छत्तीसगढ़ वन विभाग में अधिकारियों के आदेशों को ठेंगा दिखाने का मामला सामने आया है। उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व, गरियाबंद के उपनिदेशक श्री वरुण जैन (IFS) द्वारा जारी किए गए सामान्य पत्र और स्मरण पत्रों के बावजूद अधीनस्थ रेंजरों ने 7 महीने बीत जाने के बाद भी आरटीआई की जानकारी उपलब्ध नहीं कराई है।

क्या है मामला?
शेष करीम पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट ने वन विभाग से कुछ जानकारियां मांगी थीं। इसके तहत मुख्य वन संरक्षक (CWLW) रायपुर और उपनिदेशक USTR गरियाबंद द्वारा कई आदेश जारी किए गए, लेकिन रेंजरों ने इन आदेशों को अनदेखा कर दिया।
यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब वरुण जैन जैसे ईमानदार छवि वाले IFS अधिकारी के आदेश भी रेंजरों के सामने बेअसर साबित हो रहे हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या रेंजरों को किसी बड़े अधिकारी का संरक्षण प्राप्त है?
रेंजरों की मनमानी या बड़े अधिकारियों का संरक्षण?
मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जब आदेश जारी हो चुके हैं, तो जानकारी अब तक क्यों रोकी गई है? ऐसा प्रतीत होता है कि रेंजरों को ऊपर बैठे अधिकारियों का पूरा समर्थन प्राप्त है, तभी वे मुख्य वन संरक्षक (CWLW) और उपनिदेशक USTR के आदेशों को भी नजरअंदाज करने की हिम्मत कर रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, वन विभाग में डीएफओ की भूमिका अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (APCCF) और प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) निभा रहे हैं, जिससे रेंजरों को खुली छूट मिल गई है। आज कोई भी डीएफओ बड़े अधिकारियों के आदेशों का इंतजार करता है और खुद निर्णय लेने से बचता है।
क्या भ्रष्टाचार की परतें खुलने से रोकी जा रही हैं जानकारी?
अगर सिर्फ एक आरटीआई की जानकारी देने में 7 महीने का समय लगा तो सोचने वाली बात है कि अगर भ्रष्टाचार की शिकायत की जाए, तो उसे दबाने के लिए कितना खेल खेला जाएगा?
वन विभाग में इस प्रकार की लापरवाही और आदेशों की अनदेखी यह साबित करता है कि भ्रष्टाचार के मामले में अधिकारी और कर्मचारी एक-दूसरे को बचाने के लिए पूरा जोर लगा देते हैं।

अब सवाल यह है कि क्या वरुण जैन जैसे ईमानदार अधिकारी अपने आदेशों की अवहेलना पर कोई ठोस कदम उठाएंगे? या फिर रेंजरों की यह मनमानी यूं ही जारी रहेगी?