जगदलपुर: जल संसाधन विभाग के कार्यपालन अभियंता (EE) वेद प्रकाश पाण्डेय पर सरकारी बंगले का अवैध निर्माण कराने और नियमों की अनदेखी करने का गंभीर आरोप लगा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह निर्माण बिना प्रशासकीय स्वीकृति, बिना तकनीकी स्वीकृति और बिना टेंडर के किया जा रहा है, जिसमें अब तक लगभग एक करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। शेष कार्यों में साज-सज्जा, पट्टी, रंग-रोगन, टाइल्स, दरवाजे, खिड़कियां आदि शामिल हैं।

अवैध निर्माण और वित्तीय अनियमितता का संदेह

EE को नियमानुसार 142 वर्ग मीटर (अर्थात 1800 वर्ग फुट) क्षेत्रफल के भवन की पात्रता प्राप्त है, लेकिन उन्होंने पुराने भवन को तोड़कर नए बंगले के निर्माण की अनुमति किससे ली? यह बड़ा सवाल बना हुआ है। यह निर्माण शासकीय भूमि पर किया जा रहा है और इसे कोई अज्ञात व्यक्ति अंजाम दे रहा है। अनुमान है कि इस निर्माण की कुल लागत एक करोड़ रुपये तक हो सकती है, लेकिन इस राशि का स्रोत स्पष्ट नहीं है।
मीडिया पर हमला: पत्रकारों को जबरदस्ती निकाला गया
जब जगदलपुर के हमारे पत्रकार मित्र इस अवैध निर्माण की रिपोर्टिंग करने पहुंचे और कार्यपालन अभियंता TDP जल संसाधन विभाग के नव निर्माणाधीन शासकीय आवास में खबर बनानी चाही, तो EE वेद प्रकाश पाण्डेय ने स्वयं एवं अपने कर्मचारियों को आदेश देकर पत्रकारों को धक्का – मुक्की कर बाहर निकाल दिया गया। वीडियो में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि मीडिया कर्मियों और कैमरामैन को धक्का देकर बाहर निकाला गया।


यह प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है और गंभीर चिंता का विषय है। एक सरकारी भवन में हो रहे निर्माण कार्य की रिपोर्टिंग से रोकने का अधिकार किसी अधिकारी को नहीं है, लेकिन EE पाण्डेय ने मीडिया को जबरदस्ती बाहर निकालकर यह साबित कर दिया कि वे पारदर्शिता से बचना चाहते हैं।
पूर्व में भी विवादित रहे हैं EE वेद प्रकाश पाण्डेय

गौरतलब है कि EE वेद प्रकाश पाण्डेय इससे पूर्व अंबिकापुर में क्वालिटी कंट्रोल विभाग में पदस्थ थे, जहां वे अमानक निर्माण कार्यों को ओके रिपोर्ट दिया करते थे। इसी वजह से उन्हें निलंबित भी किया गया था। अब वे जगदलपुर जल संसाधन संभाग में उसी तरह की गतिविधियों को दोहराते प्रतीत हो रहे हैं।
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

हैरानी की बात यह है कि EE कार्यालय और अधीक्षण अभियंता कार्यालय एक ही परिसर में स्थित होने के बावजूद, यह अवैध निर्माण बिना किसी प्रशासनिक या तकनीकी स्वीकृति के हो रहा है। अधीक्षण अभियंता इस पूरे मामले पर आंख मूंदे हुए हैं। जब इस विषय पर RTI के माध्यम से जानकारी मांगी गई, तो आधिकारिक जवाब टाल-मटोल वाला मिला। लोगों को इधर-उधर की जानकारी दी जाती है, लेकिन ठोस जानकारी नहीं मिलती।
वरिष्ठ अधिकारियों की संलिप्तता पर संदेह

इस प्रकरण में जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर और प्रमुख अभियंता कार्यालय की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। जब विभागीय अधिकारियों से इस संबंध में प्रतिक्रिया लेनी चाही गई, तो किसी ने फोन नहीं उठाया और न ही व्हाट्सएप पर जवाब दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक के अधिकारी इस अनियमितता में कहीं न कहीं शामिल हो सकते हैं।
जरूरी है निष्पक्ष जांच और EE को तत्काल हटाने की मांग

यह मामला केवल एक सरकारी बंगले के निर्माण का नहीं, बल्कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार और नियमों की धज्जियां उड़ाने का गंभीर उदाहरण है। यदि इसकी निष्पक्ष जांच नहीं हुई, तो यह भविष्य में अन्य सरकारी परियोजनाओं के लिए भी गलत मिसाल बन सकता है। शासन को EE को तुरंत हटाते हुए इस मामले की गहन जांच करानी चाहिए। संबंधित विभाग और प्रशासन को इस मामले का संज्ञान लेकर जल्द से जल्द उचित कार्रवाई करनी चाहिए।
मंत्री जी की चुप्पी पर सवाल

यह समझ से परे है कि हमारे तेजतर्रार मंत्री जी होने के बावजूद EE पाण्डेय को TDP में क्यों बनाए रखा गया है। वन विभाग में अपनी सख्त कार्यशैली के लिए प्रसिद्ध मंत्री जी जल संसाधन विभाग में इस तरह की अनियमितताओं को क्यों नजरअंदाज कर रहे हैं? ऐसा प्रतीत होता है कि जल संसाधन विभाग के अधिकारी evm कार्यकर्त्ता इस मामले की जानकारी मंत्री जी तक पहुंचने ही नहीं दे रहे हैं।
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