वन विभाग की सूझबूझ से बड़ी सफलता: 13 किलो दुर्लभ पैंगोलिन स्केल्स के साथ दो तस्कर गिरफ्तार


वन विभाग की सूझबूझ से बड़ी सफलता: 13 किलो दुर्लभ पैंगोलिन स्केल्स के साथ दो तस्कर गिरफ्तार

जगदलपुर। वन्य जीवों की तस्करी रोकने में जुटे छत्तीसगढ़ वन विभाग को एक और बड़ी सफलता मिली है। विभागीय अमले की सक्रियता, सतर्कता और सूझबूझ से एक बार फिर दुर्लभ और संरक्षित वन्य प्राणी पैंगोलिन (साल खोर) की तस्करी करने वाले दो तस्करों को रंगे हाथों पकड़ा गया है। उनके कब्जे से करीब 13 किलो पैंगोलिन स्केल्स (खाल) बरामद की गई है। यह कार्रवाई जगदलपुर शहर के परपा इलाके में दबिश देकर की गई।

इस पूरी कार्रवाई को छत्तीसगढ़ के वन मंत्री श्री केदार कश्यप जी के मार्गदर्शन में अंजाम दिया गया, जो लगातार वन्य अपराधों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई के निर्देश दे रहे हैं। प्राप्त गुप्त सूचना के आधार पर बस्तर वनमंडल एवं राज्य स्तरीय उड़नदस्ता की संयुक्त टीम ने सुनियोजित रणनीति के तहत दो तस्करों को गिरफ्तार कर लिया।

पैंगोलिन: सबसे अधिक तस्करी किया जाने वाला स्तनपायी प्राणी

पैंगोलिन एक विलुप्तप्राय स्तनधारी जीव है, जिसकी त्वचा पर मोटे, overlapping स्केल्स होते हैं। ये स्केल्स मुख्यतः केराटिन (Keratin) से बने होते हैं, जो मनुष्य के नाखूनों और बालों में पाया जाता है। इन्हीं स्केल्स की तस्करी चीन, वियतनाम जैसे देशों में दवाओं और झूठे परंपरागत उपचारों के नाम पर की जाती है। यही कारण है कि पैंगोलिन आज विश्व का सबसे अधिक तस्करी किया जाने वाला स्तनपायी बन चुका है।

भारत में पैंगोलिन को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (संशोधित 2022) के तहत अनुसूची-1 में रखा गया है, यानी इसे सर्वोच्च सुरक्षा प्राप्त है। इसके शिकार या तस्करी पर कड़ी सजा व भारी जुर्माने का प्रावधान है।

बीजापुर के तस्कर, बस्तर के जंगलों से खाल जुटाकर बेचने आए थे जगदलपुर

पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ में सामने आया कि वे बीजापुर जिले के निवासी हैं। उन्होंने बस्तर क्षेत्र, विशेष रूप से पुनेरी, कांकेर, तेतराम जैसे ग्रामीण और वनांचल क्षेत्रों से पैंगोलिन की खाल एकत्र की थी। ये तस्कर इन्हें जगदलपुर में बेचने की फिराक में थे और ग्राहक तलाश रहे थे। उसी दौरान उन्हें रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया गया।

पूछताछ में आरोपियों ने कई अंतरराज्यीय तस्करी नेटवर्क का भी खुलासा किया है, जिसकी जांच अब विभाग द्वारा की जा रही है।

14 दिन की न्यायिक अभिरक्षा, आगे की जांच जारी

वन विभाग ने आरोपियों के विरुद्ध वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत मामला दर्ज कर माननीय न्यायालय में प्रस्तुत किया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। विभाग अब इस गिरोह से जुड़े अन्य लोगों की तलाश कर रहा है।

टीम वर्क और समर्पण की मिसाल बनी यह कार्रवाई

इस सफलता का श्रेय पूरी टीम के कुशल नेतृत्व और आपसी समन्वय को जाता है।
राज्य स्तरीय उड़नदस्ता से श्री संदीप सिंह (सहायक वन संरक्षक), राजेन्द्र निराला, गजेन्द्र पटेल,
बस्तर वनमंडल से श्री योगेश राठे (सहायक वन संरक्षक), श्री देवेंद्र सिंह वर्मा (वन परिक्षेत्र अधिकारी), श्री सौरभ रजक, श्री रवीन्द्र धीरही, सुश्री सृष्टि ठाकुर, श्रीमती हेमलता देव, विवेक जायसवाल, सुमित साहू, डॉ. प्रीतम पांडेय,
परिक्षेत्र जगदलपुर से ललनजी तिवारी (डिप्टी रेंजर), श्रीधर स्नेही, कमल ठाकुर, उमरदेव कोर्राम, कविता ठाकुर, रामसिंह बघेल, कृष्णा दुबे, सतजित भट्ट, रणवीर सिंह, सलीकराम चौकीदार सहित अनेक अधिकारी-कर्मचारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

श्री देवेंद्र सिंह वर्मा वन परिक्षेत्र अधिकारी जगदलपुर अधीनस्थो के साथ

🔴 इस प्रकार वन विभाग की टीम ने एक और बार साबित कर दिया कि अगर सूचना, योजना और समर्पण के साथ कार्रवाई की जाए, तो वन्य जीवों की रक्षा संभव है।
अब आवश्यकता है जनभागीदारी की—यदि आप किसी प्रकार की वन्य जीव तस्करी या शिकार की सूचना जानते हैं तो तत्काल निकटतम वन कार्यालय को सूचित करें।

वन्य प्राणियों की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा है।

देवेंद्र सिंह वर्मा: वन अपराधियों के खिलाफ लगातार सख्त कार्रवाई के लिए पहचाने जाने वाले अधिकारी।

वन परिक्षेत्र अधिकारी जगदलपुर श्री देवेंद्र सिंह वर्मा छत्तीसगढ़ के उन गिने-चुने अधिकारियों में से हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान वन्य अपराधों पर नकेल कसने में उल्लेखनीय कार्य किया है।

इस हालिया पैंगोलिन तस्करी प्रकरण से पहले भी श्री वर्मा ने कई बड़े वन अपराध प्रकरणों में न सिर्फ त्वरित कार्रवाई की है, बल्कि भारी मात्रा में अवैध रूप से परिवहन किए जा रहे संसाधनों को भी ज़ब्त किया है।

उनकी कार्रवाई में अब तक कई इनोवा, स्कॉर्पियो, बॉलेरो जैसे वाहन जब्त किए जा चुके हैं, जो अवैध तस्करी और वन अपराधों में प्रयुक्त किए जा रहे थे।

श्री वर्मा की पहचान एक तेजतर्रार, निडर और ईमानदार वन अधिकारी के रूप में बन चुकी है, जो टीमवर्क, तकनीक और खुफिया सूचना के माध्यम से वन्य जीवों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं।

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