DFO बैकुंठपुर की RTI में मनमानी उजागर: कभी खुद जनसूचना अधिकारी, कभी अपीलीय अधिकारी!

बैकुंठपुर (कोरिया)। कोरिया वनमंडल बैकुंठपुर की DFO श्रीमती प्रभाकर खलको (IFS) द्वारा सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 के तहत प्राप्त आवेदनों में नियमों की अनदेखी और अपनी मनमर्जी से पदों का निर्धारण करने का मामला सामने आया है। उपलब्ध दस्तावेजों से स्पष्ट होता है कि उन्होंने कभी खुद को जनसूचना अधिकारी (PIO) घोषित किया, तो कभी अपने ही अधीनस्थ अधिकारियों को PIO बनाते हुए खुद को प्रथम अपीलीय अधिकारी (FAA) घोषित कर लिया।

RTI में दो अलग-अलग जवाब, लेकिन खेल एक ही

एक आवेदक ने RTI के तहत कैम्पा मद से बने स्टॉपडैम, नालों और गेबियन स्ट्रक्चर की DPR (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) की प्रति मांगी थी। इस पर DFO ने 05.02.2025 को पत्र क्रमांक 799 जारी करते हुए खुद को जनसूचना अधिकारी बताया और जवाब दिया कि –

  1. मांगी गई जानकारी 1000 पृष्ठों से अधिक है, अतः आवेदक कार्यालय में उपस्थित होकर अवलोकन कर सकता है
  2. आवेदक को 14.02.2025 को दोपहर 3:00 बजे तक कार्यालय आने को कहा गया।
  3. आवेदक को स्पष्ट रूप से यह भी बताया गया कि यदि वह संतुष्ट नहीं है, तो CCF कार्यालय सरगुजा को प्रथम अपीलीय अधिकारी मानकर अपील कर सकता है।

हालांकि, जब आवेदक ने पुनः दूसरी बार उसी तरह का RTI आवेदन किया, तो DFO ने 06.02.2025 को पत्र क्रमांक 815 जारी कर अपनी ही भूमिका बदल दी। इस बार उन्होंने –

  1. अपने अधीनस्थ वन परिक्षेत्र अधिकारियों को जनसूचना अधिकारी घोषित कर दिया।
  2. खुद को प्रथम अपीलीय अधिकारी घोषित कर लिया।
  3. आवेदक को संबंधित परिक्षेत्र अधिकारियों से जानकारी लेने को कहा।

DFO की मर्जी ही कानून?

RTI अधिनियम के अनुसार, जिस कार्यालय में आवेदन दिया गया है, उसी कार्यालय का अधिकारी जनसूचना अधिकारी होता है। DPR की जानकारी DFO कार्यालय में ही उपलब्ध होती है, क्योंकि ये DPR कैम्पा मुख्यालय रायपुर द्वारा स्वीकृत होकर DFO कार्यालय में जमा की जाती है और वहीं से अनुमोदित होती है। फिर भी, DFO ने कभी खुद को PIO बताया, तो कभी अपने अधीनस्थ अधिकारियों को, जिससे यह साफ हो जाता है कि वे RTI नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं।

RTI कार्यकर्ताओं और पत्रकारों में आक्रोश

DFO बैकुंठपुर की इस कार्यशैली से RTI कार्यकर्ता और पत्रकार नाराज हैं। उनका कहना है कि महिला अधिकारी होने का फायदा उठाकर DFO ना केवल RTI कार्यकर्ताओं को गुमराह कर रही हैं, बल्कि सरकारी कार्यप्रणाली में मनमानी कर रही हैं।

उनके व्यवहार को लेकर भी शिकायतें सामने आई हैं कि –

  1. वे आम जनता और अधीनस्थ अधिकारियों से अभद्र भाषा में बात करती हैं।
  2. वे विशेष जातिगत प्रभाव का इस्तेमाल कर अनुचित कार्यों को सही ठहराने की कोशिश करती हैं।
  3. वे खुद को सरकारी नियमों से ऊपर मानकर कार्य कर रही हैं।

उच्च अधिकारियों की चुप्पी पर सवाल

अब सवाल यह उठता है कि वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी इस मनमानी पर क्यों चुप हैं? अगर एक DFO खुद को कभी PIO और कभी FAA बनाकर RTI आवेदनों को कमजोर कर सकती हैं, तो यह पारदर्शिता और जवाबदेही की पूरी प्रणाली पर सवाल खड़ा करता है।

इससे पहले भी इनके द्वारा किए गए कार्यवाही पर समाचार प्रकाशित हुवा था पर इन्होने या उच्चधिकारी के कान में जूँ तक नहीं रेंग रहा हैं, इससे यह प्रश्न उठता हैं कि क्या एक बार IFS बनने के बाद अधिकारी किसी नियम-कानून को ताक पर रख सकते हैं? या फिर यह एक नए प्रशासनिक अराजकता का उदाहरण है, जहां अधिकारी अपनी सुविधा के अनुसार कानून की व्याख्या कर रहे हैं?

इस पूरे मामले में वन विभाग के उच्च अधिकारियों को तत्काल संज्ञान लेना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि RTI अधिनियम का सही क्रियान्वयन हो और जनता को उसके अधिकार से वंचित ना किया जाए।

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