छत्तीसगढ़ वन विभाग में भ्रष्टाचार बनाम ईमानदारी: IFS अधिकारियों की भूमिका और चुनौतियां

भारतीय वन सेवा (IFS) देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में से एक है, जो पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता, वनों की रक्षा और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कार्य करती है। IFS अधिकारी पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनकी जिम्मेदारी सिर्फ सरकारी नौकरी तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह राष्ट्र और समाज के प्रति एक नैतिक दायित्व भी है। ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ IFS अधिकारी न केवल वनों की रक्षा करते हैं, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी उनके अधिकार दिलाने और पर्यावरण संरक्षण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने का कार्य करते हैं।

छत्तीसगढ़ वन विभाग: भ्रष्टाचार की गर्त में गिरता तंत्र
छत्तीसगढ़ वन विभाग इन दिनों भारी भ्रष्टाचार की चपेट में है। IFS अधिकारी अपने पद की गरिमा को ताक पर रखकर धन अर्जित करने में लगे हैं। मलाईदार वनमंडलों में पोस्टिंग के लिए ऊँची बोली लगाई जा रही है, और अधिकारी नेताओं व मंत्रियों की जी-हुजूरी करते नजर आते हैं। यही वजह है कि जंगलों का अवैध कटान, खनन, अवैध कब्जे और वन्यजीवों का शिकार जैसी समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं।

भ्रष्टाचार का चक्रव्यूह
वन विभाग में भ्रष्टाचार इस हद तक बढ़ चुका है कि एक अधिकारी द्वारा किए गए भ्रष्टाचार को दबाने के लिए दूसरा अधिकारी पदस्थ हो जाता है, और यह नया अधिकारी पहले से चार गुना अधिक भ्रष्टाचार करने में जुट जाता है। चूंकि अधिकारियों ने भारी रकम देकर पोस्टिंग ली होती है, वे पहले अपना निवेश निकालने और फिर उससे अधिक कमाने के चक्कर में पड़ जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में जंगलों के संरक्षण और वन्य जीवों की सुरक्षा पूरी तरह से उपेक्षित हो जाती है।

IFS अधिकारी: कर्तव्यपरायणता बनाम भ्रष्टाचार
हालांकि, इस अंधकारमय स्थिति के बीच कुछ ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ IFS अधिकारी भी हैं, जो अपने पद की गरिमा को बनाए रखने और वनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसे ही एक अधिकारी का उदाहरण उदंती सितानदी टाइगर रिज़र्व में देखने को मिला। वे अपने कार्य करने के तरीके से हमेशा विवादों से घिरे रहे, उनका इरादा कभी गलत नहीं था, शुरुआत में उनकी गलती ये थी के वे सिस्टम को सुधारने कि कोशिश, समय ने उन्हें ये सिखाया कि सिस्टम से नहीं लड़ा जा सकता इसलिए उन्होंने सिस्टम को न छेड़ते हुवे केवल अपने मन को ईमानदारी से विभागीय दायित्व को निर्वहन करने का बनाया, दिक्कते भी बहुत आई पर उन्होंने हर नहीं माना, उन्होंने हमेशा अपने पदीय दायित्वों को सर्वोपरि रखा। जंगलों को अवैध कब्जे से बचाने के लिए उन्होंने आधुनिक तकनीक का सहारा लिया और एक ऐसा ऐप तैयार कराया, जिससे वे अपने क्षेत्र की निगरानी एक क्लिक में कर सकते हैं। अब उनके जंगल की एक इंच जमीन भी अवैध कब्जे का शिकार नहीं हो सकती और न ही कोई अवैधानिक कार्य आसानी से किया जा सकता है।

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छत्तीसगढ़ में इस App का विस्तार छत्तीसगढ़ के प्रत्तेक वनमण्डल में होना चाहिए, जिससे जंगल सुरक्षित रहे, पर हमारे अन्य वनमंडल के DFO इस ख्याल के हों उन्हें जंगलो और वन्यप्राणी कि फ़िक्र हो तब ही ऐसा संभव हो पाएगा।

IFS पद की गरिमा और इसकी रक्षा की चुनौती
आज के समय में IFS अधिकारियों के सामने दो रास्ते हैं—एक ओर वे अपने पद की गरिमा, कर्तव्य और जवाबदेही को समझते हुए पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं, और दूसरी ओर वे भ्रष्टाचार में लिप्त होकर जंगलों और वन्यजीवों के विनाश का कारण बन सकते हैं। दुर्भाग्यवश, अधिकांश अधिकारी दूसरा रास्ता चुन रहे हैं, जिससे न केवल वन विभाग की छवि धूमिल हो रही है, बल्कि पर्यावरणीय संकट भी बढ़ रहा है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या आने वाले समय में IFS अधिकारी अपने दायित्वों को समझकर इस भ्रष्टाचार के जाल से बाहर निकलेंगे, या फिर वन विभाग इसी गर्त में समाता रहेगा? इसका उत्तर आने वाले समय में ही मिलेगा, लेकिन अगर ईमानदार अधिकारियों की संख्या नहीं बढ़ी, तो यह देश के लिए एक बड़ी पर्यावरणीय आपदा का संकेत होगा।

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✍️अब्दुल करीम ✍️

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