“नफरत के दौर में सुकरात का मंत्र: बोलने से पहले तीन बार सोचिए” तीन कसौटियों से सीख — नफरत के दौर में समझदारी की ढाल

तीन कसौटियों से सीख — नफरत के दौर में समझदारी की ढाल

आज के समय में, जब जाति, धर्म और वर्ग के नाम पर लोगों को आपस में बाँटने की कोशिशें तेज़ हो गई हैं, सुकरात की “तीन कसौटियों” की सीख हमें सच, भलाई और उपयोगिता की ओर लौटने का रास्ता दिखाती है। यह कहानी केवल 2,500 साल पुरानी ग्रीस की नहीं है, बल्कि आज के भारत के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है।

सुकरात और तीन कसौटियाँ

प्राचीन यूनान के दार्शनिक सुकरात के पास एक व्यक्ति आया और बोला — “मैंने आपके एक मित्र के बारे में कुछ सुना है।”
सुकरात ने तुरंत कहा — “पहले हम एक परीक्षण करेंगे, जिसे मैं ‘तीन कसौटियों का परीक्षण’ कहता हूँ।”

1. सत्य की कसौटी — “क्या तुम पूरी तरह से पक्के हो कि यह बात सच है?”
जब जवाब मिला — “नहीं, मैंने सुना है…”, तो यह पहला इशारा था कि सूचना अधूरी और अपुष्ट है।

2. अच्छाई की कसौटी — “क्या इसमें मेरे मित्र के लिए कोई अच्छी बात है?”
जब जवाब फिर “नहीं” आया, तो यह स्पष्ट था कि यह केवल नकारात्मकता फैला सकती है।

3. उपयोगिता की कसौटी — “क्या यह बात मेरे किसी काम की है?”
तीसरी बार भी जवाब “नहीं” मिला, तो सुकरात ने कहा — “फिर मैं क्यों इसे सुनकर अपना समय बर्बाद करूँ?”

 

आज के माहौल में प्रासंगिकता

आज समाज में अक्सर ऐसे लोग मिल जाते हैं जो झूठ, अफवाह और नफरत के सहारे माहौल बिगाड़ते हैं।

जाति के नाम पर एक वर्ग को दूसरे के खिलाफ भड़काना।

धर्म के नाम पर गलत खबरें फैलाना।

राजनीतिक लाभ के लिए सामाजिक तनाव पैदा करना।

इन हालात में यदि हम सत्य, अच्छाई और उपयोगिता की तीन कसौटियों को अपनाएँ, तो बहुत-सी नफरत और गलतफहमियों को पनपने से पहले ही रोका जा सकता है।

सीख

पहला कदम — बिना पुष्टि के किसी भी बात पर विश्वास न करें।

दूसरा कदम — यदि सूचना में केवल बुराई है और कोई सकारात्मक पहलू नहीं, तो उससे दूरी बनाएँ।

तीसरा कदम — देखें कि यह जानकारी आपके लिए या समाज के लिए उपयोगी है या केवल समय और मानसिक शांति नष्ट करने वाली है।

 

सुकरात की विरासत

सुकरात का जन्म 470 ईसा पूर्व में ग्रीस के ऐथेंस नगर में हुआ। उन्होंने कभी अपने विचारों को पुस्तक में नहीं लिखा, बल्कि अपने शिष्यों प्लेटो और जेनोफोन के माध्यम से ज्ञान फैलाया।
वे सत्ताधारियों को आईना दिखाने से नहीं डरते थे, और इसी साहस के कारण 399 ईसा पूर्व उन्हें विष देकर मार दिया गया। फिर भी वे अपने सिद्धांतों से पीछे नहीं हटे।

निष्कर्ष:
यदि हर व्यक्ति सुकरात की इन तीन कसौटियों को अपने जीवन में उतार ले, तो समाज में फैल रही झूठी, नकारात्मक और विभाजनकारी बातों की जड़ें कमजोर हो जाएँगी। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि आज की दुनिया में नफरत को मात देने का सबसे आसान और असरदार हथियार है।

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