छत्तीसगढ़ वन विभाग में भ्रष्टाचार को लेकर बड़ा एक्शन लिया गया है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) एवं वन बल प्रमुख ने वनक्षेत्रपाल श्री सतीश कुमार मिश्रा को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई विधानसभा में उठे प्रश्नों के आधार पर की गई है, जिसमें कुंवारादेव महिला वन सहायक समिति के फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ था।

क्या है मामला?
फरवरी 2025 में विधानसभा सत्र के दौरान विधायक श्रीमती शैलेशा हर्बजन द्वारा कुंवारादेव महिला वन सहायक समिति के कार्यों पर सवाल उठाया गया था। पूछे गए प्रश्न पर जो जानकारी दी गई, वह झूठी पाई गई। इस समिति का कोई अस्तित्व ही नहीं था, फिर भी इसमें करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया गया।

जांच समिति की रिपोर्ट के बाद यह स्पष्ट हुआ कि विधानसभा में गलत जानकारी देने के लिए वनक्षेत्रपाल सतीश कुमार मिश्रा जिम्मेदार थे। उन्हें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा नियम 1965 के तहत दोषी मानते हुए निलंबित कर दिया गया।
लेकिन अन्य आरोपी कब होंगे निलंबित?
हैरानी की बात यह है कि इस घोटाले में शामिल अन्य बड़े नामों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
1. अजित डड़सेना (LDC) – बिना शासनादेश प्रमोशन!
- अजित डड़सेना, जो पूर्व में कंप्यूटर ऑपरेटर थे, उन्हें गलत तरीके से पदोन्नति देकर LDC बना दिया गया।
- यही नहीं, कुंवारादेव समिति के गठन और अन्य दस्तावेजों की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं पर थी।
- उनके ही जरिए समिति के करोड़ों के व्हाउचर बनाए गए और फर्जी भुगतान जारी हुआ।
2. तेजा साहू (वनपाल, माना नर्सरी प्रभारी) – घोटाले के किंगपिन
- तेजा साहू भी इस फर्जी समिति के जरिए करोड़ों की हेराफेरी में शामिल रहे।
- उनके द्वारा भारी मात्रा में फर्जी बिल और भुगतान पेश किए गए।
- इसके बावजूद उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
क्या सिर्फ ‘छोटे अधिकारी’ पर गिरी गाज?
अब सवाल उठता है कि क्या वन विभाग सिर्फ एक अधिकारी को बलि का बकरा बनाकर असली गुनहगारों को बचाने की कोशिश कर रहा है?
- क्या सतीश मिश्रा अकेले दोषी थे, या फिर बड़े अधिकारी भी शामिल हैं?
- क्या अजित डड़सेना और तेजा साहू पर भी कार्रवाई होगी?
वन विभाग के उच्च अधिकारियों को इस मामले में संज्ञान लेकर सम्पूर्ण भ्रष्टाचार की निष्पक्ष जांच करनी होगी। वरना, यह संदेश जाएगा कि सिर्फ कमजोर अधिकारियों पर गाज गिराकर बड़े अधिकारियों को बचाने का खेल खेला जा रहा है।