
सुकमा। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में तेंदूपत्ता बोनस घोटाले में वन मंडलाधिकारी (DFO) अशोक कुमार पटेल के निलंबन की खबर भले ही सुर्खियों में हो, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या सिर्फ एक अफसर को सस्पेंड करने से 80 हजार आदिवासियों को उनकी मेहनत की कमाई वापस मिलेगी ? सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई कब तक पूरी होगी और पीड़ित संग्राहकों को उनका हक कब मिलेगा ?


फैसला लेने में देरी क्यों?
बोनस घोटाले की खबरें महीनों से चल रही थीं। जांच रिपोर्ट भी 15 दिनों तक शासन की टेबल पर पड़ी रही, लेकिन फिर भी त्वरित कार्रवाई नहीं हुई। सरकार ने निलंबन का आदेश तो जारी कर दिया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि गबन की गई राशि की वसूली कैसे होगी और संग्राहकों को उनकी बकाया राशि कब मिलेगी ?

क्या DFO का निलंबन पर्याप्त है ?
आदिवासी संग्राहकों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई अधिकारी निलंबित हुआ या नहीं। उन्हें तो सिर्फ उनका मेहनताना चाहिए। अगर सरकार वास्तव में आदिवासियों के हितों की रक्षा करना चाहती है, तो निलंबन आदेश के साथ ही यह घोषणा भी करनी चाहिए थी कि 15 दिनों के भीतर संग्राहकों को उनका पूरा बोनस दिया जाएगा और दोषियों से वसूली की जाएगी।
भ्रष्ट अधिकारियों की बहाली पर रोक कब लगेगी?
छत्तीसगढ़ में पहले भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां भ्रष्ट अधिकारियों को पहले सस्पेंड किया गया और कुछ समय बाद ही उन्हें किसी “मलाईदार” पद पर बहाल कर दिया गया। मरवाही वनमंडल में भी ऐसा ही हुआ था, लेकिन अभी तक वहां भ्रष्टाचार से जुड़ी राशि की वसूली नहीं हो पाई है। सरकार को स्पष्ट नीति बनानी होगी कि भ्रष्टाचार में पकड़े गए अधिकारियों को दोबारा बहाल नहीं किया जाएगा और उनके खिलाफ फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई होगी।
भ्रष्टाचार की वसूली कब होगी?
छत्तीसगढ़ में कई IFS अधिकारी ऐसे हैं, जिनकी सेवा अवधि 5 से 13 महीने ही बची है, लेकिन उन पर लाखों रुपये की वसूली लंबित है। शासन स्तर पर उनकी फाइलें धूल खा रही हैं। जब तक सरकार इन फाइलों का निपटारा कर दोषियों से वसूली नहीं करती, तब तक भ्रष्टाचार पर रोक लगाना नामुमकिन है।
पत्रकारों, RTI कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों का मनोबल बना रहना चाहिए
जो भी पत्रकार, RTI कार्यकर्ता और सामाजिक संगठन सरकारी भ्रष्टाचार को उजागर करते हैं, सरकार को उनकी सुरक्षा और सहयोग सुनिश्चित करना चाहिए। अगर वे किसी घोटाले को सामने लाते हैं, तो प्रशासन को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए ताकि उनका मनोबल बना रहे और जनता को न्याय मिल सके।
सरकार किसी भी पार्टी की हो, कार्रवाई में देरी क्यों?
हर सरकार भ्रष्टाचार के मामलों में देरी करती है। चाहे वह वर्तमान सरकार हो या पूर्ववर्ती सरकार, हर बार जांच को लंबा खींचा जाता है और दोषियों को बचने का मौका दिया जाता है। जब तक सरकार भ्रष्टाचार पर माननीय नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री भारत सरकार के ‘Zero Tolerance’ की नीति नहीं अपनाएगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं करेगी, तब तक ऐसे घोटाले होते रहेंगे और आदिवासियों की मेहनत की कमाई लूटी जाती रहेगी।
निष्कर्ष
सिर्फ निलंबन से कुछ नहीं होगा। सरकार को चाहिए कि—
- तुरंत संग्राहकों को उनकी पूरी राशि लौटाई जाए।
- भ्रष्ट अधिकारियों की फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई हो और सजा दी जाए।
- गबन की गई राशि की वसूली तत्काल की जाए।
- भ्रष्ट अधिकारियों को दोबारा बहाल न किया जाए।
अगर सरकार इन कदमों को नहीं उठाती, तो यह साफ हो जाएगा कि कार्रवाई सिर्फ दिखावे के लिए की गई है और असली अपराधियों को बचाने की तैयारी पहले से ही कर ली गई है।

IFS अधिकारियों के भ्रष्टाचार के कारणों की जांच आवश्यक
सरकार को चाहिए कि एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करे, जो यह जांच करे कि आखिर IFS अधिकारी भ्रष्टाचार करने के लिए विवश क्यों होते हैं?
- क्या इनकी तनख्वाह इनके IFS स्टेटस के अनुरूप नहीं है?
- क्या वेतन से इनका अच्छा गुजारा नहीं चलता?
- या इन्हें किसी दबाव में आकर भ्रष्टाचार करना पड़ता है?
- अगर हां, तो यह दबाव कौन और क्यों बनाता है?
अगर IFS अधिकारियों को कोई भ्रष्टाचार के लिए विवश कर रहा है, तो इसकी गहरी जांच होनी चाहिए और यह पता लगाया जाना चाहिए कि ऐसी परिस्थिति क्यों और कैसे बनती है।
IFS की छवि बचाने के लिए सुधार आवश्यक
लगातार सामने आ रहे भ्रष्टाचार के मामलों से समाज में IFS अधिकारियों की छवि धूमिल हो रही है और युवा वर्ग में नकारात्मक सोच विकसित हो रही है। अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो भविष्य में इंडियन सर्विस को लेकर सम्मान और भरोसा कम हो सकता है।
इस स्थिति से निपटने के लिए IFS, IAS और IPS अधिकारियों की संयुक्त समिति बनाई जानी चाहिए, जो रायशुमारी कर यह तय करे कि—
- IFS अधिकारियों को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जाएं?
- भ्रष्टाचार के पीछे कौन-से आंतरिक और बाहरी दबाव काम करते हैं?
- भ्रष्टाचार रोकने के लिए प्रशासनिक और जमीनी स्तर पर क्या सुधार किए जाएं?
यदि सरकार इस मुद्दे की गहराई में जाकर ठोस सुधारात्मक कार्रवाई नहीं करती, तो आने वाले समय में IFS अधिकारियों की प्रतिष्ठा और जनता का भरोसा कमजोर हो सकता है। इसलिए भ्रष्टाचार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए नीति-निर्माण और जमीनी स्तर पर प्रभावी सुधार आवश्यक हैं।
रिपोर्ट :- 4thpiller.com
अब्दुल करीम, प्रधान संपादक।