बिहार महागठबंधन में सीटों पर तकरार! क्या फिर आमने-सामने हैं राहुल और तेजस्वी?

पटना 

बिहार में महागठबंधन के हिसाब से तो वोटर अधिकार यात्रा अच्छी रही, लेकिन लगता है कांग्रेस और आरजेडी के बीच रिश्तों को उलझा दिया है. ऐसा लगता है राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बीच फिर से ठन गई है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भी ये सब हुआ था. और, तब सूत्रों के हवाले से खबर आई थी कि जब बात नहीं बन पा रही थी, तब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को दखल देना पड़ा था. 

सीटों का बंटवारा तभी फाइनल हो सका, जब प्रियंका गांधी और लालू यादव के बीच सीधी बात कराई गई. तब लालू यादव बिहार से बाहर थे, और चारा घोटाले के लिए रांची जेल में सजा काट रहे थे. एक बार फिर बात उसी मोड़ के आस पास आकर अटक गई लगती है. 

तेजस्वी यादव के बिहार अधिकार यात्रा पर निकलने को भी इसी नजरिये से देखा जा रहा है. और, सीट बंटवारे का मामला फंसे हुए होने के जो कारण माने जा रहे हैं, उनमें से एक ये भी है – हालांकि, सबसे बड़ा मसला है मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर कांग्रेस का रुख है. 

तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा मानने का सवाल राहुल गांधी ने तो बस टाल दिया था, लेकिन बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने तो जैसे सिरे से खारिज ही कर डाला है – ऐसे में तकरार तो बढ़नी ही है.    

तेजस्वी यादव जैसा बड़ा दिल राहुल गांधी क्यों नहीं दिखा रहे हैं

2025 की शुरुआत से ही राहुल गांधी के करीब करीब हर दौरे में एक बात कॉमन नजर आती है. आरजेडी के मुकाबले कांग्रेस को श्रेष्ठ बताना. जैसे लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी क्षेत्रीय दलों की विचारधारा की बात करते थे. कहते थे, क्षेत्रीय दलों के पास कोई विचारधारा नहीं है. तब अखिलेश यादव निशाने पर थे, और अब तेजस्वी यादव हैं. अखिलेश यादव ने तब आंख भी दिखाई थी, शायद तेजस्वी यादव भी अब वैसा ही करने की कोशिश कर रहे हैं.  

चुनाव तो राहुल गांधी महागठबंधन के साथ ही लड़ने की करते हैं, लेकिन हर कदम पर लगता है जैसे कांग्रेस अकेले मैदान में उतरने जा रही हो. तेजस्वी यादव का बिहार की सभी 243 सीटों पर लड़ने की बात करना भी, राहुल गांधी के व्यवहार का जवाब ही लगती है. 

1. बिहार में हुए SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ ही INDIA ब्लॉक के बैनर तले वोटर अधिकार यात्रा निकाला जाना तय हुआ, लेकिन राहुल गांधी ने वोटर अधिकार यात्रा को भी भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा जैसा बना देने की कोशिश की. फर्क बस यही था कि वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी के साथ तेजस्वी यादव और बिहार महागठबंधन के और भी नेता शामिल थे. 

फिर भी ऐसा लगा जैसे राहुल गांधी ने वोटर अधिकार यात्रा को हाइजैक कर लिया हो. पूरी यात्रा में राहुल गांधी आगे आगे और तेजस्वी यादव पीछे पीछे नजर आए. कहां प्रशांत किशोर जैसे नेता कांग्रेस को लालू परिवार की पिछलग्गू पार्टी कहा करते थे, और कहां वोटर अधिकार यात्रा में लगने लगा जैसे आरजेडी ही कांग्रेस की पिछलग्गू बन गई हो. 

2. तेजस्वी यादव की तरफ से तो राहुल गांधी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए भी प्रस्तावित कर दिया गया, लेकिन राहुल गांधी पूरी तरह टाल गए. बल्कि, राहुल गांधी का जवाब सुनकर तो ऐसा लगा जैसे वो चाहते ही न हों कि तेजस्वी को बिहार में विपक्ष की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जाए. 

3. राहुल गांधी के बयान में जो कसर बाकी रह गई थी, कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने पूरी कर दी. अव्वल तो पहले भी कृष्णा अल्लावरु भी तेजस्वी यादव को सीएम फेस घोषित किए जाने पर वैसी ही प्रतिक्रिया देते थे जैसा राहुल गांधी का रिएक्शन था, लेकिन हाल के एक प्रेस कांफ्रेंस में तो चार कदम आगे ही बढ़ गए. 

कृष्णा अल्लावरु ने तो अब यहां तक बोल दिया है कि इंडिया ब्लॉक के मुख्यमंत्री पद का चेहरा अब बिहार के लोग ही तय करेंगे. निश्चित तौर पर तेजस्वी यादव और लालू यादव के लिए ऐसी बातें बर्दाश्त कर पाना काफी मुश्किल होगा. 

फिर तो तेजस्वी यादव का बिहार अधिकार यात्रा शुरू करना जरूरी हो जाता है. और, सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात करना भी – तेजस्वी यादव के पास सीटों पर अपनी बात मनवाने का बेहतर तरीका भी यही लगता है.

कैसा चल रहा है सीटों के बंटवारे पर मोलभाव

2020 के चुनाव में कांग्रेस को महागठबंधन में 70 सीटें मिली थीं, और चुनाव में कांग्रेस 19 सीटें जीतने में कामयाब हुई. उस चुनाव में आरजेडी ने 2015 में जीती हुई अपनी 10 सीटें सहयोगियों को दी थी, जिनमें दो कांग्रेस को मिली थीं – और वो एक सीट जीतने में सफल भी रही. 

2020 के मुकाबले 2015 में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट बेहतर पाया गया था. तब 41 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस ने 27 सीटें जीती थी. लेकिन, 2020 में आरजेडी नेतृत्व को लगा कि महागठबंधन के सत्ता न हासिल करने में कांग्रेस अपने हिस्से की सीटें हार जाना बड़ी वजह रही. चुनाव नतीजे आने के बाद तेजस्वी यादव या लालू यादव तो नहीं, लेकिन आरजेडी नेताओं ने खुल कर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पर हमला बोला था. 

2025 के चुनाव में भी कांग्रेस की तरफ से 70 सीटों पर दावा पेश किए जाने की बात सुनी जा रही है. ऐसी दावेदारी के पीछे राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा से कांग्रेस अपने प्रभाव में हुआ इजाफा मान रही है. इंडियन एक्सप्रेस की  रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस उन 70 सीटों में से 27 अपने लिए अच्छी सीटें मान रही है. 27 सीटों में ही कांग्रेस की जीती हुई 19 सीटें भी शामिल हैं. 8 वे सीटें हैं, जहां कांग्रेस उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे, और हार का फासला करीब पांच हजार वोट थे. 

दिल्ली की प्रेस कांफ्रेंस में कृष्णा अल्लावरु ने भी कहा था, हर राज्य में अच्छी और खराब सीटें होती हैं. और, ऐसा कभी नहीं होना चाहिए कि एक पार्टी सभी अच्छी सीटों पर चुनाव लड़े, और दूसरी खराब सीटों पर. कृष्णा अल्लावरु का कहना था कि सीटों के बंटवारे के वक्त इस मामले में बैलेंस रुख अख्तियार करना चाहिए. 

जिस तरह तेजस्वी यादव ने खुले दिल से आने वाले चुनाव में राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने की बात कही है, और राहुल गांधी ने उनके मुख्यमंत्री बनने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है – तेजस्वी यादव को आंख दिखाने का मौका तो मिल ही गया है, और अब जो कुछ भी हो रहा है, उसी बात का सीधा असर है. 

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