
रायपुर। छत्तीसगढ़ वन विभाग में प्रशासनिक अनियमितताओं, भ्रष्टाचार और मैदानी कर्मचारियों के शोषण को लेकर पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता शेख अब्दुल करीम ने एक विस्तृत रिपोर्ट छत्तीसगढ़ के सभी मुख्य वन संरक्षकों (CCF) को सौंपी है। इस रिपोर्ट में वनरक्षक, डिप्टी रेंजर, रेंजर एवं अन्य छोटे कर्मचारियों की तकलीफों को प्रमुखता से उठाया गया है।

रिपोर्ट में उठाए गए प्रमुख मुद्दे:
- वनरक्षकों को जंगल सुरक्षा के बजाय VIP ड्यूटी में लगाने का दबाव।
- वन अपराधों की निष्पक्ष रिपोर्टिंग करने पर रेंजरों और SDO द्वारा दबाव डालना और मामलों को रफा-दफा करने की प्रवृत्ति।
- वन अधिकार पट्टों के वितरण में धांधली एवं अपात्र व्यक्तियों को लाभ दिलाने का आरोप।
- वन्यजीव संरक्षण एवं विभागीय विकास कार्यों में घोटाले – नरवा विकास, बोल्डर चेक डैम, कंटूर ट्रेंच जैसे कार्यों में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी।
- ई-कुबेर प्रणाली लागू होने के बावजूद रेंजरों के व्यक्तिगत खातों में संदिग्ध RTGS ट्रांसफर।
- वन अपराधों की आड़ में छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाना, महीनों तक निलंबन में रखना और CR में प्रताड़ना।
- वित्तीय अनियमितताओं में उच्चाधिकारियों की भूमिका – छोटे कर्मचारियों से वसूली तुरंत, मगर बड़े अधिकारियों को बचाने की साजिश।
रिपोर्ट अतिरिक्त मुख्य सचिव और PCCF को भी सौंपी

शेख अब्दुल करीम ने इस रिपोर्ट की प्रति अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन) श्रीमती ऋचा शर्मा, पांचों प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) सहित अन्य उच्चाधिकारियों को भी सौंपी है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि विभाग के बड़े अधिकारी अपने अधीनस्थ छोटे कर्मचारियों की परेशानियों को समझेंगे और त्वरित आवश्यक कार्रवाई करेंगे।
कार्यवाही नहीं हुई तो रिपोर्ट मुख्यमंत्री और वन मंत्री को सौंपी जाएगी
सामाजिक कार्यकर्ता करीम ने स्पष्ट किया कि यदि कुछ दिनों में इस रिपोर्ट पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई, तो इसे सीधे मुख्यमंत्री एवं वन मंत्री छत्तीसगढ़ शासन को सौंपा जाएगा।
वन विभाग के कर्मचारियों से जुड़े इस महत्वपूर्ण मामले पर शासन और प्रशासन किस तरह की प्रतिक्रिया देता है, यह देखना दिलचस्प होगा।
“आत्ममंथन रिपोर्ट”
विषय: छत्तीसगढ़ वन विभाग में प्रशासनिक अनियमितताओं एवं कार्य निष्पादन में बाधाओं पर आत्ममंथन रिपोर्ट
प्रस्तावना:
छत्तीसगढ़ वन विभाग में वन संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए विभिन्न पदों पर अधिकारियों और कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय की गई है। इनमें वनरक्षक (Forest Guard), डिप्टी रेंजर (Deputy Ranger), रेंजर (Forest Ranger), उपवनमंडलाधिकारी (SDO), एवं वनमंडलाधिकारी (DFO) की भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से निर्धारित हैं। हालांकि, वर्तमान परिदृश्य में यह देखने में आ रहा है कि ये अधिकारी एवं कर्मचारी अपने बेसिक विभागीय कार्यों को सही ढंग से अंजाम नहीं दे पा रहे हैं और प्रशासनिक दबावों के कारण मूल कार्यों से भटक गए हैं।
1. वन विभाग के प्रत्येक पद की बेसिक जिम्मेदारियाँ
(i) वनरक्षक (Forest Guard) के कार्य:
- वन क्षेत्र की सुरक्षा एवं गश्त करना।
- अवैध कटाई, शिकार, आगजनी एवं अतिक्रमण को रोकना।
- वन अपराधियों को पकड़ना और रिपोर्ट तैयार करना।
- वन्यजीवों की सुरक्षा एवं संरक्षण सुनिश्चित करना।
(ii) डिप्टी रेंजर (Deputy Ranger) के कार्य:
- वनरक्षकों के कार्यों की निगरानी करना।
- वन अपराधों की जांच और आवश्यक कानूनी कार्रवाई करना।
- वन क्षेत्रों में वृक्षारोपण, जल संरक्षण और पुनर्वनीकरण परियोजनाओं को लागू करना।
(iii) रेंजर (Forest Ranger) के कार्य:
- वन क्षेत्रों की प्रशासनिक एवं तकनीकी निगरानी करना।
- वनों की सुरक्षा और वन्यजीव प्रबंधन सुनिश्चित करना।
- वन अपराधों की रिपोर्ट तैयार कर उच्च अधिकारियों को भेजना।
(iv) उपवनमंडलाधिकारी (SDO) के कार्य:
- वनरक्षक, डिप्टी रेंजर, और रेंजर के कार्यों की निगरानी करना।
- वन विकास कार्यों का सही क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।
- भूमि अतिक्रमण, वन अपराधों और अवैध गतिविधियों की जांच करना।
(v) वनमंडलाधिकारी (DFO) के कार्य:
- पूरे वन मंडल का प्रबंधन और प्रशासन देखना।
- वन क्षेत्र में अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए कठोर कदम उठाना।
- वन अपराधों पर उचित कार्यवाही सुनिश्चित करना।
- विभागीय बजट और योजनाओं को सही ढंग से लागू करना।
2. कार्यों में हो रही अनियमितताएँ एवं प्रशासनिक दबाव
वर्तमान में विभागीय कर्मचारियों को उनके वास्तविक कर्तव्यों से हटाकर अन्य गैर-ज़रूरी कार्यों में लगाया जा रहा है। प्रमुख समस्याएँ इस प्रकार हैं:

(i) VIP ड्यूटी में कर्मचारियों का दुरुपयोग
वनरक्षक, डिप्टी रेंजर एवं रेंजर को वन संरक्षण के बजाय VIP ड्यूटी में लगाए रखा जाता है। इससे जंगलों की सुरक्षा प्रभावित होती है और अवैध गतिविधियाँ बढ़ जाती हैं।

(ii) वन अपराधों को दबाने का दबाव
जब कोई वनरक्षक या डिप्टी रेंजर अवैध कब्जे या वन अपराध की रिपोर्ट करता है, तो रेंजर एवं SDO उन्हें डांट-डपट कर मामले को रफा-दफा करने का आदेश देते हैं। यदि रेंजर फिर भी ईमानदारी से मामला बनाता है, तो DFO उसे खारिज कर देता है, यह कहकर कि स्थानीय प्रभावशाली लोगों (विधायक, मंत्री, विपक्षी नेता) से टकराव नहीं लेना है।

(iii) वन अधिकार पट्टा वितरण में अनियमितता
वन पट्टा वितरण में नियमों की अनदेखी की जा रही है। DFO और SDO अपने पद का प्रभाव दिखाकर अपात्र व्यक्तियों को भी पात्र घोषित कर पट्टा वितरण करवाते हैं, जबकि नीचे के कर्मचारी इसका विरोध करते हैं।

(iv) निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार
विभागीय विकास कार्यों जैसे नरवा विकास, बोल्डर चेक डैम, कंटूर ट्रेंच, और वन्यजीव चारागाह में व्यापक अनियमितताएँ देखी गई हैं:
- 300 बोल्डर चेक डैम के बजाए केवल 120-150 बनवाए जाते हैं।
- बिना जोताई और बुवाई के ही पूरी राशि निकाल ली जाती है।
(v) ई-कुबेर प्रणाली के बावजूद RTGS का दुरुपयोग
DFO ई-कुबेर प्रणाली लागू होने के बावजूद रेंजरों के व्यक्तिगत खातों में RTGS ट्रांसफर कर रहा है, जिससे वित्तीय अनियमितताओं की संभावना बढ़ रही है।

3. वन कर्मचारियों की प्रताड़ना एवं शोषण
(i) अनुशासनात्मक कार्रवाई में भेदभाव
यदि किसी क्षेत्र में 10-15 पेड़ों की अवैध कटाई हो जाती है, तो सीधे वनरक्षक, वनपाल या डिप्टी रेंजर को सस्पेंड कर दिया जाता है, जबकि उच्च अधिकारियों की लापरवाही की कोई जाँच नहीं होती। छोटे कर्मचारी 7-8 महीने या साल भर तक सस्पेंड रखे जाते हैं, जिससे उनका मानसिक और आर्थिक शोषण होता है।
(ii) कार्यों में अत्यधिक दबाव और धमकी
वनरक्षक, वनपाल, और डिप्टी रेंजर को:
- छुट्टी लेने से लेकर वापसी तक कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
- यदि वे विभागीय कार्यों की रिपोर्टिंग में थोड़ी भी चूक करते हैं, तो उन्हें CR (गोपनीय रिपोर्ट) में जानबूझकर “ग” या “घ” ग्रेड देकर प्रताड़ित किया जाता है।
(iii) वसूली प्रक्रिया में भेदभाव
वन विभाग में वित्तीय हानि की वसूली में भी पक्षपात देखा गया है:
- छोटे कर्मचारियों (वनरक्षक, वनपाल, डिप्टी रेंजर) से तुरंत वसूली कर ली जाती है।
- जबकि रेंजर, SDO और DFO के मामलों को शासन स्तर तक लंबित रखकर रफा-दफा कर दिया जाता है।
4. आत्ममंथन एवं सुधार के सुझाव
- वन कर्मचारियों को VIP ड्यूटी में लगाने की प्रथा को बंद किया जाए।
- वन अपराधों की निष्पक्ष जाँच की जाए और उच्च अधिकारियों के हस्तक्षेप को रोका जाए।
- वन अधिकार पट्टा वितरण में पारदर्शिता लाई जाए।
- विभागीय निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार की जाँच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाए।
- वन कर्मचारियों की CR प्रणाली को निष्पक्ष बनाया जाए।
- अनुशासनात्मक कार्रवाई के नाम पर छोटे कर्मचारियों का शोषण बंद किया जाए।
- RTGS के अनियमित उपयोग की स्वतंत्र एजेंसी से जाँच कराई जाए।
निष्कर्ष:
इस रिपोर्ट का उद्देश्य किसी पर सीधा आरोप लगाना नहीं है, बल्कि यह वन विभाग की वर्तमान प्रणाली में मौजूद खामियों पर आत्ममंथन करने और सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए एक सामान्य जानकारी मात्र है। यदि किसी को इस रिपोर्ट की सत्यता पर संदेह है, तो वह गूगल अर्थ एवं अन्य संसाधनों के माध्यम से वास्तविक स्थिति की जाँच कर सकता है।
यदि इन प्रशासनिक अनियमितताओं पर ध्यान नहीं दिया गया, तो वन विभाग का मूल उद्देश्य – “वनों एवं वन्यजीवों का संरक्षण” – पूरी तरह से विफल हो सकता है।
(यह रिपोर्ट वन विभाग के सभी कर्मियों के हितों को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है।)
सादर,
(शेख अब्दुल करीम)
(पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता)
मोबाइल – 7580999099