पितृपक्ष में खरीददारी से बचें! अगर जरूरी हो तो अपनाएँ ये आसान उपाय

 

पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) का समय हमारे पितरों को याद करने, तर्पण और दान करने के लिए माना गया है। इस काल में नया सामान खरीदने या नया काम शुरू करने को सामान्यतः अशुभ माना जाता है। इसके पीछे धार्मिक और व्यवहारिक दोनों कारण हैं।

पितृपक्ष में नहीं खरीदना चाहिए नया सामान: पितृपक्ष पितरों को समर्पित काल है। यह समय भोग-विलास या नए कार्यों का नहीं बल्कि पितरों के प्रति कृतज्ञता, तर्पण और दान का माना गया है। मान्यता है कि इस दौरान किए गए नए कार्य का फल पितरों को समर्पित हो जाता है। इस अवधि में वातावरण में श्राद्ध संस्कार, तर्पण और प्रेतात्माओं की स्मृति से जुड़ी ऊर्जा मानी जाती है। नया सामान खरीदना या नया कार्य शुरू करना स्थिरता और शुभ फल नहीं देता। लोक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि पितृपक्ष में खरीदे गए वस्त्र, आभूषण, भूमि या गृह निर्माण कार्य का फल स्थायी नहीं होता, या कार्य में बाधा आती है।

पितृपक्ष में अवश्य खरीदना पड़े सामान तो क्या करें: कभी-कभी आवश्यक परिस्थितियों में खरीदारी करनी पड़ जाए तो ये उपाय करने चाहिए-
गंगाजल या पवित्र जल छिड़क कर वस्तु को शुद्ध करें। पितरों को समर्पण करें। वस्तु को पितरों को मानसिक रूप से अर्पित करें और उनसे आशीर्वाद लेकर उपयोग करें। गोदान या ब्राह्मण सेवा करें। नए सामान खरीदने पर एक छोटा-सा दान (अन्न, वस्त्र या दक्षिणा) ब्राह्मण या गरीब को देना चाहिए।

पितृपक्ष में नए कार्य का शुभारंभ टालें
सामान खरीदना यदि अनिवार्य हो तो कर सकते हैं लेकिन उसका प्रथम उपयोग या कार्यारंभ पितृपक्ष के बाद करना श्रेष्ठ माना जाता है।
पितृपक्ष में हर कार्य पितरों की तृप्ति के लिए माना जाता है इसलिए इस समय भोग-विलास, उत्सव और नये आरंभ से जुड़े कार्य वर्जित कहे गए हैं। लेकिन दैनिक जीवन की आवश्यकताओं को देखते हुए कुछ वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं।

पितृपक्ष में न खरीदें ये सामान
सुनार का सामान (सोना–चांदी, आभूषण, बहुमूल्य धातुएं) यह शुभ अवसरों के लिए होता है, जबकि पितृपक्ष शोक-श्राद्ध काल माना जाता है।

नया मकान, भूमि या वाहन खरीदना
इस अवधि में गृह प्रवेश, भूमि पूजन या वाहन क्रय को अशुभ माना जाता है।
नए वस्त्र (शुभ अवसर हेतु) खासकर शादी, त्यौहार या मंगल कार्यों के लिए कपड़े खरीदना वर्जित है परंतु रोज़मर्रा के उपयोग हेतु सामान्य कपड़े खरीदे जा सकते हैं।
शुभ मांगलिक कार्यों का सामान जैसे शादी का जोड़ा, मंगलसूत्र, सगाई की अंगूठी आदि।
नया व्यापार आरंभ करने के उपकरण।
यदि नया व्यापार शुरू करने के लिए सामान खरीदा जाए तो माना जाता है कि उसका फल पितरों को चला जाता है।

पितृपक्ष में खरीदा जा सकता है ये सामान
दैनिक उपयोग की वस्तुएं जैसे अनाज, सब्ज़ी, दालें, फल आदि।
घर के लिए आवश्यक सामान जैसे तेल, नमक, मसाले।
श्राद्ध व पूजा के लिए सामग्री जैसे कुश, तिल, घी, धूप, पिंडदान हेतु सामग्री, पत्तल, कपड़े (दान हेतु)।
आवश्यक जीवनोपयोगी सामान जैसे दवा, बच्चों की ज़रूरत की चीज़ें, किताबें, स्टेशनरी।
टूटा-फूटा बर्तन बदलने के लिए नए बर्तन (यदि बहुत ज़रूरी हो)।
यदि किसी को कपड़े की तत्काल ज़रूरत है तो साधारण वस्त्र ले सकते हैं पर शुभ अवसर वाले कपड़े नहीं।

पितृपक्ष में जरूरी खरीद करने पर करें ये उपाय
खरीदे गए सामान पर गंगाजल छिड़कें।
पितरों को मानसिक रूप से अर्पित कर दान करें (थोड़ा अन्न, वस्त्र या दक्षिणा)।
सामान का प्रथम उपयोग पितृपक्ष के बाद करना श्रेष्ठ माना जाता है।

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