AI से ‘जिंदा’ हुई बाल ठाकरे की आवाज, नासिक रैली में बजा ऑडियो बना सियासी विवाद की जड़

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बाल ठाकरे AI आवाज, शिवसेना विवाद, उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे, महाराष्ट्र राजनीति


नासिक रैली में AI से गूंजी बाल ठाकरे की आवाज, शिवसेना में जुबानी जंग तेज

मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया विवाद उस समय भड़क उठा जब नासिक में एक रैली के दौरान शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की आवाज को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) तकनीक की मदद से दोबारा “जिंदा” किया गया। 13 मिनट की इस ऑडियो क्लिप ने शिवसेना और शिवसेना (UBT) के बीच एक नई जुबानी जंग छेड़ दी है।


 शिंदे गुट का पलटवार: उद्धव ने किया बालासाहेब के आदर्शों से विश्वासघात

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे ने इस पूरे घटनाक्रम को बाल ठाकरे का “अपमान” बताया। उन्होंने उद्धव ठाकरे पर निशाना साधते हुए कहा:

“हमने शिवसेना को कांग्रेस के चंगुल से मुक्त किया। उद्धव ठाकरे सत्ता और जनता दोनों से बाहर हो चुके हैं। अगर उनमें थोड़ी भी शर्म बाकी है, तो उन्हें बालासाहेब की छवि को इस तरह से तोड़-मरोड़ कर पेश नहीं करना चाहिए।”

शिंदे ने साल 2022 में उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर शिवसेना को दो भागों में बांट दिया था।


विवाद की जड़: बाल ठाकरे की AI से तैयार 13 मिनट की ऑडियो क्लिप

नासिक की इस रैली में बजाई गई 13 मिनट की ऑडियो क्लिप में बाल ठाकरे की आवाज AI से तैयार की गई थी, जिसमें वह मौजूदा राजनीतिक हालातों पर टिप्पणी करते सुनाई दिए।

भाजपा ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी।
महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने इसे “बचकाना हरकत” बताया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपनी नाराजगी जाहिर की।


 शिवसेना (UBT) का पलटवार: “नकली शिवसेना वालों को बोलने का हक नहीं”

शिवसेना (UBT) के कद्दावर नेता और सांसद संजय राउत ने शिंदे गुट और भाजपा की आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा:

“जिन्होंने बाल ठाकरे के नाम पर नकली शिवसेना खड़ी की है, उन्हें इस विषय पर बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। पिछले महीने भी एक पार्टी कार्यक्रम में AI के जरिए बालासाहेब की आवाज का प्रयोग हुआ था। इसमें नया कुछ नहीं है।”

राउत ने इसे तकनीक के इस्तेमाल का उदाहरण बताया और कहा कि इसका उद्देश्य श्रद्धांजलि देना था, ना कि किसी की छवि का दुरुपयोग।


 तकनीक बनाम नैतिकता: AI के इस्तेमाल पर बड़ा सवाल

यह विवाद केवल राजनीति तक सीमित नहीं है। यह AI तकनीक के नैतिक उपयोग पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है:

  • क्या दिवंगत नेताओं की आवाज या छवि को AI से दोबारा पेश करना उचित है?

  • क्या इससे उनकी छवि के साथ खिलवाड़ हो सकता है?

  • और क्या इस तकनीक का प्रयोग जनता की भावनाओं को भुनाने के लिए हो रहा है?

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