तेजस्वी यादव की सत्ता के लिए लालू यादव ने फिर संभाली मोर्चा, कांग्रेस कर रही आनाकानी

पटना
राजद की चुनावी रणनीति का निर्धारण और तेजस्वी यादव को संवाद की सीख देकर एक समय निश्चिंत हो चुके लालू प्रसाद की सक्रियता दोबारा बढ़ गई है। स्वास्थ्य इसकी अनुमति नहीं देता, फिर भी वे दौड़-धूप कर रहे। एकमात्र उद्देश्य तेजस्वी को सत्तासीन करना है।

लालू मान चुके हैं कि उनके हस्तक्षेप के बिना न सीटों पर समझौता संभव है और ना ही मुख्यमंत्री के चेहरे का निर्धारण। कांग्रेस आज आनाकानी कर रही, तो कल को कन्नी भी काट सकती है। चिंता महागठबंधन में पीछे धकियाने जाने की भी है। सामाजिक समीकरण का विस्तार किए बिना राजद को सत्ता मिलने से रही, जबकि परंपरागत जनाधार (मुसलमान-यादव) पर ही हिस्सेदार खड़े हो गए हैं, इसलिए लालू ने अपनी रणनीति का रुख दोतरफा कर दिया है।

आक्रामक बयानों से वे कोर वोटरों को साधने का उपक्रम कर रहे, तो फील्ड में सक्रियता से विरोधियों के साथ महागठबंधन के घटक दलों को हर दांव-पेच से निपटने की चुनौती दे रहे। एनडीए, विशेषकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पर उनके बोल बेहद तीखे होते जा रहे।

नीतीश सरकार के 20 वर्षों के शासन को वे "दो पीढ़ियों को बर्बाद करने वाला" करार चुके हैं। एक्स पर लिख चुके हैं, "ऐ मोदी जी, विक्ट्री चाहिए बिहार से और फैक्ट्री दीजिएगा गुजरात में! यह गुजराती फार्मूला बिहार में नहीं चलेगा!" क्षेत्रीय अस्मिता को उभारने वाला यह बयान वस्तुत: जनाधार के विस्तार की आकांक्षा है। लालू सपरिवार गयाजी पहुंच थे। अपने हाथों कोई षट्कर्म नहीं किया, क्योंकि गयाजी में वे पहले ही पिंडदान कर चुके हैं, फिर भी विष्णुपद मंदिर पहुंचे। उनकी यह पहल सीतामढ़ी में जानकी मंदिर पहुंचे राहुल गांधी से उत्प्रेरित मानी जा रही, जो धुव्रीकरण की आशंका को निर्मूल करने के उद्देश्य से रही।

मुसलमानों के हिमायती राजद के लिए ध्रुवीकरण की स्थिति कभी लाभप्रद नहीं रहती, इसलिए लालू ने तेजस्वी को इससे बचते हुए ''खैनी में चूना रगड़ देने'' वाले बयान को बारंबार दोहराने की सीख दी। यह बयान वस्तुत: अगड़ों पर आक्षेप और कोर वोटरों को साधने का उपक्रम रहा।

बहरहाल, लालू की रणनीति युवा-महिला वोटरों को लुभाने और एनडीए के वोट-बैंक में सेंधमारी के साथ तेजस्वी की छवि को एक प्रगतिशील नेता के रूप में स्थापित करने की है। माई-बहिन मान योजना और शत प्रतिशत डोमिसाइल के वादे के साथ महागठबंधन में नए सहयोगियों (झामुमो और रालोजपा) को जोड़ने से इसका आभास होता है। सारे निर्णय लालू के रहे।

हालांकि, परिवार के भीतर मतभेद, महागठबंधन में अंतर्द्वंद्व और कानूनी चुनौतियां उनकी इच्छाओं पर तुषारापात कर रहीं। इसके बावजूद वे तेजस्वी को मुख्यमंत्री का चेहरा बता रहे, क्योंकि इसके लिए अभी कोई दूसरा दमदार आवाज नहीं।

पांच फरवरी को नालंदा में लालू ने तेजस्वी को ही महागठबंधन में मुख्यमंत्री का चेहरा बताया था। उसके बाद मोतिहारी में कहा कि "तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनने से कोई माई का लाल नहीं रोक सकता।" इस उद्घाेष के बावजूद कांग्रेस पेच फंसाए है। ऐसे में लालू इत्मीनान से नहीं बैठ सकते।

मोतिहारी में वे पूर्व विधायक यमुना यादव के निधन पर शोक जताने गए। पुराने नेताओं के स्वजनों का दु:ख साझा करने के लिए ऐसे ही वैशाली और आरा भी जा चुके हैं। इस स्तर पर लालू की सक्रियता पिछले वर्षों में नहीं रही। हालांकि, उनकी अति-सक्रियता राजद की संभावना के प्रतिकूल भी पड़ जाती है। तब जंगलराज की पुनर्वापसी की आशंका जताते विरोधी कुछ अधिक आक्रामक हो जाते हैं।

 

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