वन विभाग पदोन्नति विवाद: फाइल मंत्री बंगले में अटकी… कर्मचारियों के धैर्य, अधिकार और उम्मीदों की आखिरी परीक्षा!
क्या मंत्री कार्यालय की खामोशी मौन स्वीकृति है? या अधीनस्थों का खेल—कौन रोक रहा है 40–43 वर्ष सेवा दे चुके कर्मचारियों का हक?
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छत्तीसगढ़ वन विभाग में इन दिनों जिस मुद्दे ने सबसे ज्यादा कोहराम मचाया है, वह है — उपवनक्षेत्रपाल से वनक्षेत्रपाल (Deputy Ranger to Ranger) तथा रेंजर से SDO/ACF की पदोन्नति फाइलों का महीनों से मंत्री बंगले में रुका रहना।
इन फाइलों की देरी ने न सिर्फ कर्मचारियों के मन में गुस्सा और अविश्वास को जन्म दिया है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि:
**“क्या मंत्री केदार कश्यप जी के बंगले में फाइल जानबूझकर रोकी जा रही है?”
“क्या अधीनस्थ अधिकारियों का हस्तक्षेप है?”
“या स्वयं मंत्री की मौन स्वीकृति?”**
यही सवाल सोशल मीडिया, X (Twitter) तक गूंज रहे हैं, और विभाग के वरिष्ठ कर्मचारियों के बीच भी चर्चा का सबसे बड़ा कारण बने हुए हैं।
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DPC पूरी, वित्त एवं GAD की नोटशीट पूरी — फिर फाइल रुकी क्यों?
Deputy Ranger to Ranger DPC — 2 September
Ranger to SDO/ACF DPC — 23 June
दोनों DPC पूरी हो चुकी हैं।
वित्त विभाग और सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) से भी फाइलें क्लियर हो चुकी हैं।
यानी:
✔️ सभी जांचें पूरी
✔️ सभी कागज़ात सही
✔️ सभी विभागीय अनुमतियाँ पूरी
✔️ अंतिम चरण सिर्फ वन मंत्री के हस्ताक्षर
लेकिन इसी अंतिम चरण में फाइलें महीनों से मंत्री बंगले में धरी पड़ी हैं।
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कर्मचारियों में भारी नाराजगी — “हमने 40–43 साल दिए… अब रिटायर होकर भी प्रमोशन से वंचित!”
कई कर्मचारी बताते हैं:
> “हम वनरक्षक, वनपाल बनकर आए… पूरी जिंदगी जंगलों में गुज़ारी… 40–43 साल विभाग को दे दिए।
अब जब आखिरी पदोन्नति का समय आया तो फाइलें मंत्री बंगले में रोक ली गईं।
हमसे पदोन्नति छीनने का क्या अधिकार है किसी को?”
दर्द सिर्फ इतना नहीं है कि पदोन्नति रुकी है — बल्कि यह भी है कि कुछ लोग प्रमोशन पाने से पहले ही रिटायर हो चुके हैं।
कुछ इस महीने नवंबर में रिटायर होने वाले हैं, और पदोन्नति उनके हाथों तक पहुँचते–पहुँचते फिर टल रही है।
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सबसे बड़ा सवाल — “अगर मंत्री ने हस्ताक्षर कर दिए, तो फाइल बाहर क्यों नहीं निकल रही?”
कई विभागीय कर्मचारियों का कहना है:
> “हमें बताया गया है कि मंत्री जी ने हस्ताक्षर कर दिए हैं…
पर मंत्री कार्यालय के ही किसी अधीनस्थ ने फाइल रोके रखी है।”
कुछ कर्मचारी सीधे नाम लेकर कहते हैं:
> “शायद विशेष सहायक तीरथ अग्रवाल फाइल रोक रहे हैं।”
हालाँकि किसी अधिकारी ने इस बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन सवाल उठ रहे हैं — और उठना भी स्वाभाविक है… क्योंकि:
✔️ DPC महीनों पहले हो चुकी
✔️ विभाग से फाइल क्लियर
✔️ मंत्री स्तर पर ही अटकी
तो फिर दोषी कौन है?
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कर्मचारियों का आरोप — “अच्छी पोस्टिंग चाहिए तो आकर मिलो…”
कुछ कर्मचारियों ने यह भी दावा किया है कि:
> “मंत्री कार्यालय से संदेश जाता है कि अच्छी पोस्टिंग चाहिए तो आकर बात करो…
जब तक पोस्टिंग सेटिंग नहीं होगी, प्रमोशन आदेश नहीं निकलेगा।”
अगर यह सच है, तो यह वन विभाग की सबसे बड़ी प्रशासनिक विफलता होगी।
कर्मचारी कहते हैं:
> “हम रिटायर हो रहे हैं… हमें पोस्टिंग थोड़े चाहिए।
बस पदोन्नति आदेश जारी कर दो…
बाद में बाकी का खेल जो करना है करो।”
यह स्थिति उस कर्मचारी के लिए बेहद अपमानजनक है जिसने:
✔️ जंगलों में ड्यूटी दी
✔️ नक्सल क्षेत्रों में जान जोखिम में डाली
✔️ परिवार से दूर वर्षों तक काम किया
✔️ फील्ड में बूढ़ा हो गया
✔️ और अब आख़िरी सम्मान — अंतिम पदोन्नति — भी अनिश्चितता में फँसी है
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रेंजर से SDO/ACF पदोन्नति का मामला भी बिल्कुल इसी तरह रुका हुआ
23 जून की DPC में कई रेंजरों का चयन SDO/ACF के लिए हुआ था।
लेकिन यह फाइल भी महीनों से मंत्री बंगले में रुकी है।
कई कर्मचारियों ने X पर लिखा है कि:
> “रेंजर से SDO/ACF फाइल छह महीने से बंगले में रुकी है।
क्यों? किसके आदेश से?
किसके इशारे पर?”
रेंजरों का आरोप है कि:
> “पोस्टिंग सेटिंग होने तक फाइल नहीं निकलेगी।”
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हैरानी यह है कि मंत्री जी इसके बावजूद चुप क्यों हैं?
यही सबसे बड़ा प्रश्न है जो आज सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पूछा जा रहा है:
1. क्या मंत्री को पता नहीं कि फाइलें रुकी हैं?
अगर ऐसा है, तो यह मंत्री कार्यालय की गंभीर लापरवाही है।
2. क्या मंत्री को पता है और वे कुछ नहीं कर रहे?
अगर ऐसा है, तो यह मौन स्वीकृति मानी जाएगी।
3. क्या अधीनस्थ अफसरों या विशेष सहायकों के कारण फाइलें रुकी हुई हैं?
अगर ऐसा है, तो मंत्री का दायित्व बनता है कि वे कार्यवाही करें।
4. क्या यह पूरी प्रक्रिया किसी सेटिंग–पोस्टिंग खेल के तहत रोकी जा रही है?
कर्मचारियों के दावों के अनुसार — हाँ, यह चर्चा आम है।
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सवाल और भी गंभीर इसलिए हो जाते हैं क्योंकि…
पूर्व में मंत्री बंगले में एक सिंह नाम के कर्मचारी द्वारा की गई गतिविधियों के कारण बंगला पहले ही विवादों में आ चुका है।
लोग कहते हैं:
> “मंत्री बंगला पहले भी बदनाम हो चुका है…
अब फिर वही खेल शुरू है क्या?”
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इस पूरी स्थिति का मनोवैज्ञानिक असर — “जिंदगीभर दी वफादारी, बुढ़ापे में मिला अपमान”
वन विभाग देश का सबसे कठिन विभाग माना जाता है।
यहाँ कर्मचारी:
✔️ हथियार लेकर काम नहीं करते
✔️ फिर भी जंगल में अपराधियों का सामना करते हैं
✔️ हाथियों, बाघों और नक्सलियों के बीच ड्यूटी करते हैं
✔️ कई की मौत भी हो चुकी है फील्ड में
कर्मचारियों का कहना है:
> “हमने सब सहा…
लेकिन हमें यह उम्मीद नहीं थी कि
अंतिम समय में पदोन्नति भी ‘चढ़ावे’ की भेंट चढ़ेगी।”
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पदोन्नति = कर्मचारी का अधिकार (Right), एहसान नहीं
लोक प्रशासनिक मानकों के अनुसार:
✔️ DPC हो गई
✔️ सीनियरिटी तय
✔️ फाइल क्लियर
✔️ वित्त–GAD मंजूर
तो प्रशासन को पदोन्नति आदेश जारी करना बाध्यकारी होता है।
यानी:
पदोन्नति ‘मेहरबानी’ नहीं — कर्मचारी का संवैधानिक सेवा-अधिकार है।
इसे रोकना —
कर्मचारी के करियर, पेंशन और सम्मान का हनन है।
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अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल —
“क्या वन मंत्री केदार कश्यप अपने अधीनस्थों से पूछेंगे कि फाइलें क्यों रोकी गईं?”
अगर मंत्री ईमानदार हैं — जैसा लोग कहते हैं —
तो उन्हें चाहिए कि:
✔️ फाइलें तुरंत बाहर निकलवाएँ
✔️ प्रमोशन आदेश जारी करें
✔️ दोषियों पर कार्रवाई करें
✔️ रिटायर हो रहे कर्मचारियों को न्याय दें
✔️ और विभागीय गरिमा बचाएँ
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अगर ऐसा नहीं करते, तो…
कर्मचारियों के अनुसार:
> “इस चुप्पी को ‘मौन स्वीकृति’ समझा जाएगा।”
और यही चुप्पी:
● विभाग को बदनाम कर रही है
● कर्मचारियों को आहत कर रही है
● सरकारी छवि को नुकसान पहुँचा रही है
● मंत्री कार्यालय के ऊपर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा रही है
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अंतिम सवाल — जो आज हर कर्मचारी पूछ रहा है
🌑 *“जब सब कुछ पूरा है, फाइलें मंजूर हैं, DPC पूरी है…
तो प्रमोशन आदेश क्यों नहीं?”*
🌑 “मंत्री चुप क्यों हैं?”
🌑 “किसके निर्देश पर फाइल अटकी है?”
🌑 “क्या मंत्री की मौन स्वीकृति है?”
🌑 “रिटायर हो रहे कर्मचारियों का दर्द मंत्री को क्यों नहीं दिख रहा?”
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निष्कर्ष — समाधान सरल है, पर इच्छाशक्ति चाहिए
इस विवाद को समाप्त करने के लिए सिर्फ़:
✔️ दो हस्ताक्षर
✔️ दो आदेश
✔️ और 10 मिनट का समय चाहिए
लेकिन शायद…
फैसला करने का साहस सबसे कठिन होता है।









