दुर्ग के पटेल चौक पर करोड़ों की सरकारी जमीन पर अतिक्रमण, SDM कोर्ट का आदेश भी बेअसर! नगर निगम ने गरीबों के आश्रय पर साधी चुप्पी

दुर्ग। एक ओर नगर निगम प्रशासन शहर में रोज़ी-मजदूरी करने वाले गरीबों के छोटे-मोटे ठेलों और अस्थायी अतिक्रमण को हटाकर “स्वच्छता” और “सौंदर्यीकरण” के नाम पर वाहवाही लूटने में लगा है, वहीं दूसरी ओर शहर के हृदय स्थल पटेल चौक, कलेक्ट्रेट कार्यालय के सामने की करोड़ों की शासकीय भूमि पर वर्षों से चल रहे कब्जे पर आंखें मूंदे बैठा है।

यह ज़मीन राजीव गांधी आश्रय योजना 1998 के तहत गरीब परिवारों को पट्टे पर दी गई थी। योजना की शर्तों में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि यह भूमि न तो किसी और को बेची जा सकती है और न ही स्थानांतरित। इसके बावजूद वर्तमान में मात्र 21 लोगों ने इस पूरी ज़मीन पर कब्जा कर रखा है, जबकि वास्तविक पट्टाधारी भूमिहीन और असहाय होकर दर-दर भटक रहे हैं।

एसडीएम कोर्ट ने 09 जून 2021 को नगर निगम आयुक्त को आदेशित किया था कि एक महीने के भीतर शासकीय ज़मीन से अवैध कब्जा हटाया जाए। लेकिन आदेश के लगभग तीन साल बीतने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। यह दर्शाता है कि निगम प्रशासन सिर्फ दिखावे की कार्रवाई कर रहा है।

प्रमुख सवाल उठते हैं:

क्या नगर निगम केवल गरीब ठेलेवालों पर ही कार्रवाई करेगा?

करोड़ों की सरकारी ज़मीन पर कब्जा कर बैठे प्रभावशाली लोगों पर कार्यवाही से प्रशासन क्यों बच रहा है?

SDM कोर्ट का आदेश होने के बावजूद भी अगर निगम निष्क्रिय है तो क्या इसे अदालत की अवमानना नहीं माना जाएगा?

स्थानीय जागरूक नागरिकों ने मांग की है कि राजीव गांधी आश्रय योजना की ज़मीन को कब्जा मुक्त कर पुनः असली पट्टा धारकों को सौंपा जाए। साथ ही, ज़िम्मेदार अधिकारियों पर कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने के लिए कार्रवाई भी की जाए।

क्या है मामला विस्तृत रूप से जाने….

नगर पालिक निगम दुर्ग द्वारा प्रधानमंत्री राजीव गांधी आवास योजना 1998 के तहत गरीब और पात्र लोगों को जमीन आवंटन के लिए पट्टे दिए गए थे। लेकिन न्यायालय में प्रस्तुत अभिलेखों और जांच में सामने आया था कि इन पट्टों का वितरण नियमों और पात्रता की शर्तों को दरकिनार कर किया गया। आदेश संख्या 202106100400046 दिनांक 09/06/2021 और न्यायालयीय कार्यवाही दिनांक 29/10/2021 में इस गड़बड़ी की पुष्टि की गई थी।

अनियमित रूप से लाभ पाने वालों की सूची में थे 21 नाम

न्यायालय के आदेश में स्पष्ट किया गया था कि 21 ऐसे व्यक्तियों को पट्टे जारी किए गए जो राजीव गांधी आवास योजना की पात्रता शर्तों पर खरे नहीं उतरते थे। इनमें से कई व्यक्ति व्यवसायी थे, कुछ के पास पहले से भूमि थी, तो कुछ ने फर्जी तरीके से आवेदन कर पट्टा प्राप्त किया था।

इन व्यक्तियों में प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:

भैरव लाल/लालूभैया – 200 वर्गमीटर भूमि

यासमिन/रईस – 397.54 वर्गमीटर भूमि (खुले व्यापारिक उपयोग के लिए)

नारोत्तम/दुलारसिंह – 81.00 वर्गमीटर भूमि (पारंपरिक रूप से व्यवसायी)

पूरनचंद/सुरसतलाल – 198.00 वर्गमीटर भूमि (व्यवसायिक उपयोग हेतु)

साजिदा बेगम/रज्जाक अली – 555.00 वर्गमीटर भूमि (व्यवसायिक उपयोग हेतु)

योजना का उद्देश्य हुआ था विफल

राजीव गांधी आवास योजना का उद्देश्य था आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आवासीय भूमि प्रदान करना। परंतु, यह देखा गया कि उपरोक्त 21 व्यक्तियों में से अधिकांश ने इन पट्टों का उपयोग व्यावसायिक गतिविधियों के लिए किया। कई आवेदकों ने झूठे दस्तावेजों और अपात्र श्रेणी में आते हुए भी पट्टा प्राप्त कर लिया।

न्यायालय ने जताई थी गंभीर चिंता…

न्यायालय ने 09/06/2021 के अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया कि—

1. पट्टे की भूमि का व्यवसायिक उपयोग नहीं किया जा सकता।

2. आवेदक यदि निर्धारित उद्देश्य से इतर कार्य करता है तो उसका पट्टा निरस्त किया जाएगा।

3. पट्टाधारियों को वार्षिक दर से प्रभार का भुगतान करना होगा।

4. किसी भी प्रकार का उप-स्वामित्व या बिक्री मान्य नहीं होगा।

नगर निगम और प्रशासन की भूमिका पर भी उठे थे सवाल…

न्यायालय ने यह भी कहा था कि नगर निगम दुर्ग द्वारा इन आवेदकों की पात्रता की बिना सत्यापन के स्वीकृति देना, अधिकारियों की लापरवाही और संभावित मिलीभगत को दर्शाता है। मामले में पूर्व में भी स्थानीय रहवासियों ने आपत्ति दर्ज कराई थी, लेकिन उसे गंभीरता से नहीं लिया गया।

आदेश: एक माह में पूरी जांच और दोषियों पर कार्यवाही

अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व), दुर्ग द्वारा पारित आदेश में नगर पालिक निगम को निर्देशित किया गया था कि सभी 21 पट्टाधारियों के पट्टे निरस्त किए जाएं, और यदि किसी ने कब्जा कर रखा है तो उन्हें बेदखल किया जाए। साथ ही संबंधित अधिकारियों की लापरवाही की भी एक माह में जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।

निष्कर्ष:
राजीव गांधी आवास योजना के नाम पर सरकारी जमीन का ग़लत आवंटन, ना केवल गरीबों के अधिकारों का हनन है, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। न्यायालय का हस्तक्षेप इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था, जिससे उम्मीद की जा सकती थी कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी और गरीबों को उनका हक मिलेगा पर मामला में कार्यवाही सिफार रहा।

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