बागबाहरा में बाघ-गौर और अब पिथौरा में दो चीतलों की मौत से वन विभाग में हड़कंप, वनमंडलाधिकारी ने संभाली कमान

छत्तीसगढ़। बीते 48 घंटों के भीतर महासमुंद और पिथौरा वन परिक्षेत्रों में चार वन्यप्राणियों की मौत ने पूरे वन विभाग को झकझोर कर रख दिया है। बागबाहरा परिक्षेत्र के खल्लारी कक्ष क्रमांक 182 PF में एक वयस्क गौर एवं एक बूँदी वाला बाघ (चिता) का शव मिलने के महज दो दिन बाद पिथौरा के बुढ़ेली एवं बृहस्पतिडीह जंगलों में दो चीतलों की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत की खबर सामने आई है।

बाघ-गौर की करंट से हत्या, वन विभाग की तत्परता
20 अप्रैल को बागबाहरा के जंगल में करंटयुक्त जाल से बाघ और गौर की मौत की घटना से वन विभाग सकते में आ गया। प्रारंभिक जांच में स्पष्ट हुआ कि शिकारीयों ने जानबूझकर करंट फैलाकर इन संरक्षित प्रजातियों को मौत के घाट उतारा।
सूचना मिलते ही वनमंडलाधिकारी श्री पंकज राजपूत घटनास्थल पर पहुंचे और NTCA गाइडलाइंस के तहत तत्काल वैज्ञानिक व कानूनी प्रक्रिया शुरू की गई। शवों का पोस्टमार्टम, फॉरेंसिक सैंपल कलेक्शन एवं इलेक्ट्रिक ट्रैप की जब्ती की गई। साथ ही आसपास के क्षेत्रों में संदिग्धों की पहचान हेतु पूछताछ तेज कर दी गई है।

पिथौरा में दो चीतलों की मौत, शिकार की आशंका
महज दो दिन बाद, 23 अप्रैल को पिथौरा के अंतर्गत बुढ़ेली और बृहस्पतिडीह जंगलों में दो चीतलों के शव मिलने से एक बार फिर शिकार की आशंका बलवती हो गई है। ग्रामीणों के अनुसार मृत चीतलों के शरीर पर करंट या ज़हर दिए जाने के संकेत मिले हैं।
वन विभाग की टीम ने तत्काल स्थल का निरीक्षण कर साक्ष्य संकलन किया। वनमंडलाधिकारी श्री राजपूत ने व्यक्तिगत रूप से प्रकरण में रुचि लेते हुए अधीनस्थ अधिकारियों को अपराधियों की पहचान कर कठोर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।

कर्मचारियों पर कार्रवाई की मांग और वनमंडलाधिकारी का जवाब
ग्रामीणों द्वारा विभागीय कर्मचारियों पर कार्रवाई की मांग के बीच श्री राजपूत ने स्पष्ट किया कि – “सिर्फ कार्रवाई से समाधान नहीं होगा। हमारे पास सीमित स्टाफ है, हम उन्हें प्रशिक्षित कर अपराध रोकने हेतु सक्षम बना रहे हैं। जवाबदेही ज़रूरी है, लेकिन साथ ही स्टाफ का मनोबल भी टूटने नहीं देना चाहिए।”

संवेदनशील नेतृत्व और सख्त संदेश
पंकज राजपूत जैसे अधिकारियों की तत्परता और संवेदनशीलता ने यह संदेश दिया है कि वन्यप्राणियों के प्रति अपराध को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत दोषियों को सख्त सजा दिलाने के लिए वन विभाग सभी आवश्यक कदम उठा रहा है।

निष्कर्ष:
लगातार हो रही वन्यप्राणियों की मौतें न केवल पर्यावरणीय संतुलन के लिए खतरा हैं, बल्कि यह जंगलों में बढ़ती असुरक्षा का भी संकेत हैं। परंतु श्री पंकज राजपूत जैसे संवेदनशील अधिकारियों के नेतृत्व में वन विभाग सक्रिय रूप से इन चुनौतियों का सामना कर रहा है और अपराधियों पर शिकंजा कसने की दिशा में ठोस कदम उठा रहा है।

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