कैश बुक नहीं होने का बहाना: मनेन्द्रगढ़ वनमंडलाधिकारी की लापरवाही उजागर

वनवित्तीय नियमों की अवहेलना, भ्रष्टाचार की ओर इशारा ?

मनेन्द्रगढ़ वनमंडलाधिकारी द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी में कैश बुक नहीं होने का हवाला देते हुए जवाब दिया गया है। यह पत्र न केवल वन विभाग की वित्तीय व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि वनवित्तीय नियम 217 की खुलेआम अवहेलना का भी प्रमाण है।

कैश बुक संधारण की अनिवार्यता:
वनवित्तीय नियम 217 के तहत प्रत्येक वनमंडलाधिकारी के लिए कैश बुक, फॉर्म 14, एवं अन्य वित्तीय दस्तावेजों का संधारण अनिवार्य है। यह दस्तावेज सरकारी धन के उपयोग एवं लेन-देन की पारदर्शिता सुनिश्चित करते हैं।

भ्रष्टाचार की आशंका:
कैश बुक नहीं होने का दावा यह संकेत देता है कि वित्तीय गड़बड़ियों एवं संभावित भ्रष्टाचार को छिपाने का प्रयास किया जा रहा है। वन विभाग के कार्यों में वित्तीय अनियमितता की ओर इशारा करते हुए यह लापरवाही विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है।

वनमंडलाधिकारी की हिम्मत:
चौंकाने वाली बात यह है कि वनमंडलाधिकारी ने यह दावा करते हुए स्पष्ट पत्र जारी किया है, जिससे यह प्रतीत होता है कि उन्हें किसी उच्चाधिकारी या शासन से कार्रवाई का कोई भय नहीं है।

कार्यवाही की मांग:
इस प्रकरण में उच्च अधिकारियों से अपील है कि वे तुरंत संज्ञान लेते हुए निम्नलिखित कदम उठाएं:

कैश बुक एवं वित्तीय दस्तावेजों का सत्यापन: संबंधित दस्तावेजों की तत्काल जांच होनी चाहिए।
वनमंडलाधिकारी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई: नियमों की अवहेलना के लिए उचित दंड दिया जाए।
भ्रष्टाचार निरोधक जांच: पूरे मामले में विस्तृत जांच की जाए ताकि भ्रष्टाचार के दोषियों को दंडित किया जा सके।
इस प्रकार की घटनाएं शासन की पारदर्शिता एवं ईमानदारी की छवि को धूमिल करती हैं। यदि उच्चाधिकारियों ने इस प्रकरण को गंभीरता से नहीं लिया, तो जनता का सरकारी संस्थानों से विश्वास पूरी तरह खत्म हो जाएगा।

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