निजी विश्वविद्यालयों को लेकर बड़ा सवाल – चिकित्सा शिक्षा पर रोक तो तकनीकी शिक्षा पर क्यों नहीं?
⚡ बड़ा सवाल : चिकित्सा शिक्षा पर रोक तो तकनीकी शिक्षा पर क्यों नहीं? क्या सरकार निजी विश्वविद्यालयों को फेवर कर रही है या सच में होगी ठोस कार्रवाई? ⚡
रायपुर।
छत्तीसगढ़ में निजी विश्वविद्यालयों की मनमानी पर एक बार फिर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। हाल ही में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 6 अगस्त 2025 को हुई बैठक में चिकित्सा शिक्षा के कई कोर्स (आयुर्वेद, नर्सिंग, पैरामेडिकल, हेल्थ एंड एलाइड साइंसेस) को बिना अनुमति संचालित करने पर सख्त रोक लगाने का निर्णय लिया गया। यह फैसला माननीय उच्च न्यायालय के आदेश (WPC 5147/2024 – भारती विश्वविद्यालय बनाम छ.ग. शासन) के अनुपालन में लिया गया।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इसी नियम के दायरे में आने वाले तकनीकी शिक्षा के कोर्स, विशेषकर फार्मेसी, आर्किटेक्चर, इंजीनियरिंग और डिज़ाइन जैसे विषयों को क्यों छूट दी जा रही है?
⚖ कानूनी पेंच
05 जुलाई 2022 की अधिसूचना के तहत उच्च शिक्षा विभाग ने भारती विश्वविद्यालय को आयुर्वेद, पैरामेडिकल, नर्सिंग और फार्मेसी जैसे कोर्स शुरू करने की अनुमति दी थी।
लेकिन अधिनियम की धारा 9 (1) के अनुसार, चिकित्सा शिक्षा और तकनीकी शिक्षा दोनों ही अलग-अलग विभागों के अंतर्गत आते हैं।
ऐसे में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा तकनीकी शिक्षा के कोर्स (फार्मेसी आदि) की अनुमति देना नियमों का उल्लंघन है।
❗ बैठक में उठे बड़े सवाल
1. उच्च शिक्षा व चिकित्सा शिक्षा अलग विभाग – दोनों के लिए अलग संचालकालय, मंत्रालय और विश्वविद्यालय हैं।
2. तकनीकी शिक्षा भी स्वतंत्र विभाग है, जिसके अंतर्गत फार्मेसी, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर और डिज़ाइन आते हैं।
3. बैठक में उच्च शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा और विधि विभाग के अफसरों को बुलाया गया, लेकिन तकनीकी शिक्षा विभाग के अधिकारियों को शामिल नहीं किया गया।
4. इससे यह स्थिति बनी कि एक ही विषय पर दो समानांतर व्यवस्थाएं चल रही हैं, जो नियामकीय दृष्टि से बिल्कुल भी उचित नहीं है।
📌 छात्र हित पर सीधा असर
यदि चिकित्सा शिक्षा से जुड़े कोर्स बिना अनुमति अवैध माने जा रहे हैं, तो तकनीकी शिक्षा विभाग के अधिकार क्षेत्र वाले कोर्स को कैसे वैध ठहराया जा सकता है?
सवाल यह भी है कि क्या सरकार जानबूझकर निजी विश्वविद्यालयों को फेवर कर रही है और तकनीकी शिक्षा पर आंख मूंदकर बैठी है?
🔎 अब निगाहें स्वास्थ्य व तकनीकी शिक्षा मंत्री पर
इस पूरे मामले ने सरकार की नियामकीय गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या सरकार और मंत्रीगण इस बार केवल बयान देंगे या फिर निजी विश्वविद्यालयों की मनमानी पर वाकई में ठोस कार्रवाई करेंगे?
📦 सरकार पर उठते बड़े सवाल
1. जब चिकित्सा शिक्षा विभाग के कोर्स (नर्सिंग, पैरामेडिकल, आयुर्वेद) पर रोक लगाई जा सकती है, तो तकनीकी शिक्षा विभाग के कोर्स (फार्मेसी, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, डिज़ाइन) पर क्यों नहीं?
2. क्या उच्च शिक्षा विभाग को तकनीकी शिक्षा के कोर्स संचालित करने का वैधानिक अधिकार है?
3. बैठक में चिकित्सा शिक्षा और विधि विभाग को बुलाया गया, लेकिन तकनीकी शिक्षा विभाग के अफसर क्यों नदारद रहे?
4. क्या सरकार निजी विश्वविद्यालयों को फेवर करने के लिए जानबूझकर तकनीकी शिक्षा को छूट दे रही है?
5. क्या इस बार भी मंत्री और अधिकारी केवल बयान देंगे, या फिर ठोस कार्रवाई होगी?
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👉 यह खबर संलग्न सरकारी अधिसूचनाओं (राजपत्र, 05.07.2022), उच्च न्यायालय के आदेश (WPC 5147/2024), और 06 अगस्त 2025 की बैठक की कार्यवाही के आधार पर तैयार की गई है।
📦 मंत्री बनाम ब्यूरोक्रेसी का जाल 📦
अब देखना यह दिलचस्प होगा कि
👉 चिकित्सा शिक्षा मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल जी
और
👉 नवपदस्थ तकनीकी शिक्षा मंत्री गरु खुशवंत साहेब जी
इस विवादित स्थिति से कैसे निपटते हैं?
क्या ये दोनों मंत्री छात्रों और शिक्षा व्यवस्था के हित में ठोस कदम उठाएंगे
या फिर ब्यूरोक्रेसी के बिछाए जाल में फंसकर यह मामला भी महज़ बयानबाज़ी तक सिमट जाएगा?
⚡ बड़ा सवाल : चिकित्सा शिक्षा पर रोक तो तकनीकी शिक्षा पर क्यों नहीं? क्या सरकार निजी विश्वविद्यालयों को फेवर कर रही है या सच में होगी ठोस कार्रवाई? ⚡