मनुष्य को बांटती है सत्ता और व्यवस्था…लेकिन कविता जोड़ती है-सियाराम शर्मा

रायपुर। जन संस्कृति मंच ( जसम ) की रायपुर ईकाई द्वारा सिविल लाइन स्थित वृंदावन हॉल में सोमवार को आयोजित किए गए सृजन संवाद में कवियों और शायरों के अलावा महत्वपूर्ण रचनाकारों ने हिस्सेदारी दर्ज की. एक- दूसरे से घृणा और नफ़रत के इस भयावह दौर में सभी रचनाकारों ने अपनी धारदार रचनाओं के जरिए यह संदेश दिया कि मनुष्य और मनुष्यता को बचाना बहुत जरूरी है. इस मौके पर देश के नामचीन आलोचक सियाराम शर्मा ने कहा कि व्यवस्था और सत्ता मनुष्य को बांटने का काम करती है, लेकिन एक अच्छी कविता या रचना मनुष्य को मनुष्य से, प्रकृति से,समाज से और विश्व से जोड़ती हैं. उन्होंने सृजन संवाद में शामिल रचनाकारों को इस बात के लिए बधाई दी कि वे अपनी सृजनशीलता के जरिए नफ़रत और बांटने वाली शक्तियों से डटकर मुकाबला कर रहे हैं.

देश की नामचीन लेखिका और जसम की वरिष्ठ सदस्य जया जादवानी ने एक बेहतर रचना के लिए कुछ सूत्रों के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि जो रचनाकार स्पष्ट विचार के साथ लिखने की कला सीख जाता है उसका लिखा याद रखा जाता है. हर लेखक की एक विशिष्ट शैली होती है और लेखक अपनी विशिष्ट शैली से रचनात्मक हस्तक्षेप करते रहता है. उन्होंने कहा कि जब कोई विषय यूनिक होता है तो पाठक अपने प्रिय लेखक को पसंद करने लगता है.

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रगतिशील लेखक संघ के वरिष्ठ लेखक रवि श्रीवास्तव ने की. उन्होंने रचनाकारों को जन सरोकारों के साथ रचना पाठ करने के लिए बधाई दी. जसम के वरिष्ठ साथी और शायर रज़ा हैदरी ने कहा कि जो रचनाकार अल्फाज़ की महत्ता को समझ जाता है वह यह बात भी बखूबी जान जाता है दुनिया को खूबसूरत कैसे बनाना है. उन्होंने कालीदास पर अपनी चर्चित नज़्म का वाचन भी किया जिसे श्रोताओं ने खूब सराहा.

कार्यक्रम की शुरुआत युवा कवि वसु गंधर्व के गायन से हुई. इस दौरान वसु ने अपनी दो शानदार कविताओं का पाठ भी किया. कवियित्री नीलिमा मिश्रा ने कोरोना काल में लिखी कविता ‘पेट की आग’ का पाठ किया, जिसमें मजदूरों के घर लौटने की विभीषिका का वर्णन देखने को मिला. मधु सक्सेना ने ‘हवा आने दो’ शीर्षक से पढ़ी कविता में समय की कुरूपता को रेखांकित किया. सम-सामयिक विषयों पर लगातार लिखने वाली
सनियारा ख़ान ने ‘टेरेसा को चिल्लाने वाला आदमी’ शीर्षक से जीवंत कहानी प्रस्तुत की. कहानी पढ़ने के उनके अंदाज को श्रोताओं ने खूब पसंद किया. दिलशाद सैफ़ी ‘सियासी रंग’ कविता को पढ़ते हुए सांप्रदायिकता के वीभत्स चेहरे को उजागर किया. सुनीता शुक्ल ने गोरख पांडे के चर्चित गीत ‘समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई’ को जोरदार ढंग से प्रस्तुत किया.

मोहम्मद मुसय्यब ने अपनी ग़ज़ल से शानदार माहौल बनाया. उनके शेर ‘मौन को मौत समझा जाता है…बोलिए बोलना जरूरी है.’ को श्रोताओं ने सराहा. रूपेंद्र तिवारी ने ‘अजिहा की संदूकची’, ‘हमें फर्क नहीं पड़ता’, ‘कबरबिज्जू’ और ‘राजा’ शीर्षक से धारदार कविताएं पढ़ी.
डॉ. संजू साहू ‘पूनम’ ने ‘भूख’ कविता के जरिए बस्तर के जन-जीवन का
कटु यथार्थ प्रस्तुत किया. कवि और उपन्यासकार समीर दीवान ने मानवीय संबंधों के कोलाज को ‘उपस्थिति’ कविता में पिरोकर सबको भावुक कर दिया. युवा शायर आफ़ाक़ अहमद ने भी अपनी ग़ज़लों का शानदार वाचन किया. वहीं मौली चक्रवर्ती ने रविन्द्र संगीत के साथ सुमधुर गायन की प्रस्तुति दी. वरिष्ठ कवि सिरिल साइमन ने ‘नरभक्षी’ कविता के माध्यम से पेड़ को बिंब बनाते हुए भयाक्रांत परिवेश का चित्रण किया.

युवा शायर इमरान अब्बास ने तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़ी. अजय कुमार शुक्ल ने सामयिक कविता ‘दरवाजे खिड़कियां बंदकर कब तक बचोगे?’ का पाठ किया. वरिष्ठ शायर आलिम नकवी की नज़्म को सबने पसंद किया.

देश के अखिल भारतीय मुशायरों में शिरकत करने वाले महत्वपूर्ण शायर सुखनवर हुसैन रायपुरी ने चुनिंदा ग़ज़लें तरन्नुम में पढ़ी. वरिष्ठ शायर जावेद नदीम नागपुरी ने अपनी शायरी में देश के मौजूदा हालात का बखूबी बखान किया.

कार्यक्रम का बेहतरीन संचालन युवा शायर मीसम हैदरी ने किया.इस दौरान उन्होंने ‘दो जून की रोटी’ शीर्षक से शानदार रचना का पाठ किया. आभार प्रदर्शन जसम रायपुर के सचिव इंद्र कुमार राठौर ने किया.

देर रात तक चले इस कार्यक्रम में श्रोताओं की उपस्थिति अंत तक बनी रही. कार्यक्रम में प्रमुख रुप से भिलाई जसम के सचिव सुरेश वाहने, वासुकि प्रसाद उन्मत्त, आकाश चंद्राकर, हरीश कोटक, मीर अली मीर, परमानंद वर्मा, अलीशा मसीह, आदित्य, भागीरथी वर्मा, आरडी अहिरवार, कमलेश राठौर, एआर देवांगन,आकांक्षा शुक्ल, दानियाल अब्बास, बीके साहू, बीएस नटराजन, बी गीता, एफए सैफी, डॉ. आभा शर्मा, श्रेया तिवारी, आनंद बहादुर, मधु वर्मा, राजकुमार सोनी सहित कई प्रबुद्धजन शामिल रहे.

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