रायपुर | छत्तीसगढ़ वन विभाग की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। बलौदाबाजार के तत्कालीन वनमंडलाधिकारी श्री मयंक अग्रवाल (IFS) के खिलाफ प्रशासनिक अनियमितताओं, वित्तीय घोटालों, अनुशासनहीनता और वन संरक्षण में लापरवाही के गंभीर आरोप लगे थे। इस संबंध में 12 जून 2023 को (स्मरण पत्र 29 जून 2023) को मुख्य वन संरक्षक (C.C.F.) रायपुर वृत्त द्वारा विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) एवं वन बल प्रमुख के कार्यालय में प्रस्तुत की गई थी। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस रिपोर्ट पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

श्री मयंक अग्रवाल, वनमंडलाधिकारी, बलौदाबाजार के विरुद्ध प्रशासनिक अनियमितताओं की शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिनमें वित्तीय गड़बड़ियों, अनुशासनहीनता, और निर्देशों की अवहेलना जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। इस रिपोर्ट में उनके कार्यकाल के दौरान पाई गई विसंगतियों और लापरवाहियों को संकलित किया गया है।

मुख्य आरोप और अनियमितताएँ:
- भुगतान प्रक्रिया में अनियमितता एवं अनुचित कार्य प्रणाली:
- विभागीय कार्यों के भुगतान में गुणवत्ता का ध्यान न रखते हुए, त्रुटिपूर्ण कार्यों का भी भुगतान किया गया।
- विभाग में उचित निगरानी प्रणाली लागू न होने से कई मामलों में मनमाने ढंग से भुगतान किए गए।
- छत्तीसगढ़ फॉरेस्ट मैनुअल 2020 के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया।
- तकनीकी स्वीकृति के बिना गैर-प्राधिकृत व्यक्तियों द्वारा कार्य कराना:
- विभागीय नियमों का उल्लंघन कर राम वन पथ में तकनीकी स्वीकृति के बिना कार्य संपन्न कराया गया।
- बिना आधिकारिक अनुमति के बाहरी व्यक्तियों को परियोजनाओं में शामिल किया गया।
- गलत तरीके से वित्तीय स्वीकृतियाँ देकर सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया।
- लंबित कार्यों की सूची प्रस्तुत न करना एवं विभागीय आदेशों की अवहेलना:
- दिनांक 03.05.2023 को विभाग द्वारा लंबित कार्यों की सूची और उनके भुगतान संबंधी जानकारी प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन इनका पालन नहीं किया गया।
- आदेशों की अनदेखी कर वरिष्ठ अधिकारियों को गलत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
- वनमंडलाधिकारी द्वारा वित्तीय अनियमितता एवं अनुचित कार्यप्रणाली:
- विभागीय बैठकों में वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशों का पालन नहीं किया गया।
- “घोषणाओं सर्वल उपबजट नियंत्रणिका” का दुरुपयोग कर अवैध वित्तीय लेन-देन किए गए।
- विभागीय धनराशि के दुरुपयोग की संभावना को देखते हुए आरोपित के कार्यकाल की गहन जांच आवश्यक है।
- वन अपराधों एवं वन्यजीव संरक्षण में लापरवाही:
- वनों में अवैध कटाई, वन्यजीवों की हत्या, अवैध खनन एवं वन-संपदा की क्षति के मामलों की अनदेखी की गई।
- वन्यजीवों की मृत्यु से संबंधित मामलों में उचित दस्तावेजीकरण नहीं किया गया।
- अनुचित रूप से पदस्थापन एवं अधिकारियों का मनमाना स्थानांतरण:
- बिना प्रशासनिक स्वीकृति के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को मनमाने ढंग से स्थानांतरित किया गया।
- कार्यस्थलों पर अनुपस्थित कर्मचारियों को भी वेतन प्रदान किया गया।
- विभागीय निरीक्षण एवं रिपोर्टिंग में गड़बड़ियाँ:
- विभिन्न परियोजनाओं के निरीक्षण में अनियमितता बरती गई।
- गलत रिपोर्ट प्रस्तुत कर प्रशासनिक पारदर्शिता को प्रभावित किया गया।
- वन क्षेत्र में गैर-वानिकी कार्यों को स्वीकृति देना:
- कई गैर-वानिकी गतिविधियों को अवैध रूप से स्वीकृति दी गई, जिससे वन संपदा को नुकसान हुआ।
- पर्यावरणीय संतुलन प्रभावित हुआ, और वित्तीय नियमों का उल्लंघन हुआ।
- कथित भ्रष्टाचार और शक्ति का दुरुपयोग:
- विभागीय ठेकेदारों एवं अन्य बाहरी एजेंसियों को अनुचित लाभ पहुँचाया गया।
- सरकारी संसाधनों एवं वाहनों का निजी उपयोग किया गया।
- वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) में हेरफेर:
- अधिकारियों एवं कर्मचारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में गलत जानकारी दी गई।
- गलत रिपोर्ट देकर कर्मचारियों की पदोन्नति को प्रभावित किया गया।
- निर्देशों के उल्लंघन और अनुशासनहीनता:
- वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जारी निर्देशों का पालन न कर, कार्य प्रणाली में लापरवाही बरती गई।
- सरकारी कार्यों में अनुचित हस्तक्षेप कर, प्रशासनिक कार्यप्रणाली को बाधित किया गया।
निष्कर्ष एवं सिफारिशें:

- श्री मयंक अग्रवाल, वनमंडलाधिकारी बलौदाबाजार के विरुद्ध लगे आरोप गंभीर हैं और इनमें वित्तीय अनियमितता, अनुशासनहीनता, और प्रशासनिक लापरवाही के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं।
- वन विभाग की नीतियों एवं सरकारी आदेशों की अवहेलना से सरकारी धन और वन संपदा को नुकसान पहुँचा है।
- इस संबंध में उच्च स्तरीय जांच आवश्यक है, ताकि दोषियों पर उचित कार्रवाई की जा सके।
अनुशंसा:
- तत्काल प्रभाव से श्री मयंक अग्रवाल के विरुद्ध विभागीय जांच शुरू की जाए।
- वित्तीय अनियमितताओं की गहन ऑडिट कर दोषियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
- प्रशासनिक प्रक्रिया में सुधार हेतु सख्त दिशा-निर्देश जारी किए जाएँ।
CCF की रिपोर्ट में उठाए गए प्रमुख आरोप:
- वन विभाग में वित्तीय अनियमितता: विभागीय कार्यों में भारी गड़बड़ियों के बावजूद मनमाने तरीके से भुगतान किया गया।
- बिना तकनीकी स्वीकृति के कार्य: राम वन पथ समेत अन्य परियोजनाओं में बिना अनुमोदन कार्य कराए गए।
- वन संरक्षण में लापरवाही: अवैध कटाई, वन्यजीवों की हत्या और खनन गतिविधियों को अनदेखा किया गया।
- वनमंडलाधिकारी का निरंकुश रवैया: उच्च अधिकारियों के आदेशों की अवहेलना और मनमाने निर्णय।
- भ्रष्टाचार और शक्ति का दुरुपयोग: सरकारी संसाधनों का निजी उपयोग और ठेकेदारों को अनुचित लाभ।
राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते रिपोर्ट पर लगी रोक ?

वन विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, यह रिपोर्ट पिछले दो वर्ष से पीसीसीएफ कार्यालय में लंबित पड़ी है, लेकिन शासन स्तर तक इसे भेजने की कोई पहल नहीं हुई। यह सवाल उठता है कि क्या इस रिपोर्ट को दबाने के लिए राजनीतिक दबाव डाला जा रहा है? सूत्रों का दावा है कि राजस्थान के कांग्रेसी नेता श्री सुरजेवाला से कथित नजदीकी या रिश्तेदारी के चलते पिछली सरकार के प्रभावशाली लोगों ने इस रिपोर्ट को शासन तक पहुंचने ही नहीं दिया।
वन विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि इस तरह की रिपोर्टों को दबाने से IFS अधिकारियों में निरंकुशता बढ़ रही है। अगर इस मामले में उच्च स्तरीय जांच नहीं हुई तो यह साफ संकेत होगा कि छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार को संरक्षण मिल रहा है।
जब प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख जैसा शीर्ष पद ही निष्क्रिय, तो जवाबदेही किसकी ?

प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख ने इस गंभीर रिपोर्ट पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या उन्होंने अपने पदीय दायित्वों का सही तरीके से निर्वहन किया, या फिर जानबूझकर इस मामले को अनदेखा किया? जब शीर्ष पद पर बैठे अधिकारी ही निष्क्रिय रहेंगे, तो वन विभाग में अनुशासन और पारदर्शिता कैसे बनी रहेगी? क्या यह भी किसी दबाव या IFS लॉबी के आपसी संरक्षण का नतीजा है?
क्या IFS लॉबी ही IFS अधिकारियों पर कार्रवाई रोक रही है ? अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (राजपत्रित/समन्वय) रायपुर ने अपनी जवाबदारी पूरी क्यों नहीं की ?

इस रिपोर्ट पर अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (राजपत्रित/समन्वय) रायपुर ने अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या वे किसी दबाव में हैं, या फिर खुद IFS होने के कारण किसी अन्य IFS अधिकारी पर कार्रवाई की सिफारिश करने से बच रहे हैं? यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि रिपोर्ट दो वर्षों से अनावश्यक रूप से दबाकर रखी गई, जबकि इसमें गंभीर अनियमितताओं का उल्लेख है। अगर IFS अधिकारियों की एकजुटता (लॉबी) ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई में बाधा बन रही है, तो फिर पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद कैसे की जाए?
क्या CCF ने भी रिपोर्ट दबाने की कोशिश की ? गंभीर आरोपों को देखते हुवे CCF ने स्मरण पत्र जारी करने की जवाबदारी क्यों नहीं निभाई ?

वन विभाग के भीतर सवाल उठ रहा है कि अगर यह रिपोर्ट पिछले दो वर्ष से लंबित है, तो वर्तमान CCF ने आवश्यक कार्रवाई के लिए शासन को स्मरण पत्र क्यों नहीं भेजा? क्या CCF भी इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डालने की मंशा रखते हैं, या फिर उन पर भी किसी प्रकार का दबाव है? अगर विभागीय प्रमुख ही गंभीर आरोपों पर निष्क्रिय रहेंगे, तो वन प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
क्या होगी आगे की कार्रवाई?
इस रिपोर्ट को दबाने के आरोपों के बाद अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या वर्तमान सरकार इस पर निष्पक्ष जांच कराएगी, या फिर यह रिपोर्ट सरकारी फाइलों में ही दबी रह जाएगी? वन विभाग के कई अधिकारियों का कहना है कि अगर इस मामले में जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो यह भ्रष्टाचार को खुली छूट देने जैसा होगा। अब देखना होगा कि शासन इस गंभीर प्रकरण पर क्या निर्णय लेता है।
(रायपुर से अब्दुल करीम की रिपोर्ट)
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