IFS सौरभ ठाकुर ने बिना स्टॉपडेम बनवाए हजम किए 1.38 करोड़, जाँच से राहत पाने शिकायतकर्ता के खिलाफ फर्जी ब्लैक मैलिंग का मामला बनवाने के फिराक में, जाँच टीम पर भी उठे सवाल

कोरिया/अंबिकापुर।

गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान सोनहत अंतर्गत सात नालों में बिना निर्माण के स्टॉपडेम दर्शाकर 1.38 करोड़ रुपये की सरकारी राशि निकाल ली गई। इस मामले में संचालक सौरभ ठाकुर और रेंजर महेश टुंडे सहित अन्य अधिकारियों की भूमिका पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। शिकायतकर्ता अब्दुल सलाम कादरी द्वारा इस घोटाले की लिखित शिकायत वनबल प्रमुख श्री व्ही श्रीनिवास राव, PCCF श्री सुधीर अग्रवाल, APCCF श्री प्रेम कुमार, मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ और प्रधानमंत्री कार्यालय को लगभग 15 दिन पूर्व दी जा चुकी है।

APCCF प्रेम कुमार ने मामले की जांच का जिम्मा CCF (वन्यप्राणी) बिलासपुर श्री मनोज कुमार पाण्डेय को सौंपा था, जिन्होंने जांच का आश्वासन भी दिया। लेकिन शिकायतकर्ता के अनुसार, जांच टीम ने मौके का निरीक्षण किए बिना ही रेस्ट हाउस में पार्टी की और संचालक को जल्द से जल्द कार्य पूरा करने का निर्देश देकर लौट गई। यह बात विभागीय सूत्रों के हवाले से सामने आई है।

सूत्रों का दावा है कि जांच टीम को “मैनेज” कर लिया गया है और ऊपर से दबाव के चलते कार्रवाई में विलंब हो रहा है। इसी बीच अंचल के पत्रकार जब उक्त स्थलों का निरीक्षण करने पहुंचे, तो संचालक द्वारा क्षेत्र में प्रवेश पर रोक लगा दी गई। पूरे इलाके में चौकीदारों और वन रक्षकों की तैनाती कर दी गई ताकि बाहरी लोगों की एंट्री न हो सके।

चॉक चौबंध नो एंट्री के बावजूद उपरोक्त तथ्यों के आलावा कार्य स्थल तक पहुँच कर फ़ोटो ग्राफ़ी सहित अन्य जानकारी लि गई,

जानकारी के अनुसार, निर्माण कार्य को ठेके पर अंबिकापुर, बलरामपुर, रामानुजगंज और वाड्रफनगर के श्रमिकों और मिस्त्रियों से कराया जा रहा है, और निर्माण में लगी सभी मशीनें तमोर पिंगला क्षेत्र के डिप्टी रेंजर अजय सोनी की बताई जा रही हैं।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आने वाले वनांचल क्षेत्रों में मार्च माह में अनेक स्टॉपडेम स्वीकृत किए गए थे। जब मामला चर्चा में आया, तो आनन-फानन में काम शुरू कर दिया गया। जानकारी के अनुसार, राशि की निकासी के लिए जिस अधिकारी कर्मचारी का हस्ताक्षर नहीं लिया गया, अब उनके नाम से हस्ताक्षरित प्रमाणक तैयार कर लिए गए हैं।

इस संबंध में कहा जा रहा है कि जैसे ही मामला उठा कि निर्माण हुआ ही नहीं और राशि निकाल लिए गई, तब से ताबड़तोड़ निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया।

नकली या अपूर्ण सीमेंट के उपयोग?
स्टॉपडेम निर्माण में घटिया सामग्री के उपयोग की शिकायतें हैं। फ्लाई ऐश से बनाए गए ईंटों का उपयोग किस मात्रा में किया जा रहा है और तकनीकी गुणवत्ता के अनुरूप सीमेंट की मात्रा कितनी है, इसे लेकर शिकायतकर्ता एवं स्थानीय लोगों द्वारा संदेह प्रकट किया जा रहा है।

रेत की आपूर्ति पर भी उठे सवाल
गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं कि स्टॉपडेम निर्माण के लिए रेत की आपूर्ति किस स्रोत से हुई और उसके लिए परिवहन की विधिवत अनुमति थी या नहीं?।

वन संसाधनों का दुरुपयोग
स्टॉपडेम निर्माण में सबसे बड़े स्तर पर वन संसाधनों का दुरुपयोग हुआ है। छोटे-छोटे कार्यों के लिए भारी भरकम मशीनों का प्रयोग किया गया, जिससे पर्यावरणीय संतुलन पर एवं वन्यप्राणियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

तकनीकी मानकों की उड़ रही धज्जियाँ
स्थानीय कर्मचारियों के अनुसार, निर्माण स्थल में भारी वाहनों और जेसीबी मशीनों द्वारा की गई खुदाई तथा साइडवाल निर्माण आदि में तकनीकी मानकों का पालन नहीं किया गया है। निर्माण स्थल में मिट्टी की खुदाई के लिए भी वन भूमि का प्रयोग किया गया है, जो अवैध है।

“मशीनों और ठेकेदारों का खेल”


स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि कुछ अधिकारी और ठेकेदारों की मिलीभगत से बिना स्थल परीक्षण और स्वीकृति के निर्माण कार्यों का ठेका दिया गया है। अधिकारियों द्वारा पसंदीदा ठेकेदारों को काम दिया गया और उसी के माध्यम से निर्माण कार्य किया जा रहा है।

शिकायतकर्ता ने दावा किया कि जाँच को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है, और अब सौरभ ठाकुर एवं महेश टुंडे द्वारा उन्हें फर्जी ‘ब्लैकमेलिंग’ के आरोप में फँसाने की कोशिश हो रही है। लेकिन शिकायतकर्ता ने हार न मानने का संकल्प दोहराया और कहा कि उन्होंने ACB और EOW में शपथ पत्र के साथ शिकायत कर दी है।

अब बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या छत्तीसगढ़ में भ्रष्ट अफसरशाही हावी रहेगी या वन मंत्री केदार कश्यप का सुशासन प्रभावी होगा? यदि निष्पक्ष जांच हुई, तो IFS सौरभ ठाकुर पर गाज गिरना तय है।

श्री व्ही श्रीनिवास राव (वनबल प्रमुख) का वर्जन में सवाल जाँच या औपचारिकता?
बैकुंठपुर में गुरुघासीदास टाइगर रिजर्व के संचालक IFS सौरभ ठाकुर पर 7 स्टॉपडेम बिना निर्माण किए 1.38 करोड़ रुपये की राशि बंदरबांट करने का गंभीर आरोप सामने आने के बाद जब इस मामले की जानकारी फोन पर वनबल प्रमुख श्री व्ही श्रीनिवास राव को दी गई, तो उनका जवाब चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा, “आप क्या चाहतें हैं? अगर आप जाँच चाहतें हैं तो जाँच करा देंगे!”

इस जवाब ने ये सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भ्रष्टाचार के इतने बड़े मामले में उच्च अधिकारी भी सिर्फ औपचारिकता निभाने भर तक ही सीमित रहेंगे? क्या जाँच एक विकल्प मात्र है या व्यवस्था का अनिवार्य अंग?

इसी तरह जब पीसीसीएफ (वन्यप्राणी) श्री सुधीर अग्रवाल को उपरोक्त तथ्यों की जानकारी देकर लिखित शिकायत की बात कही गई, तो उन्होंने जवाब दिया – “आप शिकायत भेज दीजिए… मैं देखता हूँ क्या किया जा सकता है।”

इन जवाबों से यह सवाल उठता है कि क्या इतने बड़े घोटालों में कार्रवाई के बजाय सिर्फ “देखने” और “सोचने” तक ही सीमित रहेंगे जिम्मेदार अफसर? क्या सच में कोई कड़ी कार्रवाई होगी या फिर मामला एक और फाइल में दब जाएगा?

CCF मनोज पाण्डेय का भरोसा – “जाँच तो जाँच की तरह ही होगी”

गुरुघासीदास टाइगर रिजर्व में बिना निर्माण के स्टॉपडेम घोटाले की शिकायत पर पूछे जाने पर एटीआर बिलासपुर के सीसीएफ (वन्यप्राणी) श्री मनोज पाण्डेय ने जवाब दिया –
“ऊपर से जाँच के लिए मुझसे कहा गया है। अभी छुट्टियां हैं, इसके बाद हमारी टीम अवश्य जाँच में जाएगी। जो भी स्थिति होगी, उसे ऊपर तक अवगत करा दिया जाएगा।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि – “आप बेफिक्र रहें, जाँच तो जाँच की तरह होगी। हम सभी तैयारियां कर, सभी जाँच सदस्यों की उपस्थिति में ही जाँच के लिए जाते हैं। अचानक कुछ नहीं होता।”

अब देखना यह होगा कि यह “भरोसे” और “प्रक्रिया” के नाम पर कितनी गंभीरता से जाँच होती है और क्या वास्तव में दोषियों तक कार्रवाई की गाज गिरती है, या यह भी सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी।

“भ्रष्टाचार की ‘ट्रेनिंग’ जरूरी?”

गुरुघासीदास टाइगर रिजर्व के संचालक सौरभ ठाकुर द्वारा बिना कार्य कराए 1.38 करोड़ की राशि आहरण के मामले में अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या नए IFS अधिकारियों को सीनियर IFS से यह सीखना चाहिए कि एडवांस में बिल-वाउचर बनाकर इस तरह जोखिम नहीं उठाना चाहिए।

वन महकमे के जानकारों का कहना है कि यदि ऐसे करोड़ों के बजट वित्तीय वर्ष के समाप्ति पर फ़रवरी या मार्च में दिए जातें है तो जितना कार्य हो सकता है वो कराने के बाद बाकि को समर्पित कर देना चाहिए और फिर किसी कार्य के लिए राशि की आवश्यकता है तो 15 अप्रैल के बाद एक आधिकारिक पत्र के माध्यम से वैध तरीके से फंड की मांग की जा सकती है। परंतु यहाँ जिस प्रकार बिना कार्य किए राशि आहरण हुआ है, उससे यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि यह राशि भविष्य में कार्य पूर्ण कर भुगतान करने की मंशा से ली गई थी या फिर इसे हड़पने की मंशा थी।

ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि सौरभ ठाकुर जैसे अधिकारियों को “भ्रष्टाचार से बचने की ट्रेनिंग” दिए जाने की ज़रूरत है, ताकि भविष्य में ऐसी गंभीर अनियमितताएं न दोहराई जाएँ।

 

वित्तीय नियमों की अनदेखी और समय के विपरीत बजट जारी करना भी बड़ी लापरवाही

गुरुघासीदास टाइगर रिजर्व में बिना निर्माण कार्य कराए 1.38 करोड़ रुपये की राशि आहरण का मामला केवल फील्ड स्तर के अधिकारी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें वन मुख्यालय के बजट आबंटन और नियंत्रण अधिकारियों की भी बड़ी भूमिका सामने आती है।

फरवरी और मार्च में बजट जारी करना नियमानुसार गलत क्यों?

वित्तीय नियमों और Budget Release Order (BRO) के दिशा-निर्देश स्पष्ट रूप से कहते हैं कि निर्माण कार्यों में समय, प्रक्रिया और गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। किसी भी निर्माण कार्य को नियमानुसार पूर्ण कराने में कम से कम कुछ माह का समय लगता है, क्योंकि इसमें मंजूरी, स्थल निरीक्षण, एजेंसी चयन, कार्यादेश, निर्माण, मापन और भुगतान प्रक्रिया जैसी कई विधियां शामिल होती हैं।

ऐसे में वित्तीय वर्ष के अंतिम दो माह—फरवरी और मार्च में करोड़ों की राशि, वो भी 1.38 करोड़ जैसी बड़ी राशि, देना न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि यह BRO के नैतिक और प्रशासनिक सिद्धांतों का उल्लंघन है।

वित्त विभाग एवं CAG की आपत्तियाँ संभावित:
लेखा परीक्षक (CAG) द्वारा भी पहले कई बार यह आपत्ति दर्ज की जा चुकी है कि वित्तीय वर्ष के अंतिम क्षणों में खर्च बढ़ाकर बजट को समाप्त करना वित्तीय अनुशासन का उल्लंघन है, और इस तरह के मामलों में भविष्य में भी ऑडिट आपत्तियाँ आ सकती हैं।

जिम्मेदारी तय होनी चाहिए:

 

इस पूरे मामले में यह जरूरी है कि सिर्फ कार्य कराने वाले अधिकारी पर ही नहीं, बल्कि बजट आबंटन करने वाले उच्च अधिकारी एवं बजट नियंत्रण अधिकारी की भूमिका की भी जाँच हो। क्या उन्होंने जानबूझकर इतनी बड़ी राशि वर्ष के अंतिम दो महीनों में जारी की? क्या उन्हें यह नहीं पता था कि इतने कम समय में निर्माण कार्य संभव नहीं होगा?

इस तरह के प्रकरणों में केवल भ्रष्टाचार की आशंका नहीं होती, बल्कि यह प्रशासनिक दक्षता की कमी और वित्तीय अनुशासनहीनता को भी दर्शाता है। ऐसे में संबंधित अधिकारियों पर विभागीय कार्यवाही प्रस्तावित की जानी चाहिए ताकि भविष्य में इस प्रकार की अनियमितताओं पर अंकुश लग सके।

 

IFS लॉबी बनाम ईमानदारी: क्या सौरभ ठाकुर का ‘दबावतंत्र’ जाँच से बड़ा है?

छत्तीसगढ़ के वन महकमे में एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं — क्या IFS अधिकारियों की लॉबी, वित्तीय अनुशासन और जनहित से ऊपर हो गई है? गुरुघासीदास टाइगर रिज़र्व बैकुंठपुर के संचालक IFS सौरभ ठाकुर द्वारा बिना कार्य कराए 1.38 करोड़ रुपये के फर्जी व्हाउचरों के माध्यम से आहरण का मामला न केवल जाँच की माँग करता है, बल्कि पूरे सिस्टम की रीढ़ पर सवाल खड़े करता है।

नियम क्या कहते हैं  ?

वित्तीय नियमों एवं छत्तीसगढ़ शासकीय लेखा संहिता (CG Financial Code) के अनुसार –

  • बिना कार्य के प्रमाण-पत्र, माप पुस्तिका (MB) और तकनीकी स्वीकृति के, किसी भी निर्माण कार्य की राशि का आहरण अवैध है।
  • कार्य की पूर्ति के बिना भुगतान फर्जीवाड़ा की श्रेणी में आता है, और यह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(d) के तहत दंडनीय है।
  • वन विभाग के बी.आर.ओ. गाइडलाइंस के तहत निर्माण कार्य के लिए बजट तभी जारी किया जाना चाहिए जब कार्य की व्यवहारिक शुरुआत हो जाए।

सौरभ ठाकुर: सिस्टम को साधने की मिसाल?

शिकायतकर्ता द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, सौरभ ठाकुर पिछले 20 दिनों से इस पूरे प्रकरण को प्रभावशाली ढंग से दबाए हुए हैं। उन्होंने न केवल वनबल प्रमुख व्ही. श्रीनिवास राव, PCCF (वन्यप्राणी) सुधीर अग्रवाल, APCCF प्रेमकुमार और जाँच अधिकारी CCF मनोज पांडेय को साधे रखा है, बल्कि ऐसा दबाव बनाया कि आज तक कोई जाँच स्थल तक भी नहीं पहुँचा

यह स्थिति बताती है कि कैसे IFS लॉबी कई बार तंत्र को लकवाग्रस्त बना देती है, और नए IFS अधिकारियों में कुछ ऐसे भी हैं जो दबाव, राजनीतिक पहुँच और नेटवर्क से न केवल खुद को बचा ले जाते हैं बल्कि पूरी व्यवस्था को पंगु बना देते हैं।

क्या ईमानदार अफसर सिर्फ अपवाद बनकर रह गए?

पूर्व में IFS अशोक पटेल पर तेंदूपत्ता बोनस घोटाले में कार्रवाई तब ही हो पाई जब ईमानदार CCF आर.सी. दुग्गा ने निडर होकर जाँच की। श्री दुग्गा खुद आदिवासी समाज से हैं और उन्हेँ आम जन की पीड़ा का भान था। उन्होंने राजनीतिक दबाव के बावजूद निष्पक्ष जाँच की और परिणामस्वरूप एक ताकतवर IFS को निलंबन झेलना पड़ा।

अब सवाल ये है:

क्या श्रीनिवास राव, सुधीर अग्रवाल, प्रेमकुमार और मनोज पाण्डेय में भी वही ईमानदारी और साहस है?
या वे भी IFS लॉबी और सत्ता संरक्षण के पंखों में उड़ते हुए AC कमरों तक सीमित रहेंगे, और जनता की गाढ़ी कमाई के गबन पर चुप्पी साध लेंगे?

अब तय करना शासन और समाज को है कि
“IFS लॉबी जीतेगी या ईमानदारी और न्याय की भावना?”

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