“DFO मैडम की चालाकी या बड़ा घोटाला ? DPR मांगते ही शुरू हुआ टाल-मटोल का खेल!”

“बैकुंठपुर में वन विभाग का काला सच! RTI पर DFO का खेल, भ्रष्टाचार छिपाने की साजिश?”

बैकुंठपुर। वनमंडलाधिकारी (DFO) प्रभाकर खलको के कार्यालय में सूचना का अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। RTI आवेदन में कैम्पा मद से नरवा विकास योजना के तहत APO वर्ष 2020-21 में बनाए गए एनीकट, डेम और अन्य स्ट्रक्चर्स की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) की सॉफ्ट कॉपी मांगी गई थी। लेकिन DFO ने इस जानकारी को सीधे उपलब्ध कराने के बजाय इसे अधीनस्थ वन परिक्षेत्र अधिकारी (रेंजर, खड़गवां) को अंतरित कर दिया।

DFO मैडम का RTI में जानकारी देने का ये पहलामामला नहीं हैं, इससे पहले इनका एक ऐसा ही विवादित कार्यवाही कि खबर हमने पहले भी लगाया था, परन्तु इन्हे इससे कोई सिख नहीं मिली।

DFO ने क्यों टाला जवाब?
RTI नियमों के अनुसार, जिस विभाग के पास जानकारी उपलब्ध होती है, उसे ही जवाब देना चाहिए। लेकिन बैकुंठपुर DFO ने जानबूझकर इसे रेंजर को भेज दिया, जबकि DPR वनमंडल (DFO) कार्यालय और कार्य एजेंसी के पास उपलब्ध रहती है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि DFO ने रेंजर को आवेदन क्यों भेजा?

रेंजर ने भी जवाब में लिखा कि “मेरे पास DPR नहीं है।” अब स्थिति स्पष्ट हो गई कि या तो DFO और रेंजर जानकारी छिपाना चाहते हैं या फिर पूरी योजना में गड़बड़ी है।

भ्रष्टाचार उजागर होने का डर?

सूत्रों के अनुसार, DFO इस जानकारी को सार्वजनिक नहीं करना चाहतीं, क्योंकि इससे भ्रष्टाचार उजागर होने की संभावना है। अगर DPR बाहर आ जाती है, तो उसमें हुए वित्तीय घोटालों और निर्माण कार्यों में अनियमितताओं का खुलासा हो सकता है।

RTI कार्यकर्ताओं एवं पत्रकारों को धमकाने के आरोप

क्षेत्र के RTI कार्यकर्ताओं एवं पत्रकारों ने आरोप लगाया कि DFO बैकुंठपुर RTI अपील प्रक्रिया एवं विभागीय कार्यों के बारे में पूछने पर जानकारी देने में पारदर्शिता नहीं रखतीं। RTI कार्यकर्ताओं एवं पत्रकारों के अनुसार, अगर कोई अपील करता है तो DFO सुनवाई के दौरान उन्हें डराने का प्रयास करती हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि DFO कहती हैं – “तुम मुझे जानते नहीं हो, ज्यादा नेतागिरी मत करो, मैं महिला हूं, साथ ही मैं आदिवासी हूं, ज्यादा दखल दोगे तो देख लूंगी!”

इस डर के कारण कई RTI कार्यकर्ता एवं पत्रकार DFO के समक्ष अपील सुनवाई में नहीं जाते और अपील आवेदन सिर्फ डाक के माध्यम से भेजने को मजबूर हो जाते हैं।

यहीं DFO हैं जिन्होंने ऐसे बाहने पूर्व में भी दिए थे, ऐसे में इनके पास अपील करने का क्या फायदा।

अपील में भी हो सकता है पक्षपात?

अगर इस मामले में अपील की जाती है, तो यह फिर से DFO के पास ही जाएगी, क्योंकि उन्होंने ही आवेदन को रेंजर के पास ट्रांसफर किया था। पहले भी अपील अधिकारी सरगुजा CCF श्री माथेस्वरण के निर्णय एकतरफा देखे गए हैं, जहां अधीनस्थ अधिकारियों के पक्ष में फैसले दिए गए। ऐसे में यह आशंका जताई जा रही है कि बैकुंठपुर DFO भी इसी रणनीति का पालन करेंगी और अपील खारिज कर देंगी।

अब क्या होगा?

इस मामले ने वन विभाग में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या प्रशासन इस मुद्दे पर कोई कार्रवाई करेगा? या फिर DPR को लेकर चल रहा खेल जारी रहेगा? क्षेत्र के जागरूक नागरिकों और RTI कार्यकर्ताओं की मांग है कि इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए ताकि सच सामने आ सके।

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