जाति प्रमाण पत्र रद्द करने का आदेश निरस्त किया हाईकोर्ट ने, सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन करने को कहा

बिलासपुर। उच्चस्तरीय जाति सत्यापन समिति द्वारा एक मामले में याचिकाकर्ता का जाति प्रमाण पत्र रद्द करने के आदेश को हाई कोर्ट ने अवैध करार देते हुए निरस्त कर दिया। कोर्ट ने मामले को वापस समिति को भेज दिया और निर्देश दिया कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों और 2013 के कानून एवं नियमों के तहत छह महीने के भीतर मामले की जांच पूरी की जाए।

जाति प्रमाण पत्र के जरिये डाक विभाग में मिली नौकरी

याचिकाकर्ता लक्ष्मीनारायण महतो को 6 फरवरी 1982 को रायपुर के संभागीय आयोजक द्वारा धनगर जाति का प्रमाण पत्र जारी किया गया था। धनगर जाति को अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है। इसी प्रमाण पत्र के आधार पर महतो ने 1983 में डाक विभाग में डाक सहायक के पद पर नियुक्ति प्राप्त की और बाद में पोस्टल इंस्पेक्टर के पद पर पदोन्नत हुए।

शिकायत के आधार पर समिति ने रद्द किया प्रमाण पत्र

महतो को सेवा के दौरान सत्यापित जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने को कहा गया। उन्होंने प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया, लेकिन इसके खिलाफ शिकायतें की गईं। इन शिकायतों को पहले रायपुर के जिला कलेक्टर ने खारिज कर दिया था। इसके बावजूद उच्चस्तरीय जाति सत्यापन समिति ने शिकायत के आधार पर महतो का जाति प्रमाण पत्र रद्द कर दिया।

न्यायमूर्ति बीडी गुरु की एकल पीठ ने सुनवाई करते हुए पाया कि समिति का आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने कहा कि समिति ने शिकायतकर्ता के दस्तावेजों पर विचार किए बिना केवल सतर्कता जांच रिपोर्ट के आधार पर आदेश पारित किया, जबकि यह जांच खुद सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के खिलाफ थी।

हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को अपने बचाव में प्रस्तुत दस्तावेजों पर विचार का अवसर नहीं दिया गया है तथा गवाहों को सबूत पेश करने और जिरह का मौका नहीं मिला। इसके अलावा समिति ने सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश और 2013 के कानून एवं नियमों का पालन सही तरीके से नहीं किया। हाईकोर्ट ने समिति के आदेश को निरस्त करते हुए मामले को वापस समिति को भेज दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार छह महीने के भीतर जांच प्रक्रिया पूरी की जाए।

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