दिल्ली। केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला लिया है। नरेंद्र मोदी सरकार ने घोषणा की है कि आगामी जनगणना के साथ ही अब जातिगत जनगणना भी कराई जाएगी। कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस फैसले की जानकारी दी और कहा कि “राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने तय किया है कि जाति आधारित आंकड़े भी अगली जनगणना में दर्ज किए जाएंगे।”
उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पिछली सरकारों ने जातिगत जनगणना को केवल राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया। 2010 में मनमोहन सिंह सरकार ने भले लोकसभा में इसे कैबिनेट के सामने रखने की बात कही थी, लेकिन उसके बाद सिर्फ खानापूरी के तौर पर एक सर्वे कराया गया।
अश्विनी वैष्णव ने यह भी स्पष्ट किया कि जनगणना संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत केंद्र का विषय है। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों ने भले ही अपने-अपने सर्वेक्षण किए हैं, लेकिन वे पारदर्शी नहीं रहे और इससे समाज में भ्रम की स्थिति बनी।
भारत में जनगणना हर 10 साल में होती है। पहली जनगणना 1872 में और आखिरी बार 2011 में हुई थी। 2021 की जनगणना कोरोना महामारी के चलते टल गई। अब इसे 2026 तक किए जाने की संभावना है, जिससे जनगणना चक्र भी बदल सकता है।
जातिगत जनगणना से सरकार को नीतियों में ज्यादा समावेशी बदलाव करने का मौका मिलेगा, खासकर ओबीसी वर्ग के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में।