रायपुर। छत्तीसगढ़ के नंदन वन जंगल सफारी के लिए नागालैंड से लाए जा रहे दो हिमालयन भालुओं में से एक के रहस्यमय तरीके से गायब होने की खबर से वन विभाग में हड़कंप मच गया है। वन्यजीव प्रेमियों और संरक्षण कार्यकर्ताओं ने इस घटना को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। आरोप है कि वन विभाग इस मामले को दबाने की कोशिश कर रहा है और लापरवाही के चलते एक भालू की मौत हो चुकी है।
रास्ते में आखिर कहां गया हिमालयन भालू?

नागालैंड के दीमापुर चिड़ियाघर से वन्यजीवों के एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत रायपुर के जंगल सफारी के लिए दो हिमालयन भालू लाए जा रहे थे। वन विभाग की टीम ने बदले में पांच चीतल और दो ब्लैकबक नागालैंड भेजे। लेकिन रायपुर पहुंचने के बाद पता चला कि केवल एक ही भालू जंगल सफारी लाया गया है, जबकि दूसरे भालू का कोई अता-पता नहीं है।
भालू की मौत को छुपा रहा वन विभाग?

वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी का आरोप है कि गायब बताया जा रहा भालू दरअसल रास्ते में ही मर चुका था, लेकिन वन विभाग इसकी सच्चाई छिपा रहा है। अगर भालू की मौत हुई है, तो उससे जुड़े अहम सवाल उठते हैं:
- भालू की मौत कब और कैसे हुई?
- मौत के बाद पोस्टमार्टम कहां किया गया और किसने किया?
- क्या पोस्टमार्टम की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई?
- अगर भालू की मौत पहले ही हो चुकी थी, तो इसे छुपाने की जरूरत क्यों पड़ी?
डॉक्टरों की लापरवाही से गई जान?
माना जा रहा है कि परिवहन के दौरान वन विभाग के डॉक्टरों की लापरवाही के चलते हिमालयन भालू की जान गई। एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत इन भालुओं को नागालैंड से रायपुर लाने के लिए दो विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम भेजी गई थी। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या इन डॉक्टरों को जानवरों के सुरक्षित परिवहन की सही ट्रेनिंग दी गई थी?

वन विभाग की कार्यशैली पर उठे सवाल
यह पहली बार नहीं है जब छत्तीसगढ़ में वन्यजीवों के प्रबंधन को लेकर सवाल खड़े हुए हैं। हाल ही में बारनवापारा अभ्यारण्य से एक मादा बाइसन को अकेले गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व भेजा गया था, जहां पहुंचने के बाद उसकी भी मौत हो गई। इससे पहले भी जंगल सफारी और कानन पेंडारी में वन्यजीवों की मौत के मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन विभाग से कोई ठोस जवाब नहीं मिला है।
एक्सचेंज प्रोग्राम और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग
वन्यजीव संरक्षण से जुड़े संगठनों और कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि:
- जंगल सफारी और कानन पेंडारी के वन्यजीव एक्सचेंज प्रोग्राम पर रोक लगाई जाए।
- लापरवाही बरतने वाले दोनों डॉक्टरों को तत्काल निलंबित किया जाए।
- वन विभाग इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराए और सार्वजनिक रूप से जानकारी दे।
सरकार से जवाबदेही की उम्मीद
अब सवाल यह है कि क्या छत्तीसगढ़ सरकार और वन विभाग इस मामले की जिम्मेदारी लेंगे या हमेशा की तरह इसे नजरअंदाज कर देंगे? हिमालयन भालू जैसे दुर्लभ वन्यजीवों के संरक्षण के लिए वन विभाग को गंभीरता से काम करने की जरूरत है, वरना ऐसी लापरवाहियों से कई और वन्यजीवों की जान जा सकती है।