महासमुंद वन परिक्षेत्र में 1,000 से अधिक हरे वृक्षों की अवैध कटाई का मामला, वन कर्मियों पर कार्रवाई की मांग,

लोचन कुमार चौहान (पिथौरा)

महासमुंद जिले के गिरना बीट क्षेत्र में वन परिक्षेत्र पिथौरा के अंतर्गत बड़े पैमाने पर अवैध रूप से हरे वृक्षों की कटाई का गंभीर मामला सामने आया है। पत्रकार लोचन कुमार चौहान द्वारा वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग को प्रस्तुत किए शिकायती पत्र में तत्काल जांच और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की गई है।

वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास खतरे में:
वन क्षेत्र की कमी के कारण जीव-जंतुओं का प्राकृतिक आवास तेजी से नष्ट हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब वन्यजीवों के लिए भोजन और आवास की कमी होती है, तो वे मानव बस्तियों की ओर पलायन करते हैं। इस स्थिति में शिकारियों के लिए अवैध शिकार करना आसान हो जाता है।

अवैध कटाई और वन्यजीवों का शिकार:
शिकायतकर्ता लोचन कुमार चौहान ने वन विभाग को दिए गए पत्र में इस मुद्दे पर भी ध्यान आकर्षित किया है। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी मात्रा में कटाई के पीछे केवल लकड़ी की तस्करी ही नहीं, बल्कि वन्यजीवों के शिकार की संभावना भी नकारा नहीं जा सकती।

ग्रामीणों पर भी खतरा:
वन्यजीवों के आवास नष्ट होने से उनके मानव बस्तियों में घुसने की घटनाएं बढ़ सकती हैं। इससे ग्रामीणों की सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है।

वन कर्मियों पर गंभीर आरोप:
शिकायत पत्र के अनुसार, पिछले कई वर्षों से वन कर्मियों की तैनाती के कारण स्थानीय ग्रामीण भय के माहौल में जी रहे हैं। इन कर्मियों पर अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अवैध गतिविधियों में लिप्त रहने और अधिकारियों की चेतावनियों को अनदेखा करने के आरोप हैं। शिकायत में बताया गया कि ये कर्मी अपने आपको इतना शक्तिशाली मानते हैं कि वन अधिकारियों तक की अनदेखी करने लगे हैं।

अवैध कटाई के संकेत:
गिरना बीट में वन संरक्षण नियमों की अवहेलना करते हुए 1,000 से अधिक हरे वृक्षों की कटाई की गई है। इस कटाई से न केवल पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने का खतरा उत्पन्न हो गया है, बल्कि क्षेत्र में वन्यजीवों का अस्तित्व भी खतरे में है।

वन तस्करी में संलिप्तता की संभावना:
शिकायतकर्ता लोचन कुमार चौहान के अनुसार, इतनी बड़ी संख्या में वृक्षों की कटाई बिना वन कर्मियों की मिलीभगत के संभव नहीं हो सकती। यह कोई 10-20 वृक्षों की मामूली घटना नहीं है बल्कि एक संगठित तंत्र द्वारा चलाए जा रहे तस्करी के संकेत देती है।

वन कर्मियों की निडरता:
शिकायत पत्र में कहा गया है कि वर्षों से एक ही स्थान पर पदस्थ वन कर्मी इतने निडर हो गए हैं कि वे उच्च अधिकारियों की चेतावनियों को भी अनदेखा करते हैं। आरोप है कि ये कर्मी खुद को “पावरफुल” मानते हुए जंगल के संसाधनों का दोहन कर रहे हैं।

जांच और कार्रवाई की मांग:
शिकायतकर्ता ने इस पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कराने और दोषी वन रेंजर, फॉरेस्ट गार्ड्स पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो वन संरक्षण अधिनियम का खुला उल्लंघन जारी रहेगा, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान हो सकता है।

ग्रामीणों की आवाज:
स्थानीय लोगों का कहना है कि वे इन वन कर्मियों के डर के कारण अपनी समस्याओं को खुलकर व्यक्त करने में सक्षम नहीं हैं। अगर यह स्थिति जारी रही तो जंगलों के अस्तित्व पर गंभीर संकट आ सकता है। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि वन कर्मियों के दबदबे और अवैध गतिविधियों के कारण वे अपनी बात खुलकर नहीं रख पाते। कटाई और तस्करी के चलते वन क्षेत्र का तेजी से क्षरण हो रहा है, जिससे पर्यावरण और वन्यजीवों को भारी नुकसान हो सकता है।

शिकायत पत्र की प्रतियां उच्च अधिकारियों तक भेजी गई हैं। पर्यावरण संरक्षण और वन्य संपदा की रक्षा के लिए मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है।

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