खाद के व्यापार में मनमानी: शासन तय करता है रेट, पर खुले बाजार में चलता है ‘लेना है तो लो’ का फरमान

खाद के व्यापार में मनमानी: शासन तय करता है रेट, पर खुले बाजार में चलता है ‘लेना है तो लो’ का फरमान

📍 रायपुर | फोर्थ पिलर न्यूज़

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा खरीफ सीजन 2025 के लिए उर्वरकों की पर्याप्त व्यवस्था किए जाने के बावजूद खुले बाजार में किसान आज भी लुटे जा रहे हैं। शासन-प्रशासन की तमाम तैयारियों और दावों के विपरीत ज़मीनी हकीकत बेहद चिंताजनक है। खुले बाजार के विक्रेता किसानों से मनमानी कीमत वसूल रहे हैं और उनकी मजबूरी का खुलेआम फायदा उठा रहे हैं।


शासन कहे “पूरा स्टॉक”, पर बाज़ार में महंगाई का झटका

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने बयान दिया है कि:

“राज्य में खाद की कोई कमी नहीं है। डीएपी के विकल्प के रूप में नैनो डीएपी, एनपीके और एसएसपी की भरपूर व्यवस्था की गई है। किसान परेशान न हों, पर्याप्त भंडारण सुनिश्चित है।”

लेकिन किसान पूछ रहे हैं कि – अगर खाद की कमी नहीं है, तो व्यापारी किसानों से 266 रुपये की यूरिया 350-430 रुपये में क्यों बेच रहे हैं?
DAP का सरकारी रेट 1500-1600 रुपये प्रति बोरी है, पर व्यापारी खुलेआम 2000-2050 रुपये तक वसूल रहे हैं।


व्यापारी बोले: “लेना है तो लो, नहीं तो जाओ!”

खुले बाजार के छोटे-बड़े सभी दुकानदारों की जबान पर एक ही जवाब है –
“लेना है तो लो, नहीं तो जाओ!”
यह कथन इस बात का जीता-जागता प्रमाण है कि व्यापारियों को न शासन का डर है, न प्रशासन की पकड़।

किसानों का कहना है कि दुकान में बोर्ड पर भले ही रेट 266 रुपये लिखा हो, लेकिन भुगतान के समय 430 रुपये मांगे जाते हैं।
इस अंतर को लेकर जब सवाल किया जाता है तो जवाब मिलता है – “हम कुछ नहीं कर सकते, रेट बढ़ गया है”।


क्या प्रशासन ने आंखें मूंद ली हैं?

अब सवाल यह उठता है कि—

  • जब राज्य में भंडारण पर्याप्त है, तो कालाबाजारी क्यों?
  • क्या शासन तय दरों का पालन करवाने में असमर्थ है?
  • क्या कृषि विभाग, खाद्य विभाग और जिला प्रशासन सिर्फ कागज़ों में सजग है?
  • क्या मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखा जा रहा है?
  • क्या खाद कंपनियों या व्यापारियों से अधिकारियों की “सेटिंग” है?

क्या हो रहा है मुख्यमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचाने का प्रयास?

यह भी विचारणीय है कि कहीं यह कोई संगठित साजिश तो नहीं जो मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रही है?
या फिर विपक्षी नेताओं या कारोबारी लॉबी द्वारा किसानों को जानबूझकर असंतुष्ट करने की साजिश तो नहीं?
क्या खाद कंपनियाँ खुद ही जानबूझकर डीएपी की उपलब्धता की अफवाह फैलाकर मुनाफा कमाने के लिए किसानों को लूट रही हैं?


केंद्र और राज्य सरकार की नीयत पर सवाल नहीं, लेकिन नीति पर अमल कौन करेगा?

यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि केंद्र और राज्य सरकारें किसानों के हित में गंभीर हैं

  • पीएम किसान योजना के तहत सालाना ₹6000 की सहायता
  • नैनो डीएपी, एनपीके और एसएसपी का अतिरिक्त भंडारण
  • जुलाई में ही 48 हजार मीट्रिक टन डीएपी आपूर्ति का लक्ष्य
  • 1.79 लाख बॉटल नैनो डीएपी स्टॉक
  • यूरिया का 6 लाख मीट्रिक टन से अधिक भंडारण
  • एनपीके और एसएसपी के जरिए डीएपी की प्रतिपूर्ति की व्यवस्था

लेकिन यदि यह सब नीति स्तर तक सीमित रहेगा और ज़मीन पर नियंत्रण तंत्र फेल रहेगा तो किसान लाभान्वित नहीं हो सकेंगे।
सरकार की मंशा अच्छी हो सकती है, लेकिन प्रशासन की निष्क्रियता और व्यापारियों की मुनाफाखोरी सब पर पानी फेर देती है।


📌 निष्कर्ष और सवाल

✅ प्रदेश में खाद की कोई कमी नहीं है।
❌ पर किसानों को खाद तय रेट पर नहीं मिल रही।
❌ व्यापारी खुलेआम लूट रहे हैं, और कोई पूछने वाला नहीं।
❌ प्रशासन मौन है, कार्रवाई नदारद है।

➡ अब देखना ये है कि क्या मुख्यमंत्री विष्णु देव साय इन जमीनी हकीकतों पर गंभीर संज्ञान लेंगे?
➡ क्या कलेक्टर, कृषि विभाग, खाद निरीक्षक और जिला प्रशासन ऐसे व्यापारियों पर कार्रवाई कर किसानों को राहत दिलाएंगे?

या फिर यह सब भी सिर्फ एक “बटन छालावा” बनकर रह जाएगा?


🟩 4thpiller.com न्यूज़ की विशेष अपील:
मुख्यमंत्री जी, किसानों को घोषणाएं नहीं, राहत चाहिए।
नीति की नहीं, ज़मीन पर अमल की जरूरत है।

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