कोरबा, छत्तीसगढ़: वन विभाग की “ईएसआईपी योजना” (ESIP) में एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं। पहले मुर्गी पालन परियोजना में भारी अनियमितताओं का मामला उजागर हुआ और अब इसी योजना के तहत मछली पालन के लिए स्वीकृत लाखों रुपये के गबन की बात सामने आई हैं।

वन प्रबंधन समिति के तहत संचालित मछली पालन परियोजना में भारी अनियमितताओं का मामला सामने आया है। वर्ष 2023-24 में “ईएसआईपी योजना” (ESIP) के तहत कटघोरा वनमंडल के पाली क्षेत्र में लोटान तालाब (खसरा क्रमांक 69/1, रकबा 2.510 हेक्टेयर) में यह कार्य किया गया था। परियोजना की कुल लागत ₹38,14,755 थी, इसी तरह दूसरा तालाब रामसागर तालाब कर्रानवागांव में भी 1975098 रूपये का बनाने कि बात कहीं गई हैं इस तरह कुल 57,89,848 रूपए के दो तालाब बनाने का कार्य योजना में बात कही गई है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में गंभीर खामियां पाई गईं।

तालाब की खुदाई में हेरफेर
जांच में पता चला कि जिस तालाब की खुदाई के नाम पर करोड़ों रुपये स्वीकृत किए गए, वहां केवल नाममात्र का काम किया गया। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह स्थल पहले से ही एक गड्ढे (डबरा) के रूप में मौजूद था, जिसे मामूली खुदाई कर तालाब का रूप दिया गया। जबकि परियोजना के तहत निर्धारित गहराई, चौड़ाई और लंबाई के अनुसार कार्य नहीं किया गया।

ESIP व चक्रिय निधि (रिवॉल्विंग फंड) का दुरुपयोग

ESIP एवं चक्रिय निधि (Revolving Fund) एक ऐसी वित्तीय व्यवस्था होती है, जिसके तहत सरकारी योजनाओं के लिए दी गई राशि को समय-समय पर पुनः उपयोग में लाने के लिए दिया जाता है। इस निधि का उद्देश्य होता है कि समिति या समूह इसका उपयोग करके आत्मनिर्भर बनें और नियमित रूप से अपनी आर्थिक गतिविधियों को जारी रखें।
कैसे किया जा रहा है दुरुपयोग?
- फर्जी दस्तावेज तैयार कर राशि निकालना: अधिकारियों द्वारा लाभार्थियों के नाम पर झूठे बिल और भुगतान के कागजात तैयार किए जाते हैं।
- कार्य अधूरा छोड़ना या केवल कागज़ों पर दिखाना: मछली पालन और मुर्गी पालन दोनों ही मामलों में यही हुआ है।
- समिति और समूहों पर दबाव बनाकर धनराशि का हेरफेर: वन प्रबंधन समितियों के सचिव आमतौर पर वनपाल या डिप्टी रेंजर होते हैं, जो उच्च अधिकारियों के दबाव में आकर इस भ्रष्टाचार में मौन समर्थन देते हैं।
योजनाओं की आड़ में सरकारी धन को निजी हितों के लिए इस्तेमाल करना: सरकार द्वारा दी गई निधि को वास्तविक हितग्राहियों तक न पहुंचाकर अधिकारियों के बीच बांट दिया जाता है।
गड़बड़ी, जांच की मांग
पाली वनमंडल में ईएसआईपी योजना के तहत संचालित मछली पालन परियोजना में अनियमितताओं तत्कालीन डीएफओ प्रेमलता यादव, एसडीओ चंद्रकांत टिकरिहा और तत्कालीन रेंजर अभिषेक दुबे (वर्तमान में केंदई रेंज) के कार्यकाल में हुआ।
वन प्रबंधन समितियों के सचिव वन विभाग के वनपाल या डिप्टी रेंजर होते हैं, जो अपने वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव में काम करने के लिए मजबूर होते हैं।
अगर कोई कर्मचारी इस भ्रष्टाचार का विरोध करता है, तो उसे निलंबन, वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (CR) खराब करने और पुराने मामलों की जांच कर वसूली का डर दिखाया जाता है। कई कर्मचारी ने डर के कारण इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है।
पूर्व में भी हो चुके हैं ऐसे मामले
वन विभाग के विभिन्न योजनाओं में पहले भी चक्रिय निधि का इसी तरह दुरुपयोग किया गया है। मछली पालन और मुर्गी पालन के अलावा, अन्य योजनाओं जैसे बकरी पालन, मधुमक्खी पालन, और खेती संबंधित परियोजनाओं में भी इस तरह की गड़बड़ियों की शिकायतें मिलती रही हैं।
क्या होगी कार्रवाई?
अब सवाल यह उठता है कि क्या शासन इन घोटालों पर कोई ठोस कदम उठाएगा? या फिर ये मामले फाइलों में दबकर रह जाएंगे? स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों ने इस पूरे घोटाले की निष्पक्ष जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। यदि सही तरीके से जांच हो, तो इस भ्रष्टाचार में कई बड़े अधिकारियों की संलिप्तता सामने आ सकती है।
– विशेष रिपोर्ट, 4thPillar.com