2015 का साल था, मुंबई में एक कंपनी में जॉब कर रहा था। नई-नई शादी हुई थी, मां-पापा भोपाल में रहते थे। मैंने घरवालों को कुछ दिनों के लिए मुंबई बुला लिया। इसी दौरान मां को बहुत ज्यादा खांसी आने लगी और फिर उन्हें कैंसर का पता चला। पूरे परिवार के पैरों तले जमीन खिसक गई।
परिवार भोपाल लौट गया, मां का इलाज एम्स में चलने लगा। मैं मुंबई में अकेला रह गया। फैमिली और जॉब, दोनों को एक साथ संभालना मुश्किल हो रहा था। मैं नौकरी छोड़कर भोपाल लौट गया। दो साल तक जॉब के लिए इधर-उधर भागता रहा, लेकिन ज्यादा पैकेज होने की वजह से काम नहीं मिला।
इसके बाद मैंने 2017-18 में सोलर पैनल लगाने की कंपनी बनाई। मैं जिस कंपनी में काम करता था, उसके मालिक मेरी कंपनी को 10 लाख में खरीदना चाहते थे, लेकिन मैंने अपनी कंपनी नहीं बेची। आज मेरी कंपनी की वैल्यू 5 करोड़ है।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित ‘शक्तिस्टेलर’ कंपनी के फाउंडर अंकित रॉय जब अपनी जर्नी शेयर करना शुरू करते हैं, तो कई ऐसे मोड़ आते हैं जब वो भावुक हो जाते हैं।
विदिशा और इंदौर में सोलर पैनल लगाने के लिए उनकी टीम टूल्स और सोलर पैनल से रिलेटेड मटेरियल कलेक्ट कर रही है। अंकित ऑफिस में रखे सोलर पैनल के डेमो पर कुछ एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। इसी बीच हमारी बातचीत का सिलसिला शुरू होता है।
अंकित कंपनी की शुरुआत को लेकर दिलचस्प किस्सा बताते हैं। कहते हैं, ‘एस्सेल ग्रुप में करीब 5 साल तक काम किया। मुंबई में लग्जूरियस लाइफ जी रहा था। इसी दौरान मां को कैंसर हो गया और मुझे नौकरी छोड़कर भोपाल लौटना पड़ा।
‘मां की कीमोथेरेपी और इलाज में बहुत पैसे खर्च हो रहे थे। पापा को घर चलाना मुश्किल हो रहा था। मैं 2 साल तक भोपाल और आस-पास के जिलों में जॉब ढूंढता रहा, लेकिन नौकरी नहीं मिली। कंपनी ओनर्स ये कहकर रिजेक्ट कर रहे थे कि मेरी सैलरी कंपनी के मैनेजर की सैलरी से भी ज्यादा है। वो मुझे इतना पैकेज नहीं दे सकते हैं।
थक-हारकर मैंने सोलर पैनल लगाने का स्टार्टअप शुरू किया। एस्सेल ग्रुप में काम करने के दौरान ये तो पता चल चुका था कि धीरे-धीरे लोग बिजली के लिए सोलर सिस्टम पर डिपेंड होते चले जाएंगे।’
कंपनी के शुरुआती दिनों की बातें कहते-कहते अंकित के चेहरे पर उदासी छा जाती है। कारण पूछने पर वो कहते हैं, ‘2017 में कंपनी लॉन्च करने के एक साल बाद ही मां का निधन हो गया। मैं पूरी तरह टूट गया। करीब 6 महीने तक डिप्रेशन में चला गया। कंपनी, खाना-पानी कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। पत्नी न होती तो शायद मैं न होता। उसने मुझे हिम्मत दी, जिसकी बदौलत मैं आज यहां पर खड़ा हूं।’
अंकित की कंपनी के एक हिस्से में ट्रेनिंग सेशन भी चल रहा है। उनके बिजनेस पार्टनर प्रवीण मार्केटिंग-सेल्स को लेकर टीम के साथ मीटिंग कर रहे हैं। वहीं, अंकित को अपने स्टाफ को सोलर पैनल को लेकर ट्रेनिंग देनी है। पूछने पर वो कहते हैं, ‘कुछ लोगों ने अभी हाल ही में जॉइन किया है।’
अंकित खुद की ट्रेनिंग को लेकर बताते हैं, ‘2005-09 में भोपाल के राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (RGPV) से इलेक्ट्रॉनिक से बीटेक किया था। उसी के बाद मेरा कैंपस प्लेसमेंट हो गया। कुछ साल बाद मेरी नियुक्ति सीनियर पोजिशन पर हो गई। मैं कंपनी को सोलर पैनल इंस्टॉल करने को लेकर भी इनपुट्स देता था। रिसर्च करता था।
जब अपनी कंपनी की शुरुआत की, तो मुझे मार्केट रिसर्च करना था। मध्य प्रदेश में 400 से ज्यादा प्लेयर्स पहले से वर्क कर रहे हैं। मुझे इससे कुछ अलग करना था। मैंने इन्वर्टर से रिलेटेड दो अलग डिवाइस भी बनाए, जो मेरे नाम से पेटेंट हैं।’
शुरुआती दिनों में कितने का आपने इन्वेस्ट किया था?
अंकित एक वाकया बताते हैं। कहते हैं, ‘इलाज के दौरान मां की कीमोथेरेपी चल रही थी। वो एम्स भोपाल में एडमिट थीं। उन्हें देखने के लिए पापा के एक दोस्त आए थे। पापा ने उन्हें बताया कि मैं सोलर पैनल लगाने का काम करता हूं।
सुनते ही पापा के दोस्त ने मुझे एडवांस में 3 लाख रुपए का चेक थमा दिया। सोलर पैनल लगाने का ऑर्डर दे दिया। ये मेरा पहला ऑर्डर था। इसमें मुझे मात्र 6 हजार रुपए की आमदनी हुई थी और यही मेरी लाइफ और कंपनी का टर्निंग पॉइंट रहा।’
अंकित कहते हैं कि उन्हें दूसरा ऑर्डर भी भोपाल से ही मिला था, लेकिन जिस क्लाइंट के यहां सोलर पैनल लगाना था, वो आखिरी वक्त पर मुकर गया। जिसके बाद उन्हें अपने घर पर सोलर पैनल लगवाने पड़े।
ऐसा नहीं है कि अंकित का बिजनेस शुरुआत से ही बहुत अच्छे तरीके से चल पड़ा। उन्हें भी सोसाइटी से ताने मिले, दोस्तों ने धोखा दिया। अंकित इसे विस्तार से बताते हैं, ‘जब बिजनेस शुरू किया, तो गांव वाले कमेंट करते थे। अरे! मुंबई की नौकरी छोड़कर यहां आ गया।
जब मुंबई में कुछ नहीं कर पाया, तो भोपाल में क्या ही कर लेगा। अकेले बिजनेस करने में दिक्कतें आने लगी, तो अपने जूनियर को कंपनी में पार्टनर बनने का न्योता दिया। उसने जॉइन भी कर लिया, लेकिन कुछ दिनों बाद ही वो डेढ़ लाख रुपए लेकर दिल्ली भाग गया। इससे पहले भी मेरे साथ एक बड़ी घटना हुई थी।’
अपने दोस्त के बारे में जिक्र कहते हुए अंकित के चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ-साथ पछतावा भी नजर आता है। वो कहते हैं, ‘कनाडा का एक व्यक्ति था। इससे मैं अपने एक दोस्त के जरिए मिला था। कंपनी शुरू करने से पहले एक ग्रुप के साथ 6 करोड़ का एक प्रोजेक्ट साइन किया था।
दोस्त ने कहा कि वो पैसा इन्वेस्ट करेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पहले तो उसने रूम रेंट देना बंद कर दिया, फिर जब पैसा इन्वेस्ट करने की बारी आई, तो इनकार कर गया। यदि हम प्रोजेक्ट को कम्प्लीट नहीं करते हैं, तो इस एग्रीमेंट के तहत पेनल्टी भी देनी थी।
जब लीगल एक्शन के लिए मैंने लॉयर से बात की, तब पता चला कि वो NRI था। मैं उस पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकता था। इसी के बाद मेरी मुलाकात प्रवीण से हुई। वो सेल्स मार्केटिंग संभालते हैं’
अंकित कंपनी के टेक्निकल पार्ट को देखते हैं, जबकि प्रवीण सेल्स-मार्केटिंग को संभालते हैं। प्रवीण कहते हैं, ‘मैंने रिलायंस समेत दर्जनों कॉर्पोरेट इंडस्ट्री में मार्केटिंग का काम किया है। कई बार सोचा भी था कि अपना स्टार्टअप शुरू करूं, लेकिन कभी कर नहीं पाया। जब अंकित से मिला, तो मुझे लगा कि ये अच्छा मौका है कुछ अपना करने का।’
पहले अंकित ने मध्य प्रदेश के गवर्नमेंट डिपार्टमेंट के साथ मिलकर सरकारी इमारतों में सोलर पैनल लगाने का काम किया, लेकिन जब सब्सिडी और प्रोसेस को लेकर दिक्कतें आने लगी तो वो प्राइवेट सेक्टर में काम करने लगे।
अंकित कहते हैं, ‘सोलर पैनल इंस्टॉल करवाने वाले कस्टमर को सरकार सब्सिडी देती है, लेकिन इसमें बड़े पैमाने पर धांधली है। आज हम 400 से ज्यादा साइट्स पर सोलर पैनल लगा चुके हैं।’
अब अंकित हमें सोलर पैनल के बारे में बताते हैं।
सोलर पैनल लगवाने का प्रोसेस क्या होता है?
अंकित कहते हैं, ‘मान लीजिए कि आप सोलर पैनल लगवाना चाह रहे हैं, तो जब आप हमसे कॉन्टैक्ट करेंगे। हम आपका आधार कार्ड, बिजली बिल और रेजिडेंशियल सर्टिफिकेट लेंगे। राज्य के बिजली विभाग से इसका वेरिफिकेशन करवाया जाता है कि आपके नाम पर बिजली बिल बकाया तो नहीं है।
सब कुछ ठीक होने के बाद हम कस्टमर की जरूरत और डिमांड के मुताबिक सोलर पैनल लगाते हैं। रेजिडेंशियल हाउस के लिए एक किलोवाट से लेकर 10 किलोवाट तक लगाया जाता है, जिसकी कीमत एक लाख 60 हजार से लेकर 6 लाख तक की होती है। अमूमन किसी घर के लिए 3 किलोवाट सोलर पैनल की ही जरूरत होती है।’
इसमें दो तरीके से सोलर पैनल लगाया जाता है।
1. जिसमें कस्टमर सिर्फ खुद के इस्तेमाल के लिए सोलर बिजली जनरेट करना चाहते हो।
2. जिसमें कस्टमर सोलर बिजली इस्तेमाल करने के बाद बची हुई बिजली को बेचना चाहता हो। इसमें उस इलाके के ट्रांसफार्मर के लोड को देखा जाता है।
कोरोना से पहले अंकित की कंपनी में 22 लोग काम कर रहे थे, लेकिन अब उनकी कंपनी में 10 लोग काम कर रहे हैं। अंकित बताते हैं- मेरे लिए टीम बनाना भी एक चैलेंज था। शुरुआत में जब टीम बनाई, तो कई लोग एक-दो महीने में ही काम छोड़कर भाग गए। जबकि कुछ ने अपनी नई कंपनी बना ली। हालांकि हम अपनी मार्केट स्ट्रैटजी से लगातार ग्रोथ कर रहे हैं। पिछले साल हमारा टर्नओवर 3 करोड़ का था। जबकि इस साल 5 करोड़ का है।
अंकित इस बिजनेस के फ्यूचर को लेकर कहते हैं, ‘इंजीनियरिंग करने के बाद स्टूडेंट्स को लगता है कि मार्केट में कोई जॉब नहीं है, कोई स्कोप नहीं है। जबकि सोलर सेक्टर में बहुत काम करने की जरूरत है। आने वाले वक्त में हर घर की छत पर सोलर पैनल आपको इंस्टॉल मिलेगा। लोग नेचुरल बिजली जेनरेट करेंगे।
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