छत्तीसगढ़: वन विभाग के कैम्पा में 2.31 करोड़ों के भुगतान पर सवाल, कार्यशाला के बाद जारी हुई निविदा और वर्क ऑर्डर

रायपुर: छत्तीसगढ़ के वन विभाग (CAMPA) से जुड़ा एक बड़ा मामला सामने आया है जिसमें राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला के आयोजन को लेकर गंभीर अनियमितताओं का आरोप लगाया जा रहा है। दस्तावेजों के अनुसार, यह कार्यशाला 23 से 25 मार्च 2023 के बीच आयोजित की गई थी, जबकि संबंधित निविदा 17 मई 2023 को जारी की गई और वर्क ऑर्डर 18 मई 2023 को दिया गया।

इस आयोजन के लिए मुंबई स्थित एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को ₹2.31 करोड़ का भुगतान किया गया है। दस्तावेज़ से यह सवाल खड़ा होता है कि जब कार्यशाला मार्च में ही हो चुकी थी, तो निविदा और वर्क ऑर्डर दो महीने बाद कैसे जारी किए गए?

PDF डाउनलोड करने का लिंक  https://drive.google.com/file/d/1NIuk5vb7bi7M_EWN3PO3b5NX0aPw-MyH/view?usp=drivesdk

संभावित गड़बड़ी का संदेह

नियमों के तहत किसी भी सरकारी कार्यक्रम के लिए पहले निविदा जारी करना और वर्क ऑर्डर देना आवश्यक होता है। उसके बाद ही कार्यक्रम का आयोजन किया जा सकता है। इस मामले में उल्टा होते हुए देखा गया है, जिससे सरकारी धन के दुरुपयोग और प्रक्रियागत गड़बड़ी की आशंका पैदा हो गई है।

विशेषज्ञों की राय

लोक प्रशासन विशेषज्ञ इसे प्रक्रियागत उल्लंघन मानते हैं। उनका कहना है कि निविदा प्रक्रिया पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए होती है। यदि कार्यक्रम के बाद निविदा जारी की गई है, तो यह गंभीर वित्तीय अनियमितता का संकेत है।

जांच की मांग

इस प्रकरण को लेकर जानकारों ने मामले की विस्तृत जांच और जवाबदेही की मांग की है। साथ ही सूचना के अधिकार (RTI) के माध्यम से पूरी प्रक्रिया की जानकारी मांगे जाने की बात कही जा रही है।

क्या हो सकते हैं अगले कदम?

  1. RTI आवेदन: इस आयोजन से संबंधित सभी दस्तावेज़ों की प्रतियां मांगी जा सकती हैं। जो कि 4thpiller के पास है।
  2. शिकायत: राज्य के भ्रष्टाचार निवारण प्रकोष्ठ या लोकायुक्त के पास शिकायत दर्ज की जा सकती है।
  3. मीडिया और जन जागरूकता: मामले को जनता के सामने लाकर पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकती है।

यह मामला सरकारी धन के दुरुपयोग और प्रक्रियागत पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। देखना होगा कि प्रशासन इस पर क्या कदम उठाता है।

छत्तीसगढ़ में कार्यशाला पर करोड़ों खर्च, लेकिन धरातल पर नहीं दिखा कोई प्रभाव

छत्तीसगढ़ के वन विभाग द्वारा भू-जल संरक्षण और लघु वनोपज उत्पाद के स्थायी प्रबंधन विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यशाला पर ₹2.31 करोड़ खर्च किए गए। इस कार्यशाला का आयोजन 23 से 25 मार्च 2023 को बताया गया है, जिसके लिए निविदा और वर्क ऑर्डर आयोजन के दो महीने बाद मई 2023 में जारी किए गए थे।

हालांकि, इस महंगे आयोजन के बावजूद राज्य में इस कार्यशाला से जुड़े किसी ठोस या व्यावहारिक परिणाम का धरातल पर कोई असर नहीं दिख रहा है। न तो लघु वनोपज के बेहतर प्रबंधन के कोई नए मॉडल सामने आए हैं और न ही भू-जल संरक्षण के लिए कोई नई योजना क्रियान्वित हुई है।

क्या थी कार्यशाला की मंशा?

कार्यशाला का उद्देश्य भू-जल संरक्षण की रणनीतियां तैयार करना और लघु वनोपज के सतत प्रबंधन के उपाय सुझाना था। यह एक राष्ट्रीय स्तर का आयोजन था जिसमें विशेषज्ञों की भागीदारी का दावा किया गया।

धरातल की हकीकत

  • भू-जल स्तर: प्रदेश के कई जिलों में भू-जल संकट जस का तस बना हुआ है। कोई नई संरचनात्मक परियोजनाएं नहीं दिख रही हैं।
  • लघु वनोपज प्रबंधन: वनोपज से जुड़े आदिवासी समुदायों को अब तक किसी नई नीति या आर्थिक लाभ का लाभ नहीं मिला है।
  • जागरूकता की कमी: इस कार्यशाला की जानकारी तक ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को नहीं है।

विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार की कार्यशालाएं केवल कागजों तक सीमित रहती हैं यदि इनसे निकलने वाले सुझावों को धरातल पर लागू न किया जाए। बिना किसी ठोस क्रियान्वयन के ये आयोजन सिर्फ सरकारी धन के दुरुपयोग तक सीमित रह जाते हैं।

जनता की मांग

  • इस पूरे आयोजन की विस्तृत जांच की मांग की जा रही है।
  • खर्च किए गए ₹2.31 करोड़ की जवाबदेही तय होनी चाहिए।
  • इस कार्यशाला से निकले सुझावों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए ताकि जनता को भी जानकारी मिल सके।

यह मामला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि बड़े-बड़े सरकारी आयोजनों से तब तक कोई फायदा नहीं होगा जब तक उनकी योजना और क्रियान्वयन में पारदर्शिता और ईमानदारी न बरती जाए।

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