कोरिया। छत्तीसगढ़ के बैकुंठपुर वनमंडल में कैंपा मद के तहत नरवा विकास योजना के कार्यों में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं की शिकायतें आ रही हैं। इन कार्यों की वास्तविकता को जानने के लिए एक आरटीआई आवेदन के माध्यम से जानकारी मांगी गई थी, लेकिन वनमंडल अधिकारी ने सूचना देने से इनकार कर दिया।

सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगी गई जानकारी में नालों, एनीकट, डैम, बलूसीडी, एलबीसीडी, जीपी, जीएस, पीटी, एससीटी, यू-डाइक, सीडी, ईसीबी, एसएमसीडी, एमपीटी जैसे संरचनाओं के निर्माण का विवरण मांगा गया था। इन कार्यों पर सरकारी धन खर्च हुआ है, लेकिन वन विभाग द्वारा इस संबंध में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है।
वन विभाग का तर्क: “जानकारी ज्यादा है, देने में समय लगेगा”
वनमंडल अधिकारी ने RTI के जवाब में कहा कि मांगी गई जानकारी 1000 से अधिक पृष्ठों में उपलब्ध है और इतनी बड़ी संख्या में दस्तावेजों की फोटोकॉपी करने में “कार्यालय का महत्वपूर्ण समय व्यर्थ होगा।” इसी आधार पर उन्होंने आवेदक को 400 से 500 किलोमीटर दूर बैकुंठपुर कार्यालय में उपस्थित होकर अवलोकन करने का निर्देश दिया।
लेकिन यह तर्क पूरी तरह से गैरकानूनी और सूचना के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ है।
धारा 7(9) का गलत इस्तेमाल: भ्रष्टाचार छिपाने की कोशिश?
वन विभाग ने सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 7(9) का हवाला देते हुए कहा कि जानकारी इतनी अधिक है कि इसे फोटोकॉपी करवाना मुश्किल है, इसलिए आवेदक को कार्यालय में आकर अवलोकन करना होगा।
लेकिन धारा 7(9) केवल गरीबी रेखा से नीचे (BPL) जीवन यापन करने वाले आवेदकों के लिए लागू होती है, जिनके लिए 50 पृष्ठ तक की जानकारी निःशुल्क दी जाती है। सामान्य श्रेणी के आवेदकों पर यह प्रावधान लागू नहीं होता। आवेदक ने पहले ही अपने आवेदन में स्पष्ट कर दिया था कि वह गरीबी रेखा में नहीं आता, फिर भी वन विभाग ने इसी नियम का हवाला देते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया।
भ्रष्टाचार की पोल खुलने का डर?
- कैंपा मद के तहत नरवा विकास योजना में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की शिकायतें हैं।
- नालों में जो छोटे-छोटे स्ट्रक्चर बनाए जाने थे, उन्हें या तो बनाया ही नहीं गया या आंशिक रूप से निर्माण करके पूरी धनराशि निकाल ली गई।
- इसी गड़बड़ी को उजागर करने के लिए RTI दाखिल की गई थी।
- लेकिन वनमंडल अधिकारी ने इसे छिपाने के लिए धारा 7(9) का दुरुपयोग कर आवेदक को कार्यालय में आने के लिए मजबूर किया।
अपीलीय अधिकारी भी भ्रष्टाचार को समर्थन दे रहे हैं?
ऐसे मामलों में आमतौर पर अपीलीय अधिकारी को गलत तरीके से RTI आवेदन खारिज करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाहिए, लेकिन अधिकतर मामलों में अपीलीय अधिकारी भी भ्रष्ट अधिकारियों का ही समर्थन करते हैं।
वन विभाग में अब यह आम प्रथा बन गई है कि वे RTI आवेदनों को अनुचित आधारों पर खारिज कर देते हैं और आवेदकों को कार्यालय आने के लिए मजबूर करते हैं, जिससे उन्हें असुविधा हो और वे जानकारी हासिल न कर सकें।
अब आगे क्या?
- इस मामले की शिकायत सामान्य प्रशासन विभाग और सूचना आयोग को की जाएगी।
- सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी को छिपाने का प्रयास करने के लिए वनमंडल अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जाएगी।
- यदि अपीलीय अधिकारी ने भी इस अन्याय का समर्थन किया, तो उनके खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई जाएगी।
निष्कर्ष
बैकुंठपुर वनमंडल में कैंपा मद के तहत हुए कार्यों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की संभावना है, जिसे छिपाने के लिए अधिकारी RTI में जानकारी देने से बच रहे हैं। धारा 7(9) का गलत उपयोग कर आवेदकों को जानबूझकर परेशान किया जा रहा है। शासन-प्रशासन को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत पारदर्शिता बनी रहे और भ्रष्टाचारियों को बेनकाब किया जा सके।