जगदलपुर: जल संसाधन विभाग के कार्यपालन अभियंता (EE) वेद प्रकाश पाण्डेय द्वारा नियमों की अवहेलना कर सरकारी बंगले का अवैध निर्माण कराने का मामला सामने आया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह निर्माण बिना प्रशासकीय स्वीकृति, बिना तकनीकी स्वीकृति, और बिना टेंडर के जारी है, जिसमें अब तक लगभग 40-50 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। शेष कार्यों में साज-सज्जा, पट्टी, रंग-रोगन, टाइल्स, दरवाजे, खिड़कियां आदि शामिल हैं।
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नियमों की अनदेखी
EE को नियमानुसार 160.5 वर्ग मीटर (अर्थात लगभग 1800 वर्ग फुट) क्षेत्रफल के भवन की पात्रता प्राप्त है, लेकिन उन्होंने पुराने भवन को ध्वस्त कर नए बंगले के निर्माण की अनुमति किससे ली? यह बड़ा सवाल बना हुआ है। निर्माण कार्य शासकीय भूमि पर किया जा रहा है और इसे कोई अज्ञात व्यक्ति अंजाम दे रहा है।
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वित्तीय अनियमितता का संदेह
इस निर्माण की अनुमानित लागत एक करोड़ रुपये तक हो सकती है। यह स्पष्ट नहीं है कि इतनी बड़ी धनराशि कहां से आ रही है और किस स्रोत से इसका वित्त पोषण हो रहा है। इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की आवश्यकता है।
पूर्व में भी विवादित रहे हैं EE वेद प्रकाश पाण्डेय
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गौरतलब है कि EE श्री वेद प्रकाश पाण्डेय इससे पूर्व अंबिकापुर में क्वालिटी कंट्रोल विभाग में पदस्थ थे, जहां वे अमानक निर्माण कार्यों को ओके रिपोर्ट दिया करते थे। इसी वजह से उन्हें निलंबित भी किया गया था। अब वे जगदलपुर जल संसाधन संभाग में उसी तरह की गतिविधियों को दोहराते प्रतीत हो रहे हैं।
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
हैरानी की बात यह है कि EE कार्यालय और अधीक्षण अभियंता कार्यालय एक ही परिसर में स्थित होने के बावजूद, यह अवैध निर्माण बिना किसी प्रशासनिक या तकनीकी स्वीकृति के हो रहा है। अधीक्षण अभियंता इस पूरे मामले पर आंख मूंदे हुए हैं। जब इस विषय पर RTI के माध्यम से जानकारी मांगी गई, तो आधिकारिक जवाब टाल-मटोल वाला मिला। लोगों को इधर-उधर की जानकारी दी जाती है, लेकिन ठोस जानकारी नहीं मिलती।
वरिष्ठ अधिकारियों की संलिप्तता पर संदेह
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इस प्रकरण में जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर और प्रमुख अभियंता कार्यालय की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। जब विभागीय अधिकारियों से इस संबंध में प्रतिक्रिया लेनी चाही गई, तो किसी ने फोन नहीं उठाया और न ही व्हाट्सएप पर जवाब दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक के अधिकारी इस अनियमितता में कहीं न कहीं शामिल हो सकते हैं।
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जरूरी है निष्पक्ष जांच और EE को तत्काल हटाने की मांग
यह मामला केवल एक सरकारी बंगले के निर्माण का नहीं, बल्कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार और नियमों की धज्जियां उड़ाने का गंभीर उदाहरण है। यदि इसकी निष्पक्ष जांच नहीं हुई, तो यह भविष्य में अन्य सरकारी परियोजनाओं के लिए भी गलत मिसाल बन सकता है। शासन को EE को तुरंत हटाते हुए इस मामले की गहन जांच करानी चाहिए। संबंधित विभाग और प्रशासन को इस मामले का संज्ञान लेकर जल्द से जल्द उचित कार्रवाई करनी चाहिए।