कोरबा: छत्तीसगढ़ के वनमंडल कोरबा में चारागाह विकास कार्यों के नाम पर करोड़ों रुपये की हेराफेरी का मामला सामने आया है। दस्तावेजों के अनुसार, 91.85 लाख रुपये की राशि चारागाह निर्माण के लिए स्वीकृत की गई थी, लेकिन क्षेत्र के ग्रामीणों का कहना है कि जमीन पर एक भी कार्य नहीं हुआ। वन विभाग की ओर से प्रस्तुत रिपोर्ट और जमीनी हकीकत में बड़ा अंतर दिखाई दे रहा है, जिससे भ्रष्टाचार की बू आ रही है।

वन अधिकारी वन्यप्राणी के चारा को भी नहीं बक्श रहे !
जिनके देखरेख के नाम से सरकार इन्हे वेतन देती हैं जिस वेतन से ये अपने बच्चों कि परवरिश करतें हैं उन्ही के चारा को हजम करने में इन्हे कोई हर्ज नहीं।
चारागाह घोटाले की बड़ी बातें:

- 91.85 लाख रुपये की स्वीकृति, लेकिन 58.35 लाख रुपये कार्य शुरू होने से पहले ही खर्च कर लिए गए।
- स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि जंगलों में चारागाह का कोई कार्य नहीं हुआ।
- वन्यजीवों के लिए चारागाह विकसित करने की योजना केवल कागजों पर चल रही है।
- वन विभाग के उच्च अधिकारी सहित वनबल प्रमुख शिकायतों को नजरअंदाज कर रहे हैं।
- मामला केंद्रीय वन मंत्रालय और सतर्कता आयोग तक पहुंचने की तैयारी में।
मुख्य बिंदु:

- कुल भौतिक कार्य: 285.000 हेक्टेयर में जंगली जानवरों के लिए चारागाह बनाना था मतलब घाँस बोवई कराना था जिससे उन्हें चारा मिलते रहें।
- कुल वित्तीय स्वीकृति: 9185544 (लगभग 91.86 लाख रुपये) कैम्पा मद से स्वीकृत हुवा।
- प्रमुख स्थल:
- ओए 1229 पॉडीखोहा
- ओए 1243 रूमगरा
- ओए 1193 डोकसन्ना – 1 और 2
- पी 812 ठाडपखना
- पी 820 गढ़
- पी 1271 बंजर
- पी 1139 कुदमुरा
- पी 1013 कांटर आदि।
क्या है पूरा मामला?
उपर्युक्त स्थानों के चारागाह के बारे में जब स्थानीय ग्रामीणों से जानकारी ली गई, तो उन्होंने बताया कि जंगलों में कोई चारागाह नहीं बना, न ही हमने जंगल में हल से या ट्रेक्टर से जोताई बोवई किया, और न ही किसी प्रकार की घास या पौधारोपण किया गया।
सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जब चारागाह के निर्माण कार्य मार्च-अप्रैल में भूमि जोताई के साथ शुरू होते हैं, तो फिर मार्च 2024 से पहले ही 58.35 लाख रुपये कैसे खर्च कर दिए गए?
जंगली जानवरों के लिए संकट, इंसानों के लिए खतरा

जंगलों में घास और चारा न होने के कारण वन्यजीव गांवों और शहरों की ओर आ रहे हैं। महासमुंद, धमतरी, बलौदाबाजार, रायगढ़, कोरबा और सरगुजा के इलाकों में पिछले कुछ महीनों में कई बार हाथी, तेंदुआ और अन्य वन्यजीव रिहायशी इलाकों में घुस आए। विशेषज्ञों का कहना है कि चारागाह की कमी के कारण वन्यजीव भोजन और पानी की तलाश में जंगलों से बाहर आ रहे हैं, जिससे इंसान और जानवर दोनों के लिए खतरा बढ़ रहा है।
जिम्मेदार अधिकारी कार्रवाई से बच रहे हैं?

जब इस मामले को लेकर वन विभाग के कुछ अधिकारियों से संपर्क किया गया, तो उन्होंने जवाब देने से बचने की कोशिश की। सीसीएफ (CCF) बिलासपुर वृत्त ने कहा कि वे रिटायरमेंट के करीब हैं और इस मामले में कुछ नहीं कर सकते, अगर उन्होंने कुछ गलत किया हैं तो वे जाने, शिकायत आने पर जाँच कराई जाएगी। वहीं, वन्यजीव सीसीएफ ने खुद को “टेम्परेरी सीसीएफ” बताकर जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया।
क्या जाँच में ईमानदार IFS कि टीम भेजी जाएगी ?

वनबल प्रमुख के कार्यपराणी कि माने तो हो इसी तरह के ANR वृक्षारोपण महासमुंद में नहीं हुवे थे तथा जगदलपुर में बिना सक्षम अधिकारी से अनुमति लिए बिना खरीदी के मामले में वहाँ ईमानदारों IFS कि टीम भेज कर भ्रष्टाचार कि रकम वसूली कि कार्यवाही कि गई थी क्या ऐसी ही कार्यवाही कोरबा में की जाएगी या प्रशासनिक अधिकारी के रिश्तेदार को बचा लिया जाएगा ?
सूत्रों के मुताबिक, कोरबा के वनमंडलाधिकारी (DFO) अरविंद पी. कहते रहतें हैं कि उन्हें राजनितिक एवं प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है। कहा जा रहा है कि वे वन विभाग के वनबल प्रमुख के बेहद करीबी हैं, और वनबल प्रमुख माननीय वनमंत्री के जिसकी वजह से उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

अब क्या होगा ?
अब यह मामला केंद्रीय वन, जलवायु एवं पर्यावरण परिवर्तन मंत्रालय तथा केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) को भेजा जा रहा है। सरकार से उम्मीद की जा रही है कि वह इस घोटाले की निष्पक्ष जांच कराएगी और दोषियों पर कार्रवाई करेगी।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या डबल इंजन सरकार इस घोटाले पर कोई ठोस कदम उठाएगी या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह दबा दिया जाएगा?
(ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट: 4thPiller.com)