

कटघोरा वन मंडल में सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 के तहत मांगी गई जानकारी को देने से इनकार करने का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। इस प्रकरण में न सिर्फ नियमों का उल्लंघन किया गया, बल्कि भ्रष्टाचार को छिपाने की एक संगठित साजिश भी उजागर हुई है।


आवेदन और अपील की प्रक्रिया
आवेदक अब्दुल शेख करीम ने वन मंडल अधिकारी, कटघोरा को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन किया था। RTI अधिनियम के अनुसार, वन मंडल अधिकारी ही जन सूचना अधिकारी (PIO) होते हैं, न कि कोई बाबू या अधीनस्थ कर्मचारी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, वन मंडल अधिकारी ने खुद को जन सूचना अधिकारी मानने के बजाय बाबू-भैया को PIO घोषित कर दिया और आवेदन को उनके पास भेज दिया। यह स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन है।
जब मांगी गई जानकारी नहीं दी गई, तो आवेदक ने प्रथम अपील दायर की। लेकिन यहाँ और भी गंभीर अनियमितता देखने को मिली—वन मंडल अधिकारी, जो स्वयं इस प्रक्रिया में जवाबदेह थे, उन्होंने खुद को ही अपील अधिकारी घोषित कर लिया और अपने ही गलत फैसले की समीक्षा करते हुए अपील खारिज कर दी! यह पूरी प्रक्रिया सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 का स्पष्ट उल्लंघन है।
जानकारी छिपाने का प्रयास
आवेदक ने अप्रैल 2020 से अक्टूबर 2024 तक के विभागीय केस बुक और फार्म 14 की जानकारी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (DVD, CD, या ईमेल) के जरिए मांगी थी। लेकिन वन मंडल अधिकारी ने इसका जवाब देने के बजाय यह बहाना बना दिया कि यह “तृतीय पक्ष” (Third Party) की जानकारी है, इसलिए इसे नहीं दिया जा सकता।
यह बेहद हास्यास्पद और भ्रामक तर्क है। केस बुक और फार्म 14 विभागीय दस्तावेज हैं, जो सरकारी रिकॉर्ड का हिस्सा होते हैं। इन्हें छिपाने का सीधा अर्थ है कि इसमें गंभीर वित्तीय गड़बड़ियां या भ्रष्टाचार छिपा हुआ है। वन मंडल अधिकारी भ्रष्टाचार छिपाने के लिए गलत तरीके से इसे “तृतीय पक्ष” की जानकारी बताकर गुमराह कर रहे हैं।
वरिष्ठ अधिकारी भी साधे बैठे हैं चुप्पी
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरे मामले में वरिष्ठ अधिकारी—CCF प्रभात मिश्रा और वन बल प्रमुख श्रीनिवास राव—ने भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया। यह स्पष्ट करता है कि पूरी लॉबी मिलकर सूचना के अधिकार कानून को कुचलने का प्रयास कर रही है ताकि भ्रष्टाचार के दस्तावेज बाहर न आ सकें।
वन मंडल अधिकारी को शासन द्वारा PIO नियुक्त किया गया है, लेकिन उन्होंने खुद को इससे अलग दिखाते हुए बाबू-भैया को PIO घोषित कर दिया और अपील होने पर खुद को अपीलीय अधिकारी बताकर अपने ही गलत फैसले को सही ठहराने का प्रयास किया। यह न सिर्फ RTI कानून का मजाक उड़ाने जैसा है, बल्कि यह भ्रष्टाचार को खुली छूट देने की साजिश भी दर्शाता है।
डीएफओ की मनमानी और RTI का हनन
डीएफओ (Divisional Forest Officer) को सरकारी रिकॉर्ड से संबंधित जानकारी देने का पूरा अधिकार और दायित्व है, लेकिन जब उनसे कैश बुक या फार्म 14 की जानकारी मांगी गई, तो उन्होंने इसे देने से इनकार कर दिया। यह जाहिर करता है कि वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से सूचना को छिपाने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का खेल चल रहा है।
इसके अलावा, वन मंडल अधिकारी द्वारा खुद को अपीलीय अधिकारी घोषित कर लेना, अपने ही गलत फैसले की समीक्षा खुद करना, और फिर अपील को खारिज कर देना एक संगठित भ्रष्टाचार का स्पष्ट संकेत है।
यह स्पष्ट है कि वन विभाग के अधिकारी RTI कानून का गला घोंटने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि भ्रष्टाचार उजागर न हो। आवेदक को अब राज्य सूचना आयोग में दूसरी अपील दायर करनी होगी, ताकि इस गंभीर अनियमितता की जांच की जा सके और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई हो।
DFO ने CCF और अपीलीय अधिकारी के आदेश को ठुकराया!
सूत्रों के अनुसार, कुछ दिन पहले अपीलीय अधिकारी ने स्पष्ट आदेश दिया था कि आवेदक को मांगी गई जानकारी निःशुल्क प्रदान की जाए। लेकिन कटघोरा के DFO ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और उल्टा यह तर्क दे दिया कि “जानकारी 100 पृष्ठों से अधिक है, इसलिए पहले अवलोकन करना होगा, फिर दी जाएगी।”
यह न केवल RTI अधिनियम 2005 की धारा 7(6) का उल्लंघन है, बल्कि अपने ही उच्च अधिकारियों के आदेशों की खुली अवहेलना भी है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कटघोरा DFO प्रशासनिक शक्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं और जानबूझकर भ्रष्टाचार छुपाने की कोशिश कर रहे हैं।
RTI को विफल करने की साजिश
यह पहला मौका नहीं है जब कटघोरा के DFO ने RTI अधिनियम की धज्जियां उड़ाई हैं। पहले भी उन्होंने आवेदकों को अनावश्यक पत्राचार में उलझाकर जानकारी देने से इनकार किया था। अब, जब अपीलीय अधिकारी ने निःशुल्क जानकारी देने का आदेश दिया, तो DFO ने “अवलोकन” का बहाना बनाकर जानकारी रोक दी।
यह भ्रष्टाचार की उस मानसिकता को दर्शाता है, जहां अधिकारियों को RTI के तहत जवाबदेही से बचाने के लिए पूरे सिस्टम को गुमराह किया जाता है।
कटघोरा DFO को सुकमा DFO से सबक लेना चाहिए!
अगर कटघोरा के DFO को लगता है कि प्रशासनिक दादागिरी और भ्रष्टाचार ज्यादा दिन तक चलने वाला है, तो उन्हें सुकमा के पूर्व DFO का हश्र याद रखना चाहिए। सुकमा के DFO भी इसी तरह RTI कार्यकर्ताओं को गुमराह करते थे, जानकारी देने से बचते थे और भ्रष्टाचार छुपाने की कोशिश करते थे। लेकिन अंततः प्रशासनिक कार्रवाई ने उन्हें घुटनों पर ला दिया।
कटघोरा के DFO को यह समझना होगा कि RTI कानून का उल्लंघन करना, वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों की अनदेखी करना और जनता की जानकारी छुपाना ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा। जिस तरह सुकमा DFO को जवाबदेह बनाया गया, उसी तरह कटघोरा DFO के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है।
निष्कर्ष
कटघोरा वन मंडल में RTI कानून का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है। वन मंडल अधिकारी ने अपने ही कार्यालय के रिकॉर्ड को तृतीय पक्ष की जानकारी बताकर देने से इनकार कर दिया, जबकि यह जानकारी RTI अधिनियम के तहत पूर्ण रूप से सार्वजनिक होनी चाहिए।