“वनविभाग में सुधार की कार्यशाला या अपराध का शुद्धिकरण ?”           “भ्रष्टाचार पर मौन, कार्यशाला पर शोर!””जिनसे जवाब माँगना था, उन्हीं से प्रवचन सुनिए!”

संपादकीय: जब कर्ता ही कारण बन जाए तो सुधार कैसे संभव?

4thpiller.com के लिए शेख अब्दुल करीम की कलम से…

छत्तीसगढ़ वन विभाग में इन दिनों एक “सुधार की लहर” चल पड़ी है। 22 और 23 अप्रैल 2025 को दो दिवसीय अंतरराज्यीय कार्यशाला आयोजित की जा रही है। उद्देश्य है — विभागीय कार्यप्रणाली में आ रही व्यवहारिक दिक्कतों को समझना, समाधान खोजना, और भविष्य की दिशा तय करना। इसमें प्रदेश के पूर्व PCCF, अन्य राज्यों के विशेषज्ञ और मौजूदा शीर्ष अधिकारी शामिल हैं। लाखों रुपये खर्च कर यह संदेश दिया जा रहा है कि अब विभाग अपने भीतर झाँकने को तैयार है।

“सागरेया स्मृति राष्ट्रीय सिल्वीकल्चर सम्मेलन” को समझिए

इसका विस्तृत अर्थ इस प्रकार है:

Sagreiya Memorial – यह सम्मेलन वन प्रबंधन विशेषज्ञ श्री बी. एन. सागरेया (B.N. Sagreiya) की स्मृति में आयोजित किया जाता है। वे भारत के प्रसिद्ध वानिकी विशेषज्ञ और पूर्व IFS अधिकारी थे, जिन्होंने भारतीय वानिकी के क्षेत्र में अहम योगदान दिया था।

National Silviculture Conference –

Silviculture का मतलब है: “वृक्षों और जंगलों की वैज्ञानिक तरीके से खेती और प्रबंधन”, यानी जंगल को टिकाऊ तरीके से उगाना, उसका संरक्षण और पुनरुत्पादन सुनिश्चित करना।

National Conference यानी “राष्ट्रीय सम्मेलन” — जिसमें देशभर के विशेषज्ञ, अधिकारी, वैज्ञानिक आदि भाग लेते हैं।

ज्यादा पूरा कार्यक्रम देखने के लिए इस लिंक पर क्लीक करें.. 

संक्षेप में:
यह सम्मेलन वनों के वैज्ञानिक प्रबंधन (सिल्वीकल्चर) पर केंद्रित एक राष्ट्रीय स्तर की बैठक होती है, जो सागरेया जी की स्मृति में आयोजित होती है और इसका उद्देश्य वानिकी नीति, अनुसंधान और फील्ड कार्यों में सुधार को लेकर विचार-विमर्श करना होता है।

पर सवाल यह है — क्या यह आत्मनिरीक्षण वाकई ईमानदार है? या फिर यह “सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली” की महज एक और बानगी है?

दरअसल, पिछले एक दशक में छत्तीसगढ़ का वन विभाग अराजकता, राजनीतिक दबाव, और मनमानी पोस्टिंग की त्रासदी से जूझता रहा है। वे अधिकारी जो आज मंच पर बैठकर सुधार की बातें कर रहे हैं, वही कभी उन नीतियों के निर्माता थे जिनकी वजह से आज ये कार्यशाला आवश्यक हो पड़ी है। जब वे ताकतवर कुर्सियों पर थे, तो उन्होंने न तो योग्य कर्मचारियों की तैनाती सुनिश्चित की, न ही फील्ड स्तर की वास्तविक समस्याओं की सुध ली। अयोग्य कर्मियों की तैनाती और उन्हें कठपुतली की तरह इस्तेमाल करना एक सामान्य कार्यशैली बन चुकी थी।

राजनीति, प्रमोशन और भ्रष्टाचार की तिकड़ी

आज विभाग जिस दलदल में खड़ा है, उसमें अहम भूमिका रही है उन अधिकारियों की जो अपने “चहेतों” को रेंजर, SDO, DFO जैसे पदों पर बिठाकर केवल हां में हां मिलवाते रहे। सिस्टम के नाम पर जो कुछ भी गलत होता रहा, उस पर पर्दा डाला गया। उदाहरण स्वरूप — एक रेंजर यदि कहे कि “व्हाउचर कल बना दूंगा, आज चेक काट दीजिए ताकि बैंक से कैश ला सकूं”, तो समझा जा सकता है कि किस प्रकार योजनाओं को लूट की खदान बना दिया गया।

वर्तमान में उजागर हुआ एक भयावह मामला

25 मार्च 2025 से लेकर अब तक सामने आए गुरुघासीदास-तमोरपिंगला टाइगर रिजर्व के मामले ने तो विभाग की सच्चाई को खुलकर सामने ला दिया है। सोनहत पार्क रेंज में 7 नालों के नाम पर ₹1.38 करोड़, रामगढ़ पार्क रेंज में 6 स्टॉपडेम के नाम पर ₹1.15 करोड़ और लेंटाना उन्मूलन के नाम पर ₹55 लाख — कुल ₹3.08 करोड़ के फर्जी व्हाउचर बनवाकर राशि निकाल ली गई। सबसे दुखद यह है कि इस गंभीर शिकायत की जांच वनबल प्रमुख और PCCF (वन्यप्राणी) द्वारा जानबूझकर रोकी गई। यानी ना सिर्फ भ्रष्टाचार हुआ, बल्कि उसे संरक्षण भी दिया गया।

भविष्य में किस तरह की कार्यशालाएं होंगी?

आज हम वनों के संरक्षण व पुनरुत्पादन की योजनाओं पर कार्यशाला कर रहे हैं, पर आने वाले कुछ वर्षों में शायद हमें “वन विभाग में भ्रष्टाचार कैसे रोका जाए” पर कार्यशालाएं करनी पड़ेंगी — और तब यही चेहरे हमें मंच पर लच्छेदार भाषण देते दिख सकते हैं, जिन्हें आज शिकायतों के बावजूद संरक्षण मिला हुआ है।

निजी स्वार्थ बनाम संस्थागत उत्तरदायित्व

इस पूरे परिदृश्य में यह सवाल बेहद मौजूं है — जब सिस्टम में बैठा व्यक्ति ही अपने निजी लाभ के लिए व्यवस्था को तोड़ता-मरोड़ता है, तो सुधार की उम्मीद कैसे की जाए? यदि वही अधिकारी, जो अपनी जिम्मेदारियों से बचते रहे, आज सुधार की बातें करें तो यह केवल प्रहसन प्रतीत होता है।

सुधार की दिशा: पहले खुद को सुधारिए

हम यह नहीं कहते कि किसी को जज किया जाए, पर जबतक खुद में सुधार नहीं होगा, तब तक सिस्टम में सुधार की बात केवल खोखली नारेबाजी ही रहेगी। हमारी अपील है — विभाग के शीर्ष अधिकारी आत्मावलोकन करें, सिर्फ भाषण न दें बल्कि ईमानदारी से अपनी भूमिका को समझें और स्वीकारें।

सुधार की शुरुआत पोस्टिंग प्रक्रिया से होनी चाहिए। योग्य अफसरों को फील्ड में भेजें, शिकायतों की निष्पक्ष जांच हो, और भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने की संस्कृति का अंत किया जाए। तभी यह कार्यशाला सिर्फ एक “Event” न बनकर वास्तविक परिवर्तन की ओर पहला कदम बन पाएगी।

अंतिम में आयोजको व जिन IFS के पास थोड़ी बहुत ईमानदारी बची है उन सीनियर IFS के लिए तीन सलाह

1. “कम से कम किसी ने तो सुध की!”
इस कलयुगी दौर में जब ज़्यादातर अफसर जंगलों को सिर्फ बजट की नज़र से देखते हैं, ऐसे में जिसने भी इस कार्यशाला का आयोजन सोचने की हिम्मत की, वो वाकई में सम्मान का हकदार है। भले ये देर से हुआ, पर जंगलों की सुध लेना शुरुआत तो है — दिल से सलाम!

2. “गुनहगारों को मंच नहीं, आईना दिखाना चाहिए!”
जो अफसर जंगलों की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार रहे, उन्हें कार्यशाला में बुलाकर फूल-मालाएं पहनाना क्या संदेश देता है? क्या ये पश्चाताप का मौका था, या उनके कर्मों पर पर्दा डालने का मंच? उन्हें बुलाकर आपने पछतावे का अवसर भी छीन लिया!

3. “IFS पर कार्रवाई कब होगी?”


गुरुघासीदास-तमोर पिंगला में 3.08 करोड़ के गबन के आरोपी IFS अधिकारी को सस्पेंड करने की बजाय सीनियर अफसर उसे दिलासा दे रहे हैं: “घबराओ मत, हम हैं ना!” — जब जांच टीम पिकनिक बना ले और PCCF दिल्ली की सैर, तो जंगल बर्बादी नहीं तो और क्या? अगर ऐसे अधिकारियों के घरों से संपत्तियां निकलें तो आश्चर्य कैसा?

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