सुकमा। छत्तीसगढ़ के सुकमा वनमंडल में तेंदूपत्ता संग्राहकों के करोड़ों रुपये के बोनस में गड़बड़ी सामने आने के बाद वन मंडलाधिकारी अशोक कुमार पटेल के निलंबन की कार्रवाई हुई है। यह कार्रवाई सरकार की तत्परता तो दिखाती है, लेकिन असली सवाल यही है कि क्या अफसर को सस्पेंड करने से आदिवासियों की मेहनत की कमाई वापस मिल जाएगी?

दिखावे की कार्रवाई या न्याय की शुरुआत?

प्रशासन की कार्रवाई फिलहाल सिर्फ “दिखावे की कार्रवाई” नजर आ रही है। जब तक संग्राहकों के खातों में उनकी बकाया राशि नहीं पहुंचती, तब तक यह निलंबन केवल सरकारी कागजों में दर्ज होकर रह जाएगा। शासन को यह बताना चाहिए कि उन संग्राहकों को उनकी मेहनत की कमाई कब और कैसे लौटाई जाएगी, जिनका हक गबन हुआ है?
शासन पहले ही हथौड़ा क्यों नहीं चलाती?
यह पहली बार नहीं है जब वन विभाग के अधिकारियों की ऐसी करतूतें सामने आई हैं। इससे पहले कोरबा मरवाही बैकुंठपुर और सरगुजा वनमंडल में भी करोड़ों रुपये के घोटाले सामने आ चुके हैं। वहां भी जांच के नाम पर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। सवाल यह है कि शासन क्यों हमेशा घोटाला उजागर होने के बाद ही कार्रवाई करती है?
क्या विभाग के आला अधिकारियों को इन घोटालों की भनक पहले से नहीं थी?
अगर थी, तो फिर इतनी बड़ी राशि का गबन आखिर किसके संरक्षण में हुआ?
बीजापुर में लगभग 20 करोड़ का कैम्पा घोटाला, इसमें कब होगी कार्यवाही ?


इसी प्रकार बीजापुर में कैम्पा के नरवा विकास के 18 नाला जो कि लगभग 20 करोड़ के कार्य किए बिना सम्पूर्ण राशि निकाल ली गई हैं, पर कार्यवाही सिफर हैं, जाँच के आदेश के बावजूद CCF एवं जाँच अधिकारी धरे बैठें हैं फाईल।
बोनस राशि कब मिलेगी आदिवासियों को?
सरकार ने जांच समिति गठित कर दी है, लेकिन आदिवासी संग्राहकों को उनके हक की राशि कब तक मिलेगी, इसका कोई जवाब नहीं है। अब तक की स्थिति देखकर यही लगता है कि ये कार्रवाई केवल जनता का गुस्सा शांत करने के लिए की गई है। अगर सरकार सच में आदिवासियों के प्रति संवेदनशील है, तो दोषियों से गबन की गई राशि वसूल कर संग्राहकों को उनका हक तुरंत लौटाना चाहिए।
बेखौफ भ्रष्टाचारियों पर कब चलेगा बुलडोजर?
सुकमा, कोरबा, मरवाही जैसे वन मंडलों में जिस तरह से अफसरों के बेखौफ होकर गबन करने के मामले सामने आ रहे हैं, उससे यह साफ है कि शासन की पकड़ बेहद ढीली है। जब तक बड़े अधिकारियों पर भी सख्त कार्रवाई नहीं होगी और गबन की गई राशि की रिकवरी नहीं होगी, तब तक आदिवासियों की मेहनत की कमाई पर डाका डालने वाले भ्रष्ट अफसरों के हौसले बुलंद रहेंगे।
निष्कर्ष
सुकमा में अफसर को सस्पेंड कर शासन ने केवल अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश की है। अगर सरकार वास्तव में आदिवासियों के प्रति ईमानदार है, तो उसे न केवल दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, बल्कि संग्राहकों को उनकी पूरी मेहनत की राशि तुरंत लौटानी चाहिए। वरना यह कार्रवाई सिर्फ कागजी घोड़ा दौड़ाने के अलावा कुछ नहीं होगी।
आदिवासियों का हक – शासन की लापरवाही की भेंट चढ़ता रहेगा या फिर दोषियों पर चलेगा बुलडोजर ?