“PM आवास योजना का कागज़ी स्वीकृति, ज़मीनी हकीकत – झोपड़ी भी ढही, और किश्त भी अटकी!”


“PM आवास योजना का कागज़ी स्वीकृति, ज़मीनी हकीकत – झोपड़ी भी ढही, और किश्त भी अटकी!”

BJP समर्थक हितग्राही अरविंद बारगाह आज भी टूटी झोपड़ी में, प्रशासन से अब भी आस बाकी

रिपोर्ट: 4thPiller.com | जिला कोरिया, तहसील पटना

कोरिया जिला के ग्राम पंचायत रनई के बंधवा पारा वार्ड क्रमांक 14 के रहने वाले अरविंद बारगाह, पिता श्री जगरनाथ बारगाह, प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत पात्र हितग्राही हैं। इन्हें योजना की पहली किश्त ₹25,000 स्वीकृत हुई थी, जो उन्हें प्राप्त हो चुकी है। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती — बल्कि यहीं से उनकी असली परीक्षा शुरू हुई

बरसात से पहले खुद बनाया अधूरा मकान, अब वहीं रहने को विवश

बरसात की आहट और अपने कच्चे मकान की कमजोर स्थिति को भांपकर अरविंद ने बिना दूसरी किश्त की प्रतीक्षा किए, जान-पहचान, रिश्तेदारों और गांव से कर्ज लेकर जैसे-तैसे निर्माण शुरू किया। मगर सरकारी सहायता समय पर न मिलने के कारण मकान अधूरा ही रह गया।

जैसे ही मानसून ने दस्तक दी, अरविंद का पुराना कच्चा मकान भरभरा कर गिर गया। अब उनके पास न तो रहने को सुरक्षित घर है और न ही पास में बचा धन। मजबूरी में वे अधूरे निर्माण के बीच जैसे-तैसे बारिश में भीगते हुए दिन काट रहे हैं।


🔍 जनपद पंचायत का जवाब — ‘फंड नहीं है’

हितग्राही ने जनपद पंचायत, तहसील पटना में बार-बार संपर्क किया। वहाँ एक ‘छाया मैडम’ से उनकी बातचीत होती है जो उन्हें सिर्फ एक उत्तर देती हैं — “फंड नहीं है”।
अब सवाल उठता है:
👉 यदि फंड नहीं है, तो बाकी लाभार्थियों को दूसरी व तीसरी किश्त कैसे जारी हो गई?


🧍‍♂️ अरविंद कौन हैं?

  • प्रधानमंत्री आवास योजना के पात्र हितग्राही
  • स्वयं BJP पार्टी के समर्थक और नियमित वोटर
  • जनपद CEO, सरपंच, सचिव, यहाँ तक कि स्थानीय भाजपा पदाधिकारियों तक अपनी बात रख चुके हैं
  • फिर भी आज तक दूसरी किश्त का इंतज़ार कर रहे हैं

जब भाजपा का समर्थक, सत्ताधारी पार्टी से जुड़ा कार्यकर्ता ही इस प्रकार की उपेक्षा का शिकार है, तो साधारण नागरिकों की स्थिति की कल्पना करना कठिन नहीं है।


📜 नियम क्या कहता है?

प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY-G) की गाइडलाइन के अनुसार —

  • प्रत्येक किश्त का भुगतान निर्माण की प्रगति के अनुसार समयबद्ध किया जाना चाहिए।
  • दूसरी किश्त उस स्थिति में दी जाती है जब प्लिंथ लेवल (नींव कार्य) पूरा हो जाता है।
  • निर्धारित अवधि के भीतर किश्तें न देना प्रशासनिक विफलता मानी जाती है।

यदि फंड की समस्या है तो यह जनपद CEO और ज़िला प्रशासन की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे उच्च स्तर पर निधि की उपलब्धता सुनिश्चित करें। लेकिन यदि फंड मौजूद होते हुए भी लाभार्थी को किश्त नहीं दी जा रही — तो यह घोर लापरवाही और भ्रष्टाचार की बू देता है।


📣 हमारा सवाल — जवाब कौन देगा?

  • जनपद CEO कोरिया क्या जवाब देंगे इस अनदेखी का?
  • छाया मैडम नामक अधिकारी की भूमिका की जांच क्यों नहीं की जा रही?
  • कलेक्टर कोरिया कब संज्ञान लेंगे इस मामले का?
  • क्या गरीब हितग्राही को बार-बार बाबूओं के आगे गिड़गिड़ाना ही उसका नसीब है?

हमारी माँग –

  1. अरविंद बारगाह को तत्काल दूसरी व तीसरी किश्त जारी की जाए।
  2. यदि जनपद में फंड है, तो वितरण में भेदभाव करने वालों पर कार्रवाई की जाए
  3. यदि फंड नहीं है, तो इसकी सत्यापन रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए
  4. हितग्राहियों को बार-बार कार्यालयों में दौड़ाने वाले संबंधित बाबुओं को नोटिस जारी किया जाए

🛑 सुशासन की परीक्षा यही है —

“जब एक BJP समर्थक, वोटर और पात्र लाभार्थी अरविंद बारगाह खुद कलेक्टर से लेकर पार्टी के पदाधिकारियों तक मदद की गुहार लगा चुका हो, और फिर भी उसे छत नसीब न हो — तो सुशासन सिर्फ पोस्टर और विज्ञापनों तक ही सीमित माना जाएगा।”


4thPiller.com शासन से अपील करता है कि वे इस पीड़ा को आंकड़ों की फाइलों में मत दबाएं, बल्कि ज़मीनी सच्चाई को समझें और गरीब हितग्राही को उसका हक दिलाएं।

👉 वरना सवाल यही रहेगा —
“प्रधानमंत्री आवास योजना, या केवल कागज़ी औपचारिकता?”

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