29 सीटों पर बनी बात, अब चिराग की नजर मनचाहे क्षेत्रों पर — क्या JDU-BJP मानेंगी?

पटना 

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए में रविवार को सीट बंटवारे का ऐलान कर दिया गया है. बीजेपी और जेडीयू के बीच बराबर-बराबर सीटों पर लड़ने का फॉर्मूला तय हुआ है, तो चिराग पासवान की मन की मुराद पूरी हो गई है. चिराग की पार्टी एलजेपी (आर) को 29 सीटें मिली हैं.

चिराग पासवान को एनडीए में मन के मुताबिक सीटों की संख्या तो मिली, लेकिन क्या पसंदीदा सीटें भी मिल पाएंगी? एनडीए में अभी यह पूरी तरह से तय नहीं हुआ है कि एलजेपी किन 29 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

2020 के चुनाव में चिराग एनडीए का हिस्सा नहीं थे, उस समय जेडीयू 115 सीट पर चुनाव लड़ी थी और बीजेपी ने 110 सीट पर उम्मीदवार उतारे थे. जेडीयू और बीजेपी चिराग को सीटें देने के लिए कम सीटों पर लड़ने को राज़ी हो गई हैं, लेकिन असली मामला अब उन सीटों पर फंसा है, जहां पर जेडीयू, बीजेपी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा का कब्ज़ा है.

नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और बीजेपी दोनों 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. बाकी सीटें छोटे सहयोगी दलों को दी गई हैं. इनमें सबसे ज़्यादा फ़ायदा चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) को हुआ. एनडीए में चिराग की पार्टी को 29 सीटें मिली हैं. चिराग की पार्टी लगातार 30 से 35 सीटें मांग रही थी और उसी लिहाज़ से उसे 29 सीटें मिली हैं.

चिराग पासवान का एनडीए में बढ़ता क़द अब किसी से छिपा नहीं है. बिहार की राजनीति में उन्हें अब 'किंगमेकर' के तौर पर देखा जा रहा है. सवाल ये है कि चिराग पासवान में ऐसी क्या ख़ास बात है कि बीजेपी और जेडीयू दोनों अपनी सीटों का नुक़सान उठाकर भी उन्हें ज़्यादा महत्व देने का काम किया है. 

चिराग को पसंदीदा सीटें भी मिलेंगी?

एनडीए में सीट शेयरिंग के मामले में चिराग पासवान 30-35 सीटों पर दावेदारी कर रहे थे, लेकिन बीजेपी शीर्ष नेतृत्व के दख़ल के बाद चिराग पासवान 29 सीटों पर लड़ने के लिए तैयार हुए हैं. इसका ऐलान भी रविवार को केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कर दिया, ऐसे में मामला उन सीटों पर फंस सकता है, जहां पर बीजेपी और जेडीयू ने 2020 में कब्ज़ा जमाया था.

चिराग पासवान ने जिन 29 सीटों पर चुनाव लड़ने का अभी तक प्लान बनाया है, उनमें से कई सीटें ऐसी हैं, जिन पर जेडीयू और बीजेपी का कब्ज़ा है. बीजेपी और जेडीयू क्या अपनी जीती हुई सीटें एलजेपी के लिए छोड़ने को तैयार होंगी?

जेडीयू ने जिस तरह से पिछले चुनाव में सीटें जीती थीं, उनमें से छोड़ना उसके लिए आसान नहीं है. माना जा रहा है कि एलजेपी की दावे वाली चार सीटों पर बीजेपी का कब्ज़ा है तो तीन सीटों पर जेडीयू के विधायक हैं. इसके अलावा एक सीट पर जीतनराम मांझी की पार्टी का कब्ज़ा है.

चिराग का बढ़ता सियासी क़द

चिराग पासवान अपने पिता और बिहार के दिग्गज दलित नेता राम विलास पासवान की सियासी विरासत को संभाल रहे हैं. राम विलास पासवान का बिहार में गहरी जड़ें वाला दलित वोट बैंक था. दलितों में ख़ासकर दुसाध समुदाय में है, यह समुदाय राज्य में एक बड़ा जनसमूह है. एनडीए के लिए इनका साथ जीत में बड़ी भूमिका निभा सकता है. 

2020 में चिराग पासवान की पार्टी एनडीए से बाहर रहकर 135 सीटों पर लड़ी थी और सिर्फ़ 1 सीट जीत पाई थी. चिराग पासवान भले ही सीटें जीतने में सफल नहीं रहे, लेकिन एनडीए से बाहर जाकर लड़ने पर नीतीश कुमार की पार्टी को गहरा झटका दिया था. एनडीए में पहली बार बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. 

2025 के विधानसभा चुनाव में चिराग को लेकर 2020 से बिल्कुल अलग रणनीति है। चिराग की पार्टी एनडीए के साथ ही चुनाव लड़ रही है. गठबंधन में उन्हें लड़ने के लिए 29 सीटें मिली हैं, जिस पर वह ख़ुश हैं.

चिराग की कैसे बढ़ी अहमियत

2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था. वह पांच सीटों पर चुनाव लड़े थे और सभी पांचों पर जीत दर्ज किए थे. यह नतीजा उनके संगठन और जनाधार की मज़बूती दिखाता है. इसी के बाद से बीजेपी और जेडीयू दोनों को यह समझ में आ गया कि चिराग पासवान अब केवल सहयोगी दल के नेता नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में एक बड़ी ताक़त बन चुके हैं.

बीजेपी को बिहार में जहां सवर्ण और शहरी वोटरों का समर्थन मिलता है तो जेडीयू को कुर्मी और पिछड़े वर्ग का. ऐसे में चिराग की पार्टी दलित समुदाय को जोड़ती है, जिससे गठबंधन की सामाजिक पकड़ और मज़बूत होती है. यही वजह है कि उन्हें 29 सीटें तो मिल गई हैं, लेकिन क्या मनमर्ज़ी वाली सीटें भी मिलेंगी?

चिराग की सियासी महत्वाकांक्षा

चिराग पासवान की सियासी महत्वाकांक्षा अब सिर्फ़ कुछ सीटें जीतने तक सीमित नहीं है. वह ख़ुद को बिहार की अगली पीढ़ी के नेताओं में स्थापित करना चाहते हैं. वह बार-बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताते हैं, जिससे बीजेपी के साथ उनका रिश्ता और मज़बूत हुआ है. इस बार किंगमेकर बनने का सपना लेकर चुनावी मैदान में उतर रहे हैं, जिसके लिए एक-एक सीट पर नज़र गड़ाए हुए हैं.

बिहार में इस बार के सीट बंटवारे ने यह साफ़ कर दिया है कि एनडीए की रणनीति में चिराग पासवान अब छोटे सहयोगी नहीं, बल्कि मुख्य चेहरा बन गए हैं. चिराग की पार्टी की मज़बूती और दलित वोट बैंक पर पकड़, आने वाले चुनावों में एनडीए के लिए चिराग कितनी रोशनी साबित होते हैं या फिर अपनी सियासी उम्मीदों को उजाला करेंगे?

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