हेल्थ इंश्योरेंस पर सवाल: अस्पताल–कंपनियों की खींचतान में मरीज फंसे

नई दिल्ली

देश में हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर इन दिनों गहरे विवाद में फंस गया है. कैशलेस इलाज को लेकर अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच चल रही खींचतान का सबसे बड़ा खामियाजा पॉलिसीधारकों को उठाना पड़ रहा है. एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (इंडिया) (AHPI), जिसमें 15 हजार से अधिक अस्पताल जुड़े हैं, ने हाल ही में स्टार हेल्थ इंश्योरेंस के पॉलिसीधारकों को 22 सितंबर से कैशलेस सुविधा बंद करने की चेतावनी दी थी. यह फैसला 12 सितंबर को लिया गया, हालांकि अब इसे फिलहाल टाल दिया गया है.

पहले भी दी जा चुकी हैं धमकियां
स्टार हेल्थ से पहले भी अस्पताल संगठनों ने कड़ा रुख अपनाया था. 22 अगस्त 2025 को बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस और केयर हेल्थ इंश्योरेंस को चेतावनी जारी की गई थी कि उनके ग्राहकों को कैशलेस सर्विस नहीं दी जाएगी. दरअसल, टैरिफ दरों को लेकर असहमति इस जंग की सबसे बड़ी वजह बताई जा रही है.

बीमा कंपनियों का पलटवार
केवल अस्पताल संगठन ही नहीं, कई बीमा कंपनियां भी कुछ अस्पतालों को अपनी सूची से बाहर कर रही हैं. उदाहरण के लिए, निवा बूपा हेल्थ इंश्योरेंस ने 16 अगस्त 2025 को मैक्स हेल्थकेयर को अपने पैनल से हटा दिया. इसी तरह, केयर हेल्थ इंश्योरेंस ने 17 फरवरी 2025 को दिल्ली-एनसीआर के कई अस्पतालों के साथ करार समाप्त कर दिया था.

मरीज बन रहे बीच का शिकार
बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच खिंची इस रस्साकशी का सीधा असर मरीजों पर हो रहा है. कई जगह पॉलिसीधारकों को कैशलेस इलाज की सुविधा नहीं मिल रही, जबकि कुछ को पूरा बिल एडवांस में चुकाना पड़ रहा है. कई बार रीइंबर्समेंट भी नहीं मिल पाता, जिससे बीमा होने के बावजूद लोग आर्थिक संकट में फंस जाते हैं.

बढ़ रही पॉलिसीधारकों की मुश्किलें
भारत में अभी भी स्वास्थ्य बीमा धारकों की संख्या अपेक्षाकृत कम है. ऐसे में बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच चल रही यह खींचतान नए ग्राहकों को बीमा पॉलिसी लेने से हतोत्साहित कर सकती है. बढ़ते विवाद ने लोगों के मन में बीमा की उपयोगिता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.

पुराना है यह विवाद
अस्पताल और बीमा कंपनियों के बीच यह टकराव नया नहीं है. इसकी जड़ें वर्षों पुरानी हैं, लेकिन कोरोना महामारी के बाद यह तनाव और गहरा गया. AHPI के महानिदेशक गिरीधर ग्यानी ने कहा था कि जब बीमा कंपनियों ने कुछ अस्पतालों को अपनी पैनल लिस्ट से हटाना शुरू किया, तब अस्पतालों ने भी एकजुट होकर विरोध करने का निर्णय लिया.

आखिर कौन कर रहा है मनमानी?
अस्पताल संगठन बीमा कंपनियों पर मनमानी का आरोप लगाते हैं, जबकि बीमा कंपनियां अस्पतालों पर. मैक्स हेल्थकेयर का कहना है कि बीमा कंपनियां लगातार दरें घटाने का दबाव बनाती हैं, नए कॉन्ट्रैक्ट को लटकाए रखती हैं और पुराने कॉन्ट्रैक्ट में संशोधन करने से बचती हैं. वहीं, अस्पतालों की मांग है कि टैरिफ दरें बढ़ाई जाएं, लेकिन बीमा कंपनियां पुराने रेट में भी कटौती चाहती हैं. नतीजा यह है कि दोनों पक्षों में सहमति नहीं बन पा रही और इसकी कीमत आम मरीज चुका रहा है.

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