छत्तीसगढ़ में नए IFS अधिकारियों को भ्रष्टाचार का ‘प्रैक्टिकल’ सिखा रहे सीनियर अधिकारी?

छत्तीसगढ़ के वन विभाग में भ्रष्टाचार को लेकर एक गंभीर मामला सामने आ रहा है। कहा जा रहा है कि राज्य में वरिष्ठ भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी, नए IFS अधिकारियों को ‘प्रैक्टिकल बनो, प्रैक्टिकल रहो’ का पाठ पढ़ाते हुए भ्रष्टाचार के गुर सिखा रहे हैं।
भ्रष्टाचार का ‘प्रैक्टिकल’ पाठ?
वन विभाग के मुख्यालय में कथित तौर पर यह सिखाया जा रहा है कि कौन सा ठेका किसे देना है और किस अधिकारी या ठेकेदार को कितना लाभ देना है। नए अधिकारियों को यह बताया जा रहा है कि—

- राजनीतिक दबाव: किस अधिकारी को कितना काम सौंपना है, यह मुख्यालय से तय होता है। “यह मंत्री जी के आदमी हैं, यह सांसद जी के परिचित हैं, यह सीएम बंगले से जुड़े हैं,” इस तरह के निर्देश दिए जाते हैं।
- ऊपर से आदेश: नए IFS अधिकारियों से कहा जाता है कि ‘ऊपर से फोन आया है, इन्हें मैनेज करो’, और उन्हें दबाव में लाया जाता है।
- भ्रष्टाचार की मजबूरी: ठेकेदारों द्वारा आपूर्ति की जाने वाली सामग्री की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता क्योंकि वे ‘VIP’ ठेकेदार होते हैं। उनके प्रभाव के चलते DFO (डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर) जांच-पड़ताल करने में असमर्थ होते हैं।

4. बंगलों के सप्लायर: बड़े अधिकारी इन तथाकथित VIP सप्लायरों का स्वागत करते हैं और उनके द्वारा लाए गए सामान को बिना किसी निरीक्षण के स्वीकार कर लेते हैं। सप्लायर पहले से ही DFO को बता देते हैं कि वे “ऊपर” 25-30% तक हिस्सा देकर आए हैं, इसलिए बाकी बचे अधिकारियों को भी उसी हिसाब से एडजस्ट करना होगा।

5. भ्रष्टाचार के प्रोजेक्ट: वर्तमान में बार्बेड वायर, चैनल लिंक जाली, फेंसिंग पोल, वर्मी कम्पोस्ट, रेत गिट्टी, सीमेंट, खाद जैसी सामग्रियों की खरीद में भारी गड़बड़ी हो रही है। इनकी गुणवत्ता की जांच नहीं की जा रही, न ही क्षेत्र में कितना सामग्री उपयोग किया गया इस और कोई अधिकारी ध्यान दें रहा है, क्योंकि इसमें बड़े अधिकारियों का सीधा हस्तक्षेप है।

6. सामग्री सप्लाई में गड़बड़ी :- इस मामले में सूरजपुर, बलरामपुर, जांजगीर चाम्पा, जशपुर, मनेन्द्रगढ़, कोरिया, सरगुजा, मरवाही, मुंगेली, कांकेर, कोरबा, बलौदाबाजार, कटघोरा इत्यादि वन मण्डलों में नवम्बर दिसंबर 2024 से फरवरी 2025 तक में एक ही संस्था से हजारों टन बार्बेट वायर, चैनलिंक जाली, फेंसिंग पोल वर्मी कम्पोस्ट कि खरीदी कि जा रही हैं जो कि राशि में करोड़ों कि होती हैं, इसमें देखना है कि इनमें सप्लाई होने वाले सामग्री पूरी सप्लाई होती हैं या नहीं, इसपर उच्चाधिकारी नजर रखतें हैं या नहीं ?


IFS अधिकारियों की बदलती कार्यशैली
जिन नए IFS अधिकारियों ने इस भ्रष्टाचार में शामिल होने से इनकार किया, उन्हें वन मुख्यालय में ‘लूप लाइन’ में डाल दिया गया। वे वहां पुराने सीनियर IFS कि भ्रष्टाचार से जुड़ी फाइलों की धूल साफ करने और अलमारी सजाने में व्यस्त हैं।

वन विभाग में इस कुप्रथा के चलते सीनियर अधिकारियों ने अपने पद का उपयोग गलत दिशा में करना शुरू कर दिया है। वे नए अधिकारियों को भ्रष्टाचार के व्यावहारिक पाठ पढ़ा रहे हैं, जिससे प्रशासनिक प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
जिम्मेदार प्रशासन और शासन कहां ?
आज के परिवेश में कई वरिष्ठ IFS अधिकारी, जो मैदानी पोस्टिंग में हैं, खुलेआम भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जा रहे हैं। इस वजह से नए अधिकारी भी धीरे-धीरे मूल सिद्धांतों से भटक रहे हैं।

जैसे 2 DFO के उदाहरण
- सुकमा के पूर्व DFO अशोक पटेल
- दुर्ग के वर्तमान DFO चंद्रशेखर परदेशी
इन जैसे कई अधिकारियों की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि वर्तमान में IFS अधिकारियों का व्यवहार उनके मूल कार्य और जिम्मेदारियों से बिल्कुल अलग हो गया है।
IFS अधिकारियों को सहज़, सरल, करुणामय और तार्किक होना चाहिए, लेकिन वर्तमान में उनकी कार्यशैली इसके विपरीत होती जा रही है। आने वाले समय में यह स्थिति और भी गंभीर हो सकती है, जिससे प्रदेश और देश की प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर संकट आ सकता है।
निष्कर्ष
अगर प्रशासन और सरकार ने समय रहते इस भ्रष्टाचार पर नियंत्रण नहीं किया, तो भविष्य में यह एक बड़ा घोटाला बन सकता है। नए IFS अधिकारियों को सही मार्गदर्शन देने की बजाय, भ्रष्टाचार में धकेलने की यह प्रवृत्ति न केवल वन विभाग बल्कि पूरे सरकारी तंत्र के लिए घातक साबित हो सकती है।
क्या शासन-प्रशासन इस पर ध्यान देगा, या आने वाला कल और भी अधिक भ्रष्टाचार की ओर बढ़ेगा ?
अब्दुल करीम
4thpiller.com