छत्तीसगढ़ – वाणिज्यिक वृक्षारोपण के तहत कृषकों की आय में वृद्धि करने का वादा लेकर शुरू की गई मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना में अब गड़बड़ी और धोखाधड़ी के गंभीर आरोप सामने आए हैं। जांच में पता चला है कि टिशू कल्चर सौगोन के पौधे कोयम्बतूर से महंगे ऑर्डर किए गए, परन्तु वास्तव में पौधे छत्तीसगढ़ के ही लोकल टिशू कल्चर प्लांट से मात्र ₹30 प्रति पौधा में खरीद कर सप्लाई किए गए।
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ऑर्डर और खरीद प्रक्रिया में हुई धांधली
- कोयम्बतूर से महंगे पौधे:
योजना के अंतर्गत IFGTB कोयम्बतूर से टिशू कल्चर सौगोन के पौधों का ऑर्डर दिया गया था, जिनकी ऑन पेपर कीमत ₹85 प्रति पौधा निर्धारित की गई थी। - लोकल सप्लाई का खुलासा:
जांच में यह साबित हुआ कि वास्तव में ये पौधे छत्तीसगढ़ के लोकल टिशू कल्चर प्लांट से ₹30 प्रति पौधा में उपलब्ध कराए जाते हैं। - मुनाफे का अंतर:
इस तरह प्रति पौधा ₹55 का अंतर उत्पन्न हो रहा है, जिससे पूरे राज्य में लगभग 4 करोड़ रुपये का सुरक्षित भ्रष्टाचार देखा गया है।
टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी के और आरोप
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- बीज निगम के रेट कॉन्ट्रैक्ट की धोखा-बाज़ी:
कई टिशू कल्चर प्लांट मालिकों से बातचीत करने पर पता चला कि अधिकांश वन विभाग बीज निगम के रेट कॉन्ट्रैक्ट पर ही पौधे खरीदने की सोच रखते हैं।
– टेंडर में भाग लेने वाले ठेकेदारों ने मेहनत कर बोली लगाई, परंतु बाद में उन्हें धोखा दिया गया। - जिनेटिक फिडेलिटी सर्टिफिकेट का मसला:
वन विभाग के नियमों के तहत कई पौधों का जिनेटिक फिडेलिटी सर्टिफिकेट मांगा जाता है, जिसे IFGTB कोयम्बतूर भी प्रदान करने में असमर्थ पाया। - निजी लैब का सांठ-गांठ का आरोप:
एक अन्य टिशू कल्चर लैब के मालिक ने अनाम शर्तों पर बताया कि छत्तीसगढ़ में कुछ निजी लैब हैं जो टिशू कल्चर विधि द्वारा बड़े पैमाने पर सागौन के पौधे तैयार करती हैं। पर सरकारी टेंडर प्रक्रिया में ऐसे लैबों से पौधा खरीदा नहीं जाता क्योंकि टेंडर में कुछ ऐसे नार्मस / नियम शामिल कर लिए जाते हैं, जो विशेष लैबों को फायदा पहुँचाने के लिए तैयार किए गए हैं। - कोई वायरस या जिनेटिक फिडेलिटी टेस्ट नहीं:
जांच से यह भी सामने आया कि सागौन के पौधों पर न तो कोई वायरस टेस्ट होता है और न ही जिनेटिक फिडेलिटी का कोई प्रमाण उपलब्ध होता है, जबकि छत्तीसगढ़ के अधिकांश लैब डीबीटी (DBT) प्रमाणित होने के बावजूद सरकार इन्हें सप्लाई करने में असमर्थ दिखती है।
इस पूरी साजिश के पीछे की गड़बड़ नीतियाँ
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- वन विभाग के नियमों पर सवाल:
वन विभाग द्वारा टेंडर प्रक्रिया में वायरस टेस्ट और जिनेटिक फिडेलिटी टेस्ट वाले कॉलम शामिल किए गए हैं, जिन्हें हटाने की मांग उठी है।
– आरोप है कि इन शर्तों के तहत केवल महंगे पौधों का ऑर्डर दिया जा रहा है, जबकि असली पौधे छत्तीसगढ़ के लोकल टिशू कल्चर लैब से सस्ते में उपलब्ध हैं। - एस. वेंकटचलम का संदिग्ध लाभ:
सूत्रों के अनुसार, दक्षिण के अधिकारी एस. वेंकटचलम (CCF अनुसंधान विस्तार) ने अपने परिचितों के साथ सांठ-गांठ करके इस सौदे में अपना लाभ सुनिश्चित करने की कोशिश की है।
– वे इस नियम व्यवस्था के दम पर इस वर्ष भी अपनी पेटेंट (मुनाफा) सुनिश्चित करने में सफल हुए या नहीं, यह अब जांच का विषय है।
किसान और स्थानीय हितधारकों की स्थिति
- वादा और हकीकत में बड़ा अंतर:
मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना का मूल उद्देश्य कृषकों को समृद्धि का सपना दिखाना था, जिससे 36,000 एकड़ में वृक्षारोपण किया जा सके।
– किसानों को आश्वासन दिया गया था कि उन्नत टिशू कल्चर पौधों से उनकी आय में वृद्धि होगी।
– लेकिन, असली में सप्लाई किए गए पौधे घटिया और असफल निकल रहे हैं, जिससे कृषकों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। - स्थानीय शिकायतें:
किसानों ने वन विभाग से शिकायत की है, परंतु उनकी बातों का उचित संज्ञान नहीं लिया जा रहा है।
– कई किसान अब इतने निराश हो गए हैं कि असफल पौधों को खोदकर फेंकने का भी विचार कर रहे हैं।
उच्च स्तरीय जांच और जवाबदेही की मांग
- मामले की गहन जांच आवश्यक:
पूरे सौदे, मूल्य निर्धारण में अंतर, और टेंडर प्रक्रिया में उठाई गई शर्तों के खिलाफ उच्च स्तरीय जांच की तत्काल आवश्यकता है। - जवाबदेही सुनिश्चित करें:
वन मंत्री श्री केदार कश्यप एवं वनबल प्रमुख व प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री व्ही श्रीनिवास राव से अपील है कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए पूरे मामले की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए। - नियमों में सुधार:
टेंडर प्रक्रिया में वायरस टेस्ट और जिनेटिक फिडेलिटी टेस्ट वाले कॉलम को हटाकर किसानों को गुणवत्तापूर्ण और उचित मूल्य पर पौधे उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए।
निष्कर्ष
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मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना में न केवल पौधों की घटिया गुणवत्ता और असफल वृक्षारोपण के कारण कृषकों के सपनों को ध्वस्त किया गया है, बल्कि कोयम्बतूर से महंगे पौधों का ऑर्डर देकर स्थानीय नर्सरी या टिशू कल्चर प्लांट से सस्ते या बीजू पौधे सप्लाई करने का धोखा भी स्पष्ट हो गया है।
इस पूरे गोरख-धंधे में कौन-कौन से अधिकारी संलिप्त हैं, इसकी गहन जांच अविलंब होनी चाहिए ताकि लगभग 4 करोड़ रुपये का सुरक्षित भ्रष्टाचार उजागर हो सके और किसानों का हक सुरक्षित किया जा सके।
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