रेंजर, SDO और DFO की कोई जिम्मेदारी नहीं? CCF मैच्चियों का क्या होगा?
तांदुला डेम में भालू की तैरती लाश मिलने के एक महीने बाद बड़ा खुलासा हुआ है। वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं, क्योंकि शव को गुपचुप दफनाने और पंजे गायब होने जैसी चौंकाने वाली घटनाओं के बावजूद कार्रवाई सिर्फ छोटे कर्मचारियों तक सीमित रही।

क्या है पूरा मामला?
24 फरवरी को तांदुला डेम में एक भालू का शव मिला था। वन विभाग ने इसे बिना किसी सार्वजनिक जानकारी के कल्लूबाहरा के जंगल में दफना दिया। मामला तब तूल पकड़ा जब लगभग एक माह बाद मृत भालू की तस्वीरें वायरल हुईं। विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए।

हैरान करने वाला खुलासा
शनिवार को जब वन विभाग ने शव को दोबारा जमीन से निकाला, तो पाया कि भालू के चारों पंजे काट लिए गए थे! यह खुलासा वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर संदेह पैदा करता है। सवाल उठता है कि आखिर इस मामले में किसे बचाने की कोशिश हो रही है?
तीन छोटे कर्मचारियों पर गिरी गाज, बड़े अधिकारी बचे!
वन विभाग ने इस मामले में तीन छोटे कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है:
- भूषण लाल ढीमर (वनपाल सहायक परिक्षेत्र अधिकारी, हर्राठेमा)
- दरेश कुमार पटेल (परिसर रक्षक, मलगांव)
- विशेखा नाग (परिसर रक्षक, नैकिनकुंवा)
लेकिन असली सवाल यह है कि रेंजर, SDO और DFO की कोई भूमिका नहीं थी?
क्या CCF (मुख्य वन संरक्षक) जैसे बड़े अधिकारियों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? इस मामले में उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
विधानसभा में भी गूंजा मामला
गुंडरदेही विधायक कुंवर सिंह ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया और मांग की कि उच्च स्तरीय जांच कराई जाए। उन्होंने कहा कि छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाकर असली गुनहगारों को बचाने की कोशिश की जा रही है।
वन्यजीव तस्करी का संकेत?
भालू के पंजों का काटा जाना, वन्यजीव तस्करी की ओर भी इशारा करता है। भालू के अंगों की तस्करी एक काले बाजार का हिस्सा है। क्या यह मामला भी उसी कड़ी का हिस्सा है?
बड़े अधिकारियों पर कब होगी कार्रवाई?
वन विभाग ने छोटे कर्मचारियों को निलंबित कर अपनी पीठ थपथपा ली, लेकिन असली गुनहगार अब भी पर्दे के पीछे हैं।
- क्या फॉरेंसिक रिपोर्ट से सच्चाई सामने आएगी?
- क्या बड़े अधिकारियों पर भी गाज गिरेगी?
- या हमेशा की तरह छोटे कर्मचारियों को ही बलि का बकरा बनाकर मामला रफा-दफा कर दिया जाएगा?
बड़े अधिकारियों की लापरवाही बनी भालू की मौत की वजह?
छोटे कर्मचारियों ने दफन कर बचना चाहा जांच से!
तांदुला डेम में भालू की मौत सिर्फ एक संयोग नहीं थी, बल्कि वन विभाग के ढीले प्रशासन और बड़े अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा थी। यदि समय रहते वन्यजीवों की सुरक्षा पर सख्ती बरती जाती, तो यह हादसा टल सकता था।
बड़े अधिकारियों की अनदेखी, छोटे कर्मचारियों की जल्दबाजी
सूत्रों के अनुसार, वन विभाग के शीर्ष अधिकारी—CCF, DFO, SDO और रेंजर—अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रहे। उनकी लापरवाही के चलते जंगलों में वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सकी, जिससे इस भालू की मौत हुई। इसके बाद छोटे कर्मचारियों ने इसे किसी को पता न चलने देने के लिए गुपचुप तरीके से दफन कर दिया, ताकि खानापूर्ति जांच और कागजी कार्यवाही के झंझट से बचा जा सके।
क्या है असली साजिश?
जब भालू का शव दोबारा निकाला गया, तो उसके पंजे गायब मिले। इससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या वन्यजीव अंग तस्करी से जुड़ा यह मामला सिर्फ छोटे कर्मचारियों तक सीमित है, या फिर इसके पीछे ऊपर तक फैला कोई बड़ा रैकेट काम कर रहा है?
प्रशासन में कसावट कब आएगी?
- क्या इस घटना के बाद भी वन विभाग में कोई सख्त सुधार होगा?
- क्या लापरवाह अधिकारियों पर भी कार्रवाई होगी?
- या फिर हमेशा की तरह छोटे कर्मचारियों पर गाज गिराकर असली दोषियों को बचा लिया जाएगा?
अब सबकी निगाहें इस जांच पर टिकी हैं। क्या यह मामला भी दब जाएगा, या फिर जंगलों में वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे?
अब सबकी नजरें इस बात पर हैं कि वन विभाग इस मामले को कितनी ईमानदारी से आगे बढ़ाता है या फिर यह भी एक और दबा दिया जाने वाला घोटाला बनकर रह जाएगा।