वन्यजीवों की अनदेखी: बलरामपुर में वन विभाग का विवादास्पद ANR प्रोजेक्ट

बलरामपुर – वन विभाग का प्राथमिक कार्य जैव विविधता का संरक्षण और वनों का सतत प्रबंधन करना होता है। इसके साथ ही, स्थानीय समुदायों को वन संरक्षण और विकास से जोड़कर उन्हें रोजगार देना भी विभाग की जिम्मेदारी होती है। लेकिन बलरामपुर में वन मंडल अधिकारी द्वारा वन्यजीवों के हितों की अनदेखी कर ANR (Assisted Natural Regeneration) परियोजना को लागू किया जा रहा है, जो कई गंभीर सवाल खड़े करता है।

वन्यजीवों पर खतरा

यह चित्र सांकेतिक हैं।

वन क्षेत्र में बिना उचित योजना के फेंसिंग (बाड़) लगाने से वन्यजीवों की स्वतंत्र आवाजाही बाधित होगी। वे एक सीमित क्षेत्र में बंधकर रह जाएंगे, जिससे उनके प्राकृतिक आवास, खानपान और विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वन्यजीवों को खुले में रहने की आदत होती है, लेकिन इस परियोजना से उनका स्वाभाविक जीवन चक्र प्रभावित होगा।

फेंसिंग से दुर्घटनाओं की आशंका

यह चित्र सांकेतिक हैं।

वन विभाग द्वारा बार्बेड वायर (कंटीले तार) की फेंसिंग कराई जा रही है, जो न केवल वन्यजीवों के लिए घातक साबित होगी, बल्कि उनके जीवन के लिए भी खतरा बनेगी। फेंसिंग में फंसने और घायल होने के कारण वन्यजीवों की मृत्यु की संभावना बढ़ जाएगी

समुच्य खंती और CPW जैसी सुरक्षित तकनीकों की जरूरत

विशेषज्ञों के अनुसार, वन क्षेत्र में फेंसिंग के लिए समुच्य खंती या CPW (Controlled Permeable Wall) जैसी सुरक्षित तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए। इन तकनीकों से वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है और उन्हें प्राकृतिक वातावरण में रहने की सुविधा मिल सकती है। लेकिन वन विभाग बिना सोचे-समझे बार्बेड वायर फेंसिंग कर रहा है, जिससे यह संदेह पैदा होता है कि अधिकारी केवल ठेकेदारों के माध्यम से मुनाफा कमाने की योजना बना रहे हैं।

ग्रामीणों के रोजगार की अनदेखी

यह चित्र CPW कार्य का सांकेतिक चित्र हैं।

अगर इस परियोजना में समुच्य खंती या CPW जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता, तो स्थानीय ग्रामीणों को भी रोजगार मिलता। इससे वन संरक्षण के साथ-साथ ग्रामीणों की आजीविका भी सुरक्षित होती। लेकिन वर्तमान नीति में स्थानीय लोगों को दरकिनार कर केवल फेंसिंग पोल और बार्बेड वायर से मुनाफा कमाने की सोच अपनाई जा रही है।

वन्यजीव संरक्षण की अनदेखी करने वाले IFS अधिकारियों को पुनः

देहरादून में ट्रेनिंग के लिए भेजा जाना चाहिए। अगर ये अधिकारी सही तरीके से प्रशिक्षित होते, तो वे समुचित वन प्रबंधन, सुरक्षित फेंसिंग तकनीकों और स्थानीय समुदायों की भागीदारी के महत्व को समझते। ऐसे में यह सवाल उठता है कि उन्होंने ट्रेनिंग के दौरान क्या सीखा? यदि वे जमीनी हकीकत और पर्यावरणीय संतुलन को नहीं समझ पा रहे हैं, तो इन्हें दोबारा प्रशिक्षण देना ही एकमात्र समाधान है।

IFS अधिकारियों को वरिष्ठों से मार्गदर्शन लेना चाहिए

नए IFS अधिकारियों को पर्यावरणीय संतुलन और वन्यजीव संरक्षण की मूल अवधारणा को समझते हुए अपने वरिष्ठ अधिकारियों से मार्गदर्शन लेना चाहिए। लेकिन बलरामपुर में जैव विविधता और वन्यजीवों की सुरक्षा के बजाय वही पुराना मॉडल लागू किया जा रहा है, जिसमें केवल ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने की मंशा दिखती है।

निष्कर्ष

बलरामपुर में वन विभाग द्वारा ANR प्रोजेक्ट को बिना उचित अध्ययन और रणनीति के लागू करना वन्यजीवों के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। इससे न केवल वन्यजीवों की मौत की आशंका बढ़ेगी, बल्कि उनके प्राकृतिक आवास पर भी संकट गहरा जाएगा। वन विभाग को चाहिए कि वह समुच्य खंती या CPW जैसी सुरक्षित तकनीकों को अपनाकर वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और स्थानीय लोगों को भी रोजगार के अवसर प्रदान करे।

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