IFS कि वसूली नहीं होने से छत्तीसगढ़ में वृक्षारोपण योजनाओं में व्यापक भ्रष्टाचार, छोटे वन कर्मी बन रहें बलि का बकरा।

छत्तीसगढ़ अपनी समृद्ध वन संपदा और खनिज संसाधनों के लिए जाना जाता है। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए राज्य सरकार द्वारा वृक्षारोपण योजनाओं पर भारी बजट खर्च किया जाता है। वन विभाग के विभिन्न कार्यक्रमों के तहत हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर वृक्षारोपण किया जाता है। इसमें औषधीय पौधों के साथ-साथ जंगलों के घनत्व को बढ़ाने के लिए जंगली पौधों का भी रोपण किया जाता है। परंतु, हाल के वर्षों में इन योजनाओं में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की शिकायतें सामने आई हैं।

भ्रष्टाचार के आरोप और सरकारी प्रयास

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा वृक्षारोपण में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए कई आदेश पारित किए गए हैं। यदि कोई वृक्षारोपण असफल होता है, तो उस पर खर्च की गई राशि की वसूली के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर आर्थिक दंड लगाया जाता है। इसके तहत वनरक्षकों से 20%,डिप्टी रेंजरों से 25% और रेंजरों से 30% इस तरह निम्न वर्ग के वन कर्मियों से 75% वसूली की जाती है, जबकि एसडीओ से 20% और वन मंडल अधिकारियों से 5% वसूली का प्रावधान है। इसके बावजूद, इन योजनाओं में व्यापक पैमाने पर अनियमितताएं देखने को मिल रही हैं।

इंटर सर्कल जांच की खामियां

भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रशासन द्वारा इंटर सर्कल (वृत्त) जांच का प्रावधान किया गया है, जिसमें वृक्षारोपण की स्थिति की समीक्षा की जाती है। लेकिन हमारे पड़ताल में यह सामने आया है कि जांच अधिकारियों द्वारा बड़े पैमाने पर हेराफेरी की जाती है। 90% वृक्षारोपण को जांच अधिकारियों द्वारा कागजो में 60-80% सफल बताया जाता है, जबकि कई स्थानों पर वृक्षारोपण पूरी तरह नष्ट हो चुके होते हैं। जांच में हेरफेर कर वास्तविक स्थिति को छिपाने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। केवल उन्हीं मामलों में कार्रवाई की जाती है, जहां गंभीर शिकायतें होती हैं या राजनीतिक दबाव पड़ता है।

छत्तीसगढ़ शासन वन विभाग का वसूली सम्बन्धी आदेश।

आईएफएस अधिकारियों पर कार्रवाई का अभाव अर्थात IFS के बल्ले -बल्ले

जांच में भ्रष्टाचार पाए जाने पर निचले स्तर के वन विभाग कर्मियों से वसूली की जाती है, लेकिन उच्च पदस्थ अधिकारियों, विशेष रूप से आईएफएस और एसडीओ स्तर के अधिकारियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती। आरटीआई के माध्यम से जानकारी लेने पर यह स्पष्ट हुआ कि रेंजर स्तर तक की कार्रवाई मुख्यालय स्तर से की जाती है, लेकिन आईएफएस और एसडीओ स्तर के अधिकारियों की वसूली की फाइल राज्य शासन को भेज दी जाती है, जहां वह लंबित रह जाती है। इस मामले में कोई निर्देश नहीं मिलने के कारण इन उच्चाधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। आईएफएस और उपवनमंडलधिकारी वर्ग के अधिकारी अपनी सेवानिवृत्ति तक आसानी से पहुंच जाते हैं, क्योंकि वे शासन में अपने संपर्कों और रणनीतियों के माध्यम से अपनी वसूली फाइलों को रोकने में सफल रहते हैं। यह स्थिति भ्रष्टाचार को और भी बढ़ावा देती है, क्योंकि इन अधिकारियों को वृक्षारोपण की सफलता-असफलता की चिंता नहीं होती, बल्कि वे पूरी योजना के फंड को हजम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

वन मुख्यालय एवं शासन में बैठे आईएफएस अधिकारी अपने भ्रष्टाचार में लिप्त मित्रों को संरक्षण प्रदान करते हैं और यही कारण है कि आईएफएस अधिकारियों के वसूली प्रकरणों को दबा दिया जाता है। एक वरिष्ठ वन अधिकारी, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर जानकारी दी, ने बताया कि वे भी इस मामले में कुछ नहीं कर सकते क्योंकि आईएफएस अधिकारियों को आईएएस अधिकारी भी समर्थन देते हैं। यह मिलीभगत ही इन भ्रष्ट अधिकारियों की फाइलें दबाए रखने में सहायक होती है। आईएफएस अधिकारी प्रायः आईएएस अधिकारियों के साथ मित्रता बनाए रखते हैं ताकि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न हो।

छोटे वन कर्मियों में असंतोष

इस दोहरे मापदंड से छोटे वन कर्मियों में भारी असंतोष व्याप्त है। उनका कहना है कि उनकी पहुँच शासन में बैठे अधिकारियों तक नहीं है और न ही उनकी कोई सुनवाई होती है। जब छोटे वन कर्मियों से वसूली की जाती है, तो आईएफएस अधिकारियों को क्यों छोड़ा जाता है? यह भेदभाव वन विभाग में गहरी नाराजगी को जन्म दे रहा है।

न्याय की मांग और सामाजिक संस्थाओं की भूमिका

इस स्थिति में आम जनता और सामाजिक संगठनों को इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। शासन को चाहिए कि आईएफएस विंग के वसूली प्रकरणों को शीघ्रता से निपटाए और प्रशासन को वसूली फाइलें तुरंत भेजी जाएं। जब तक इस मामले में निष्पक्ष जांच और कठोर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक वृक्षारोपण योजनाओं की सफलता संदिग्ध बनी रहेगी। शासन-प्रशासन को इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान देने और आईएफएस अधिकारियों पर भी सख्त कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

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