स्थान: मनेन्द्रगढ़ |
दिनांक: 4 अप्रैल 2025
रिपोर्ट: अब्दुल शेख करीम (ग्राउंड जीरो से)
मनेन्द्रगढ़ वन मंडल इन दिनों भीषण आग की चपेट में है और हालात लगातार बेकाबू होते जा रहे हैं। लेकिन इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि जंगल में लगातार फैल रही इस आग पर काबू पाने के लिए वन विभाग की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। विभाग की घोर लापरवाही के कारण लाखों की वन संपदा जलकर खाक हो चुकी है।
20 दिनों से जल रहे जंगल, अधिकारी नदारद
लगभग बीस दिनों से मनेन्द्रगढ़ के जंगलों में आग लगी हुई है। खास तौर पर कुँवारपुर परिक्षेत्र के मसौरा बीट के कक्ष क्रमांक 1232 और 1233 में भारी नुकसान हुआ है। यहां जनवरी-फरवरी में की गई कूप कटाई के बाद लाखों की लकड़ियों को सुरक्षित तरीके से चट्टों में रखा गया था, लेकिन आग की चपेट में आकर वे सभी चट्टे राख में तब्दील हो चुके हैं।
कागज़ों में काम, फील्ड में सन्नाटा
स्थानीय लोगों का आरोप है कि विभाग के अधिकारी और कर्मचारी केवल कागजों पर उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं, जबकि फील्ड में कोई नजर नहीं आता। डीएफओ से लेकर मैदानी अमले तक कोई भी मौके पर नहीं पहुंचा। आगजनी की सूचनाएं दी जाती रहीं, मगर न तो कोई कार्रवाई हुई, न ही कोई राहत कार्य शुरू हुआ।
प्रशासनिक विफलता या मिलीभगत?
लोगों का गुस्सा अब फूटने लगा है। उनका कहना है कि यदि समय रहते आग बुझाने की कोशिश की जाती, तो इतनी भारी क्षति नहीं होती। विभाग की निष्क्रियता केवल लापरवाही नहीं बल्कि एक गंभीर प्रशासनिक विफलता है, जो जंगल की सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े करती है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर जंगलों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन निभाएगा? क्या वन विभाग तभी जागेगा जब पूरा जंगल खाक हो जाएगा?
अब क्या होगी कार्यवाही?
APCCF प्रोटेक्शन श्री सुनील मिश्रा, APCCF प्रोडक्शन श्रीमती संजीता गुप्ता एवं CCF सरगुजा श्री माथेस्वरण इस मामले में क्या कदम उठाएंगे, यह देखने वाली बात होगी। जंगलों में आग लगने की घटनाएं लगातार हो रही हैं, मगर अब तक किसी भी स्तर पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। ऐसे में सवाल उठता है कि ये वरिष्ठ अधिकारी अपने दायित्वों को निभाने के लिए क्या स्टैंड लेंगे? क्या वे केवल रिपोर्ट मंगवाकर फाइलें दबा देंगे, या फिर इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई ठोस कार्रवाई करेंगे ?
शासन-प्रशासन की उदासीनता से यह स्पष्ट हो रहा है कि जंगलों की सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से विफल हो चुकी है। ऐसे में अगर जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो आने वाले दिनों में हालात और भी भयावह हो सकते हैं।
IFS अधिकारियों की प्राथमिकता: जंगल संरक्षण या बजट खत्म करना?
वन विभाग के नए IFS अधिकारियों को वरिष्ठ IFS अधिकारी वन संरक्षण, सुरक्षा और विकास जैसे मुख्य नीतिगत कार्यों पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करने के बजाय केवल पैसे के पीछे भागने में लगा रहे हैं। इन अधिकारियों को तनिक भी चिंता नहीं कि जिस जंगल की रक्षा करने की शपथ लेकर वे सेवा में आए हैं, वही जंगल उनके कार्यकाल में स्वाहा हो रहे हैं।
मार्च का महीना आते ही ये अधिकारी बजट खत्म करने में व्यस्त रहे, जबकि जंगल आग की भेंट चढ़ता रहा। क्षेत्रीय ग्रामीणों ने बार-बार गुहार लगाई, सूचना दी, लेकिन किसी के कानों तक जूँ तक नहीं रेंगी। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वन विभाग की प्राथमिकताएं जंगल बचाने से ज्यादा कागजी कार्यवाही और वित्तीय लेन-देन तक सीमित हो चुकी हैं।
अधिकारियों का वर्जन
इस घटना पर वनबल प्रमुख एवं PCCF श्री व्ही श्रीनिवास राव, APCCF (प्रोटेक्शन) श्री सुनील मिश्रा, और APCCF (उत्पादन) श्रीमती संजीता गुप्ता से यह जानने की कोशिश की गई कि:
क्या उन्हें इस घटना की जानकारी है?
इस आगजनी से वन विभाग को कितनी राजस्व हानि हुई?
इस घटना के लिए कौन-कौन जवाबदार हैं?
किन-किन अधिकारियों/कर्मचारियों पर कार्यवाही की गई है?
लेकिन इन सवालों के जवाब में अधिकारियों का कहना था कि “अभी हम इस पर कुछ नहीं कह सकते जब तक जांच रिपोर्ट नहीं आ जाती।” इस तरह, इन वरिष्ठ अधिकारियों ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कोई भी स्पष्ट जवाब देने से इनकार कर दिया।
(जलते जंगल के दृश्य और ज़मीनी हालात की रिपोर्टिंग के साथ ग्राउंड जीरो से — अब्दुल शेख करीम )