रायपुर /महासमुंद वनमंडल के कथित 6.50 करोड़ के ANR घोटाले में आईएफएस अधिकारी श्रीमती शालिनी रैना, श्रीमती सतोवीसा समजदार, श्री वरुण जैन और श्री कौसलेन्द्र कुमार को मुख्यालय से जांच दल का हिस्सा बनाया गया। इन अधिकारियों की पहचान उनकी ईमानदारी और निष्पक्षता के लिए होती है, लेकिन इनकी जिलों में तैनाती न किए जाने और मुख्यालय में ही बनाए रखने को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।

अधिकारियों का दुरुपयोग या रणनीतिक निर्णय?
विशेषज्ञों और प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि इन अधिकारियों को जिलों में कार्य करने का अवसर क्यों नहीं दिया जा रहा है। क्या ये अधिकारी केवल विवादों को सुलझाने और आपसी तनातनी खत्म करने के लिए “मुख्यालय की कठपुतली” के रूप में उपयोग किए जा रहे हैं?

मुख्यालय में बनाए रखने के पीछे संभावित कारण
- नियंत्रण में रखना: ईमानदार अधिकारियों को जिलों से दूर मुख्यालय में रखने से उनका स्वतंत्र निर्णय लेने का अवसर सीमित हो सकता है।
- प्रशासनिक राजनीति: हो सकता है कि उच्च स्तर पर इन्हें जांच और विवाद निपटाने का कार्य सौंपकर जानबूझकर फील्ड पोस्टिंग से रोका जा रहा हो।
- विशेष विशेषज्ञता का उपयोग: यह भी संभव है कि इन अधिकारियों की दक्षता का मुख्यालय स्तर पर रणनीतिक रूप से उपयोग किया जा रहा हो।
सवाल जो उठ रहे हैं
- क्या इन अधिकारियों की फील्ड पोस्टिंग रोककर उनके कौशल और अनुभव का दुरुपयोग हो रहा है?
- क्या ये महिला अधिकारी भ्रस्टाचार को पसंद नहीं करते जिसकी वजह से मुख्यालय में असर पड़ता है ? इस करण इनकी मैदानी पोस्टिंग नहीं होने दी जाती?
- क्या यह निर्णय प्रशासनिक पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है?
- क्या केवल आर्थिक विवाद सुलझाने के लिए इन अधिकारियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगाई जा रही है ?
- महिला अधिकारी अपने ऊपर भ्रस्टाचार को हावी नहीं होने देते हैं तथा ईमानदारी एवं निष्पक्ष कार्य शैली के आलावा वे राजनीती को भी अपने ऊपर हावी नहीं होनी देती है, क्या ये भी इनके मैदानी पोस्टिंग में आड़े आते है ?
विशेषज्ञों की राय और सामाजिक प्रतिक्रिया
दुर्ग के सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल शेख करीम ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “यदि ऐसे ईमानदार अधिकारियों को जिलों में जिम्मेदारी देने के बजाय केवल विवाद निपटाने के लिए उपयोग किया जाएगा, तो यह न केवल प्रशासनिक नैतिकता के खिलाफ है बल्कि विभाग की कार्यक्षमता को भी कमजोर करेगा।”
आवश्यकता पारदर्शी नीति की
वन विभाग को यह स्पष्ट करना होगा कि इन अधिकारियों की जिलों में तैनाती क्यों नहीं की जा रही है। इसके अलावा, प्रशासनिक कार्यों में निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए इन अधिकारियों को उनकी क्षमता के अनुसार जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।
यदि इस मुद्दे को जल्द सुलझाया नहीं गया तो यह अन्य अधिकारियों के लिए भी गलत संदेश देगा और विभागीय संरचना में विश्वास की कमी पैदा करेगा।