रायपुर। छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं रही, लेकिन बीते कुछ वर्षों में यह जिस स्तर तक पहुँच चुका है, वह व्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकता है। खासकर, भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारियों की बेलगाम होती मनमानी और भ्रष्टाचार के नए-नए तरीकों ने पूरे वन विभाग को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
IFS अधिकारियों की मनमानी से वन विभाग में हाहाकार
IFS अधिकारी, जिन पर वन संरक्षण और विभागीय प्रशासन की जिम्मेदारी होती है, अब खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाने में लगे हुए हैं। सबसे ताजा मामला सुकमा जिले का है, जहां तेंदूपत्ता बोनस घोटाले में 6 करोड़ 54 लाख रुपये का गबन सामने आया। सवाल उठता है कि क्या इस मामले में कोई बड़ी कार्यवाही होगी?



ऐसा पहले भी कई मामलों में देखा गया है कि जब भ्रष्टाचार उजागर होता है तो IFS अधिकारी खुद को निर्दोष साबित करने के लिए प्रबंधकों और छोटे कर्मचारियों पर ठीकरा फोड़ देते हैं। वे यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं कि “हमने तो राशि जारी कर दी थी, अब वितरण न हुआ तो हमारी कोई गलती नहीं।” लेकिन सच्चाई यह है कि भ्रष्टाचार की मोटी मलाई ये अधिकारी खुद ही हजम कर जाते हैं, और जब बात जवाबदेही की आती है, तो छोटे कर्मचारियों को बलि चढ़ा दिया जाता है।

बीजापुर में कैम्पा योजना में गड़बड़ी, बिना काम हुए निकाली गई पूरी राशि
बीजापुर जिले में कैम्पा के तहत नरवा विकास कार्य में भारी भ्रष्टाचार देखने को मिला। यहाँ 18 नालों का विकास कार्य होना था, लेकिन इनमें से कई नालों पर कोई काम हुआ ही नहीं, फिर भी पूरी राशि निकाल ली गई। उदाहरण के लिए, बरदेल नाले के लिए 1 करोड़ 49 लाख रुपये जारी किए गए, लेकिन विभागीय जांच में पाया गया कि केवल 7 लाख 13 हजार रुपये का ही काम हुआ है। बाकी राशि कहाँ गई? जवाबदेही किसकी है?













छोटे कर्मचारियों पर गाज, IFS कर रहे मनमानी वसूली
IFS अधिकारियों द्वारा की जा रही अवैध वसूली का सबसे बड़ा उदाहरण बिलासपुर जिले से सामने आया। यहाँ केवल 7 पेड़ों की अवैध कटाई का मामला सामने आया, लेकिन इसके लिए वनपाल के खिलाफ 7 लाख रुपये का लॉस केस बना दिया गया। इतना ही नहीं, CCF ने वनपाल को निलंबित कर दिया। नियमानुसार, 45 दिन में आरोप पत्र नहीं मिलने पर स्वतः बहाली का नियम है, लेकिन जब वनपाल ने बहाली के लिए आवेदन दिया तो उसे दोबारा उसी प्रकरण में सस्पेंड कर दिया गया।
यह दर्शाता है कि IFS अधिकारियों ने एक समानांतर व्यवस्था बना ली है, जिसमें वे छोटे कर्मचारियों को भ्रष्टाचार में फंसाकर उनसे लाखों रुपये की वसूली कर रहे हैं। भ्रष्टाचार का खेल इतना संगठित हो चुका है कि सस्पेंशन से बहाली तक की प्रक्रिया में मोटी रकम वसूली जा रही है। वनपाल से ही बहाली के लिए 5 लाख रुपये की मांग की जा रही है। क्या छोटे कर्मचारी अब केवल रिश्वत देने के लिए ही नौकरी कर रहे हैं?
वन मंत्री और मुख्यमंत्री कब लेंगे संज्ञान?

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर इन IFS अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्या वन मंत्री और मुख्यमंत्री तक इन मामलों की जानकारी नहीं पहुँच रही, या फिर जानबूझकर इन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है?
अगर राज्य के वन मंत्री और मुख्यमंत्री इन मामलों को लेकर गंभीर हैं, तो अब तक कोई ठोस कार्यवाही क्यों नहीं हुई? क्या उन्हें यह नहीं दिख रहा कि वन विभाग में भ्रष्टाचार किस हद तक पहुँच चुका है?
क्या वनबल प्रमुख को ऊपर से निर्देश मिले हैं कि कार्यवाही न करें?

इन घटनाओं से यह भी संदेह उत्पन्न होता है कि वनबल प्रमुख (PCCF) को कहीं ऊपर से यह निर्देश तो नहीं मिले हैं कि वे इन मामलों में कोई हस्तक्षेप न करें? क्योंकि जब भी कोई शिकायत उनके संज्ञान में लाई जाती है, तो उनका जवाब यही होता है कि “मेरे हाथ बंधे हैं, IFS अधिकारियों पर कार्यवाही करने का अधिकार मेरे पास नहीं है।”
अगर ऐसा है, तो सवाल उठता है कि वन विभाग में पारदर्शिता और ईमानदारी को बनाए रखने की जिम्मेदारी किसकी है? क्या सरकार ने इन बेलगाम अधिकारियों को खुली छूट दे दी है?
निष्कर्ष: क्या कोई इन बेलगाम अधिकारियों पर अंकुश लगाएगा?
छत्तीसगढ़ के वन विभाग की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। जहां कुछ साल पहले तक व्यवस्था में इतनी गड़बड़ी नहीं थी, वहीं अब IFS अधिकारी खुलेआम अपना राज चला रहे हैं। छोटे कर्मचारियों से लाखों रुपये की वसूली की जा रही है, भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हें फंसाया जा रहा है, और खुद अधिकारी करोड़ों रुपये की हेराफेरी कर रहे हैं।
क्या वन मंत्री और मुख्यमंत्री इस पर संज्ञान लेंगे? क्या वे वनबल प्रमुख से जवाब मांगेंगे कि आखिर इन मामलों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? या फिर भ्रष्टाचार का यह खेल यूँ ही चलता रहेगा और छोटे कर्मचारी कुचले जाते रहेंगे?
समय आ गया है कि इन सवालों के जवाब दिए जाएं और IFS अधिकारियों की नकेल कसने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो वन विभाग में ईमानदारी की कोई गुंजाइश नहीं बचेगी और भ्रष्टाचार का यह खेल यूँ ही जारी रहेगा।
