमानजनक भी माना जा रहा है।
नए पदस्थ अधिकारी की कार्यप्रणाली पर सवाल
उनकी जगह नियुक्त किए गए श्री रामदत्त नागर की विभागीय छवि पर भी प्रश्नचिह्न लगाए जा रहे हैं। ज्ञात हो कि श्री नागर पूर्व में कांकेर वनमंडल, करपावंड परिक्षेत्र एवं कांगेर घाटी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में पदस्थ रह चुके हैं, जहां वे भ्रष्टाचार, शासन आदेशों की अवहेलना और महिला से जुड़ी विवादास्पद घटनाओं के चलते विवादों में रहे हैं। ऐसे में एक महत्वपूर्ण पर्यटन क्षेत्र चित्रकूट में उनकी नियुक्ति को लेकर चिंता जताई जा रही है।
राजनीतिक दबाव और वनबल प्रमुख की चुप्पी
कई विभागीय सूत्रों का कहना है कि यह निर्णय किसी राजनैतिक दबाव के चलते लिया गया है, संभवतः किसी मंत्री या विधायक के परिजन की सिफारिश पर। यदि ऐसा है तो सवाल उठता है कि क्या पीसीसीएफ श्रीनिवास राव को इस पर आपत्ति नहीं जतानी चाहिए थी? क्या उन्हें मंत्री को यह नहीं बताना चाहिए था कि ऐसे फैसले से विभागीय कार्यों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है?
बताया जा रहा है कि श्री नागर का “सत्ता से जुड़ा संपर्क” इतना मजबूत था कि मंत्री जी स्वयं उन्हें नकार नहीं पाए, और उन्होंने निर्णय की जिम्मेदारी पीसीसीएफ पर डाल दी। राव के सामने शायद अपनी कुर्सी बचाने और सेवा निवृत्ति तक वनबल प्रमुख बने रहने की मजबूरी रही होगी, जिससे उन्होंने यह विवादस्पद आदेश निकाल दिया।
कार्यशाला में उठे सवाल, फिर भी नहीं लिया सबक
22 और 23 अप्रैल को रायपुर में वन विभाग द्वारा एक कार्यशाला आयोजित की गई थी, जिसमें रिटायर्ड IFS अधिकारियों समेत वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए थे। कार्यशाला में यह बात भी उठी कि समय पर बजट, सही पदस्थापना और तकनीकी कर्मचारियों एवं कर्मचारियों में तकनिकी ज्ञान की कमी के चलते विभागीय कार्य प्रभावित होते हैं। ऐसे में जब खुद वरिष्ठ अधिकारी इस बात को मान रहे हैं, तो फिर एक विवादित अधिकारी को महत्वपूर्ण परिक्षेत्र में पदस्थ करने का निर्णय कितना उचित है?
चित्रकूट की संवेदनशीलता को क्यों नजरअंदाज किया गया?
चित्रकूट न केवल एक पर्यटन क्षेत्र है, बल्कि वहाँ विभागीय कार्यभार भी अपेक्षाकृत अधिक रहता है। वहाँ एक ऐसे अधिकारी की आवश्यकता है जो सजग, अनुभवी और बेदाग हो। श्री नागर के पुराने रिकार्ड को देखते हुए यह कैसे गारंटी दी जा सकती है कि वे वहाँ बिना किसी विवाद के कार्य कर सकेंगे? क्या भविष्य में कोई और घटना विभाग के लिए शर्मिंदगी का कारण नहीं बनेगी?
स्थानांतरण आदेश की वैधानिकता पर उठते सवाल
छत्तीसगढ़ शासन के सेवा नियमों के अनुसार, किसी नियमित वनकर्मी (जैसे – वनरक्षक, वनपाल, परिक्षेत्र अधिकारी) का बेमौसमी स्थानांतरण केवल विशेष परिस्थिति में किया जा सकता है, वह भी प्रमुख सचिव/अपर मुख्य सचिव (ACS) के पूर्व अनुमोदन एवं प्रशासनिक अनुमति के उपरांत।
दिनांक 21.04.2025 को जारी स्थानांतरण आदेश में यह स्पष्ट रूप से देखा गया कि:

आदेश में केवल “सूचनार्थ व अनुमोदनार्थ” प्रति भेजी गई है,
ACS श्रीमती ऋचा शर्मा से न तो पूर्व अनुमति ली गई है, न ही कोई प्रशासनिक समन्वय दर्शाया गया है,
आदेश पर केवल वनबल प्रमुख (PCCF) व्ही श्रीनिवास राव के हस्ताक्षर हैं,
महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जब नियमानुसार वनबल प्रमुख को वनरक्षक या चौकीदार स्तर तक का नियमित स्थानांतरण करने का अधिकार नहीं है, तब ऐसे निर्णय क्यों और कैसे लिए गए?
अब नज़रें टिकी हैं ईमानदार छवि वाली अपर मुख्य सचिव श्रीमती ऋचा शर्मा पर —
क्या वे इस विवादित व अवैधानिक आदेश को निरस्त करेंगी?
या फिर वे भी इस “प्रेशर पोस्टिंग” को मौन सहमति देकर नज़रअंदाज़ करने के मूड में हैं?
आमजनों की मांग: आदेश पर पुनर्विचार हो
यह स्थानांतरण न केवल विभागीय कर्मचारियों बल्कि आम नागरिकों को भी गले नहीं उतर रहा है। लोग मांग कर रहे हैं कि इस आदेश पर शासन व वनबल प्रमुख आत्ममंथन करें, और यदि संभव हो तो इस निर्णय को निरस्त कर विभाग की साख को बचाया जाए।
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लेखक: 4thPiller.com संपादकीय टीम
स्रोत: विभागीय सूत्र, स्थानांतरण आदेश प्रति, कर्मचारी प्रतिक्रियाएं